सोमवार, 28 दिसंबर 2009
नेहरु से जिन्ना तक सब की रूचि इस मामले में एक
विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी को महिलाओं के विकास में विशेष रुचि लेने का खामियाजा भुगतना पड़ा। संजय गांधी के दौर में लखनऊ-दिल्ली के बीच अपनी भाग-दौड़ की वजह से वे नयी दिल्ली तिवारी त• • के नाम से पुकारे गये। एक समारोह में तत्कालीन राज कुमार संजय गांधी की चरण पादुकाएं खोज लाने में भी वे काफी मशहूर हुए। वैसे तो अच्छों को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है। यह बात अभिनेता राज कुमार अपने खास अंदाज में फिल्म में कह गये हैं। अगर हम ठीक से देखें तो आचार्य वात्स्यायन और के देश में जहों कोकशास्त्र को एक ललित कला के तौर पर स्थापित किया गया और खजुराहो में चंदेल राजाओं ने मशहूर मंदिर बनवाये और जहां संभोग से समाधि का नारा देकर पश्चिमी जीवन की धारा पलट देने वाले आचार्य रजनीश ओशो ने अपने कम्यून स्थापित किये । उस देश में जब उम्र के चौथेपन में एक बुजुर्ग समाधि लगाने की प्रैक्टिस कर रहा हो तो उसे छिनरा कहना अपराध है। एन डी तिवारी से सभी को ईष्र्या है क्यों की उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में हर गली में उन्हें डैडी कहने वाले दो-चार लोग मिल ही जाएंगे। तो उनसे ईष्र्या होनी स्वाभाविक ही है की जो काम आज के जवानजहान लडक़े बिना हकीम अर्जुन सिंह उप्पल या डाक्टर एडवर्ड की दवाओं के बिना चल नहीं सकते। वही काम 86 साल के इस बूढ़े जवान ने कर दिखाया। कांग्रेस तो तेलंगाना मुद्दे पर फंस चुकी थी। ऐसे में उसे पब्लिक ध्यान हटाने कोई शिगूफा चाहिए था। एन डी तिवारी की बलि तेलंगाना मुद्दे पर अपनी मिस हैंडलिंग के लिए कांग्रेस ने ली है। वो तो सिर्फ संभोग से समाधि में जाने का अभ्यास कर रहे थे। जो उन्हें इस उम्र में भी चाहिए था। सारा बवाल सिर्फ इस बात का है की हाय उन की जगह हम क्यों नहीं हुए और बकोल हरिशं कर परसाईं हमने और हमारे समाज ने सारी नैतिकता समेटकर टांगों के बीच में रख दी है। जहां तक सवाल पद का है तो अमरीकी राष्ट्रपति के नेडी और हीरोइन मार्लिन मुनरो के संबंध विश्वविख्यात हैं और हाल ही के बिल क्लिंटन-मोनि का लेवेंस्की की कहानियां सभी को याद ही होंगी। फिर और अपने ही यहां साउथ में एमजी रामचंद्रन और जय ललिता के संबंधों पर क्या कीसी ने अंगुली उठाई। दोनों ही मुख्यमंत्री बने। ऐसे में अब सुचिता की बात हास्यास्पद ही लगती है। खास तौर पर तब जब आप जवाहरलाल नेहरू और लेडी एडविना माउंटबैटन के रिश्तों पर आंखें बंद कर लेते हों। क्या किसी को याद है की हिंदुस्तान का बंटवारा जिन्ना की रुट्टी दिनशाव पेटिट से आशनाई और नेहरू-एडविना आशनाई के कमपटीशन में हुआ था। रुट्टी जिन्ना को भले ही 24 घंटे के लिए हो लेकिन प्रधानमंत्री देखना चाहती था और एडविना नेहरू को । लिहाजा दो मुलक बने। हम कुछ नहीं बोलेगा। चोप्प रहेगा।
-आईबी रस्तोगी एलियाजी का ब्लॉग पर टिप्पणी में
रविवार, 27 दिसंबर 2009
इस हमाम में अकेले नहीं है एनडी
यह केवल एनडी तिवारी या किसी एक पार्टी या एक शहर या राजधानी का मामला नहीं है, दरअसल सत्ता का यही चरित्र है, भले वह राजनितिक , प्रशासनिक , पूंजी या किसी और तरह की सत्ता हो। इसमें अमूमन संघर्ष के बल पर हुआ उत्थान अंतत: धन, सुरा और सुंदरी गमन के रास्ते पतन की तरफ जाता है। लुब्बे लुआब ये कि इस हमाम में एनडी अकेले नहीं हैं।
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
एक और मकबूल फ़िदा हुसैन
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
सर हरिसिंह गौर के नगर का पार्टियों और नेताओं के गाल पर झन्नाटेदार झापड
गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
फिर घर में कभी रामायण का पाठ नहीं हुआ
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
उम्र से लंबा हादसा, दुनिया ने नहीं लिया भोपाल से सबक
करोड़ों की लागत से बनीं भव्य इमारतें जिन्हें अस्पताल नाम दिया गया है, में करोड़ों रुपए खर्च कर विदेशों से लाई गई मशीनें धूल खा रही हैं। अगर इन अस्पतालों में सब कुछ ठीक से चलने लगे तो भोपाल देश का सर्वाधिक स्वास्थ्य सुविधा संपन्न शहर हो सकता है। लेकिन दो दशक में ऐसा होने के बजाय हालात और बदतर हो गए हैं। दवाएं खरीदने के नाम पर घोटालों के बीच अपने सीने में घातक गैस का असर लिए गैस पीडि़त आज भी तिल तिलकर मर रहे हैं। दवाओं का टोटा न अस्पतालों में नजर आता है और न ही आंकड़ों में। लेकिन लोग दवाओं के लिए भटकते रहते हैं।
विश्व की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी का तमगा हासिल कर चुके इस भोपाल हादसे के मुजरिमों को न केवल तत्कालीन सरकारों ने भाग जाने दिया बल्कि बाद की सरकारों ने नाकाफी हर्जाना लेकर समझौता करने से लेकर आपराधिक मामले में धाराएं कमजोर करने जैसे अक्षम्य अपराध कर कानूनी पक्ष को कमजोर किया। इससे प्राकृतिक न्याय की मूल भावना कमजोर हुई। आर्थिक हर्जाना कभी मौत के मामले में न्याय नहीं हो सकता, फिर यह तो सामूहिक नरसंहार का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने 13 सितंबर 1996 के फैसले में यूनियन कारबाइड से जुड़े अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की दफा 304 के स्थान पर 304- ए के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। इसके तहत यूका के खिलाफ फैसला होने पर अभियुक्तों को दो वर्ष कैद और पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा होगी। इस मामले में यूनियन कारबाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन, यूका ईस्टर्न हांगकांग तथा यूका इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन अध्यक्ष केशव महिंद्रा समेत 10 अन्य अभियुक्त बनाए गए थे। एंडरसन प्रमुख अभियुक्त होने के बावजूद भारत में अदालत के सामने पेश नहीं हुआ।
भोपाल हादसे से किसी भी तरह का सबक नहीं लिया गया है। आज भी भोपाल में और देश भर में घनी आबादियों के बीच घातक कारखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं। हर कहीं हर कभी छोटे छोटे भोपाल घट रहे हैं। ढाई दशक बाद न भोपाल ने न मप्र ने न भारत ने और न ही दुनिया ने भोपाल से कोई सबक लिया है।
क्रमश.. .. जारी
बुधवार, 25 नवंबर 2009
महिला आरक्षण के नाम पर ये क्या हो रहा है
सोमवार, 16 नवंबर 2009
बीमार भाजपा को कुनैन मोदी चाहिए
गुरुवार, 12 नवंबर 2009
कैसा रहम, ये माफी है नाकाफी. .
मंगलवार, 10 नवंबर 2009
बैन करो इस गुंडाराज पार्टी को
रविवार, 8 नवंबर 2009
बाबा रामदेव तुमने ये क्या किया
शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
कंट्रोवर्सी प्रेमी न्यूज चैनलों ने शिवराज को बना दिया राज
भाषण और लेखन में एक सी ताकत थे प्रभाष जी
मंगलवार, 3 नवंबर 2009
कॉमन वैल्थ नहीं कॉमन गुलामी है ये ...
सोमवार, 2 नवंबर 2009
डैमेज कंट्रोल में सफल रहे शिवराज
बुधवार, 28 अक्तूबर 2009
शिवराज के मंत्रिमंडल में नौ और मंत्री शामिल, दागियों को भी मिली जगह
सोमवार, 19 अक्तूबर 2009
चीन से रोशन हिंदोस्तां हमारा...
शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
एक दीप धरें मन की देहरी पर
एक दीप धरें मन की देहरी पर
धीरे धीरे घिरता है तम,
ग्रस लेता जड़ और चेतन को
निविड़ अंधकार गहन है ऐसासूझ न पड़ता
हाथ को भी हाथ
क्या करें,
कैसे काटें इस तम को
यह यक्ष प्रश्न
विषधर साकर देता किंकर्तव्यविमूढ़
तो जगती है एक किरनउम्मीद की
टिमटिमातीकंपकंपाती दीप शिखा सी
आओ लड़ें तिमिर अंधकार से,
एक दीप धरें मन की देहरी परप्रेम की जोत जगाएं हम
मिटे अंधियारा
बाहर काभीतर का भी,
आओ दीपमालिका सजाएं,
दीपावली बनाएंएक दीप धरें मन की देहरी पर।।
- सतीश एलिया
मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
मक्का एक लाख रुपए क्विंटल ......
गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009
आचार्य त्रिखा को गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009
प्यारेलाल जी नहीं रहे....
मैं किसी को सीएम प्रोजेक्ट करने के पक्ष में नहीं: खंडेलवाल
सतीश एलिया
भोपाल, 27 सितंबर २००२
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्यारेलाल खंडेवाल मप्र में विधानसभा चुनाव में किसी भी नेता को सीएम प्रोजेक्ट कने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि चुाव किसी एक नेता के बलबूते नहीं जीता, पार्टी का जनाधार सरकार बनाता है। मप्र में भाजपा का जनाधार किसी व्यक्ति या जातिगत आधार पर नहीं है। इस संवाददाता से खास मुलाकात में श्री खंडेलवाल ने कहा कि मप्र में कोई व्यक्ति या जातीय समीकरण महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि पार्टी का जनाधार ही महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि अब तक के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने प्रदेश में किसी एक नेता को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं किया। मेरी राय में ऐसा किया भी नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीतने के लिए पार्टी के जनाधार के अलावा यह महत्व रखेगा कि जीतने की क्षमता वाले प्रत्याशियों को टिकिट दिए जाएं। श्री खंडेलवाल ने दावा किया कि माहौल भाजपा के पक्ष में नजर आ रहा है, हालांकि चुनाव में अभी सवा साल बाकी है।पार्टी संगठन में बदलाव के बारे में पूछे जाने पर श्री खंडेवाल ने कहा कि युवाओं को आगे लाना एक प्रयोग है। लीक से हटकर नई व्यवस्था बनाने की कोशिश की गई है। पार्टी की लोकतांत्रिक व्यवस्था के बीच यह प्रयोग किया गया है। दो अक्टूबर से सदस्यता अभियान शुरू होगा, इसके बाद संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। संगठन चुनाव ही कसौटी होंगे कि प्रयोग सफल रहा या असफल।मप्र में युवा नेत्रत्व के बजाय अनुभव को तरजीह दी जाने को उचित ठहाते हुए श्री खंडेलवाल ने कहा कि युवाओं को आगे लाने का मतलब अनुभवी नेताओं को घर बैठा देना नहीं हो सकता। मप्र भाजपा अध्यक्ष कैलाश जोशी की टीम में अपेक्षाक्रत युवा लोगों को जगह मिली है।श्री खंडेलवाल ने सवालों के जवाब में कहा कि गांव चलो अभियान के दौरान उन्होंने पाया कि आतंकवाद के मामले मंे देशवासियों के धैर्य की सीमाएं टूट चुकी हैं और अब वक्त आ गया है कि भारत को पाकिस्तान में चल रहे ट्रेनिंग कैंप तबाह कर देना चाहिए। भाजपा इस बारे में शिव सेना की राय से पूरी तरह सहमत है। पार्टी जनता की इस भावना से केंद्र सरकार को अवगत कराएगी। लोग अब आतंकवाद को मुह तोड जबाव देने के बयान सुनने के बजाय एक्शन चाहते हैं। भारत पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी ट्रेनिंग कैंपों को नष्ट करने जैसा सख्त कदम उठाए तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस कदम का विरोध नहीं करेगा, क्योंकि दुनिया पाकिस्तान की करतूतों को अनदेखा नहीं कर सकती है। शिवसेना सुप्रीमो की एनडीए सरकार से समर्थन वापसी की धमकी पर श्री खंडेलवाल ने कहा कि सरकार में रहना न रहना शिवसेना का अपना मामला है, इसके लिए वह स्वतंत्र है।जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में संघ समर्थित मोर्चा और भाजपा के आमने सामने आने के मामले में भाजपा उपाध्यक्ष ने कहा कि मोर्चा राज्य को दो नए राज्यों तथा एक केंद्र शासित प्रदेश में बांटने का पक्षधर है। जबकि भाजपा इससे सहमत नहीं है। इस असहमति के बावजूद चुनाव में मोर्चे और भाजपा ने मिलकर ही चुनाव लडा है, पार्टी को चुनाव में कोई नुकसान नहीं होगा।राम मंदिर, समान नागरिक कानून और धारा 370 के मुददे पीछे धकेल दिए जाने के सवाल पर श्री खंडेलवाल ने कहा कि प्राथमिक मुददे समय के साथ बदल जाते हैं। एनडीए के एजेंडे से सरकार चल रही है। लेकिन भाजा के एजेंडे में भी अब सबसे उपर सरकार का परफार्मेंस तथा विश्व में भारत की प्रतिष्ठा है। भाजपा ने तीनों मुददे छोडे नहीं हैं लेकिन वे अब प्राथमिक मुददे नहीं हैं। इनके बिना भी 1996 में भाजपा को सर्वाधिक सीटें मिलीं। पार्टी के गांव चलो अभियान के बारे में श्री खंडेलवाल ने बताया कि कार्यकर्ता देश के दो लाख गांवों में पहुंचकर केंद्र सरकार की योजनाओं का जायजा लेंगे। फीड बैक सरकार को दिया जाएगा। पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा आयोजन पहली बार कर रही है, हालांकि मप्र, हरयाणा और उडीसा में अलग अलग नामों से इसी तरह के अभियान चलाए जा चुके हैं। मप्र में 88-89 में ग्राम राज अभियान चलाया गया था। हरयाणा, उडीसा में गांव राज अभियान तथा उप्र में एक रात गांव में अभियान चल चुके हैं। इनसे भाजपा का गांवों में जनाधार बढा है। अर्से तक मप्र में पार्टी की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे खंडेलवाल ने बताया कि संगठन को उनकी जरूरत उन राज्यों में ज्यादा है, जहां पार्टी का फैलाव कम है। वे अभी उडीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के प्रभारी हैं। अगले माह पूर्वोत्तर का दूसरा दौरा शुरू करेंगे।
सोमवार, 5 अक्तूबर 2009
बिग बास यानी उतरन......
शनिवार, 3 अक्तूबर 2009
शरद के चांद पर बादलों का साया है
दिन खुशगवार था रात पर भी नशा सा छाया है।
ये कौन मेरे दिल पे अपना नक्श गया है छोडकर,
हर सिम्त हर जर्रे में उसका ही सरमाया है।
अब यहां रिश्तों में न रही पहले सी हरारत,
हर शख्स दूसरों से और अपने आप से घबराया है।
चल बेबाक गुम हो जाएं अपनी ही बेखुदी में,
यहां कौन किसके गम को समझ पाया है।
शरद के चांद पर बादलों का सरमाया है।।
- सतीश एलिया बेबाक
भोपाल शरद पूर्णिमा 2009
बुधवार, 30 सितंबर 2009
मौला रूखसाना सी बिटिया ही दीजौ
शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
अपने स्वार्थ के लिए विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगाने वालों का तंबू उखड़ा
(कृपया इस संबंध में मेरी 10 सितंबर 2009 की पोस्ट भी देखें)
बुधवार, 23 सितंबर 2009
जिंदादिल कौन है?
सोमवार, 21 सितंबर 2009
दिग्विजय उवाच-देवी का भंडार भरा रहे, लोग पी-पी कर पड़े रहें
रविवार, 20 सितंबर 2009
सादगी वालों सुनो अरज हमारी......
मादाम सोनिया गांधी, चिरंजीव राहुल गांधी और सादगी के नए प्रणेता प्रणव मुकर्जी से लेकर कैटल क्लास मुहावरे के जनक शशि थरूर तक सब देवियों और सज्जनों से एक गुहार करने का मन हो रहा है। कांग्रेस की पीवी नरसिंहराव सरकार में एक रेल मंत्री थे सीके जाफर शरीफ। उन्हें आज भी लोग याद करते हैं, वह भी किसी भी यात्री गाड़ी के जनरल डिब्बे में। उन्हें लोग जिन विशेषणों से नवाजते हैं, उनका समर्थन नहीं किया जा सकता, क्योंकि शरीफ अब इस दुनिया में नहीं हैं। लोग भी क्या करें, उन्हें यह सब इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि जनरल बोगी में सफर करना करीब करीब सजा भुगतने जैसा होता है। लोग शरीफ को कोसते हैं वो इसलिए कि उन्होंने तब तक जारी दिन में स्लीपर कोच में सफर कर सकने की सुविधा को खत्म कर दिया था। गाडिय़ों की संख्या तब से अब तक कई गुना बढ़ चुकी है लेकिन यात्रियों की तादाद से कहीं ज्यादा बढ़ी है। लेकिन जनरल केडिब्बों की संख्या नहीं बढ़ी। कम दूरी की यात्रा में रिजर्वेशन नहीं मिलने पर जो लोग ईमानदारी से जनरल बोगी में पहुंच जाते हैं, उनकी जो दशा इन बोगियों में होती है, वह शशि थरूर के मुहावरे का प्रत्यक्ष उदाहरण है। लंबी दूरियों की गाडिय़ों में लोग सामान रखने की जगह में शरीर को तोड़ मोड़कर सोए रहते हैं, सीटों के बीच में भी लोग सोते हैं। टायलेट मेें भी लोग खड़े और बैठे मिल जाएंगे। करीब करीब 16 साल से यही हालात हैं। हवाई जहाज के इकोनामी क्लास को कैटल क्लास कहनेवाले शशि थरूर को भले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मजाक के बहाने माफ कर दें और थरूर के बयान से वीवीआईपी महाशयों और देवियों को संतोष न हो लेकिन मेरी गुजारिश इन सादगी पसंदों से है, कृपया किसी एक्सप्रेस के खासकर मुंबई जाने वाली और मुंबई से उत्तर भारत की तरफ आने वाली गाडिय़ों के जनरल डिब्बे में एक दफा यात्रा जरूर करें, वह भी किसी पूर्व सूचना या प्रचार के। आपको सादगी का राग बंद करना पड़ेगा या फिर आप में जरा भी मानवीयता होगी तो भारतीय रेलवे में 16 सालों से जारी यह कैटल क्लास बंद कराने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे।
सोमवार, 14 सितंबर 2009
आज हिंदी डे है
आज हिंदी डे है न
उन्हें सुबह से शाम तक,
धारा-प्रवाह हिंदी में बोलते-बतियाते,
देखकर अद्र्धांगिनी घबराईं,
चिंता की लकीरें माथें पर आईं,
एक युक्ति मस्तिक्क में आई,
फौरन पारिवारिक चिकित्सक को लगाया फोन,
साहब की भंगिमाओं और भाषण शैली का बताया एक-एक कोण,
डॉक्टर महोदय तनिक मुस्कराए, लक्षणों पर गौर फरमाया,
बोले- मैडम, घबराइए मत,
कल सुबह तक साहब हो जाएंगे ठीक,
बोलने लगेंगे फर्राटेदार अंग्रेजी या अपनी प्यारी भाषा हिंगिलिश,
एक ही दिन का है यह रोग, दरअसल आज हिंदी डे है न॥
-सतीश एलिया
रविवार, 13 सितंबर 2009
हिंदी का सर्वाधिक अहित हिंदी पत्रकारिता कर रही है
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
भूल गलती..... को याद करते हुए
और -एक साहित्यिक की डायरी से....
अगर मैं उन्नति के उस जीने पर चढने के लिए ठेलमठेल करने लगूं तो शायद मैं भी सफल हो सकता हूं। लेकिन ऐसी सफलता किस काम की जिसे प्राप्त करने के लिए आदमी को आत्म-गौरव खोना पडे, चतुरता के नाम पर बदमाशी करना पडे। शालीनता के नाम पर बिल्कुल एकदम सफेद झूठी खुशामदी बातें करनी पडें। जिन व्यक्तियों को आप क्षण-भर टालरेट नहीं कर सकते, उनके दरबार का सदस्य बनना पडे। हां, जो लोग यह सब कर लेते हैं, वे अपनी यशः पताकाएं फहराते हुए घर लौटते हैं और कितने आत्मविश्वास से बात करते हैं। मानो उन्हीं का राज्य है। बहुरूपिया शायद पुराना हो गया है, लेकिन उसकी कला दन दिनों अत्यंत परिष्क्रत होकर भभक उठी है।
अब तक क्या किया...
अब तक क्या किया,
जीवन क्या जीयाकिस-किसके लिए तुम दौड गए,
करूणा के द्रश्यों से हाय मुंह मोड गए
बन गए पत्थर।
अरे! मर गया देश जीवित रह गए तुम!!
अब क्या कियाजीवन क्या जीया।
भूल गलती
आज बैठी है जिरहबख्तर पहन करतख्त पर दिल के,
चमकते हैं खडे हथियार उसके दूर तक,
आंखे चिलकती हं नुकीले तेज पत्थर-सी,
खडी हैं सिर झुकाए
सब कतारें
बेजुबां बेबस सलाम में,
अनगिनत खंभों व मेहराबों-थमे
दरबारे-आम में।
सामनेबेचैन घावों की अजब तिरछी लकीरों से कटाचेहराकि
जिस पर कांपदिल की भाफ उठती है
पहने हथकडी वह एक उंचा कद,
समूचे जिस्म पर लत्तर,
झलकते लाल लंबे दागबहते खून के।
वह कैद कर लाया गया ईमानसुलतानी निगाहों में निगाहें डालता,
बेखौफ नीली बिजलियों को फेंकताखामोश!!
सब खामोशमनसबदार,शायर और सूफी,अलगजाली, इब्ने सिन्ना, अलबरूनी,आलिमो फाजिल सिपहसालार, सब सरदार
हैं खमोश!!
नामंजूर,
उसको जिंदगी की शर्म की-सी शर्तनामंजूर,
हठ इनकार का सिर तान खुद-मुख्तार।
कोई सोचता उस वक्तछाए जा रहे हैं सलतनत पर घने साए स्याह,
सुल्तानी जिरहबख्तर बना है सिर्फ मिटटी का,
वो-रेत का-सा ढेर शंहशाह,
शाही धाक का अब सिर्फ सन्नाटा!!;
लेकिन, ना,जमाना सांप का kata
;आलमगीरद्धमेरी आपकी कमजोरियों के सयाहलोहे का जिरहबख्तर पहन,
खूंख्वारहां, खूंख्वार आलीजाह,
वो आंखें सचाई की निकाले डालता,
सब बस्तियां दिल की उजाडे डालता,
करता, हमें वह घेर,
बेबुनियाद, बेसिर-पैरहम सब
कैद हैं उसके चमकते ताम-झाम में
शहरी मुकाम में!!
इतने में,
हमीं में सेअजीब कराह-सा कोई निकल भागा,
भरे दरबारे-आम में मैं भीसंभल जागा!!
कतारों में खडे खुदगर्ज बा-हथियारबख्तरबंद समझौत्ेसहमकर,
रह गए,
दिल में अलग जबडा, अलग दाडी लिए,
दुमुंहेपने के सौ तजुर्बों की बुजुर्गी से भरे,
दढियल सिपहसालार संजीदा सहमकर रह गए!!
लेकिन, उधर उस ओर,कोई, बुर्ज के उस तरफ जा पहुंचा,
अंधेरी घाटियों के गोल टीलों,
घने पेडों मेंकहीं पर खो गया,
महसूस होता है कि वह बेनामबेमालूम दर्रों के इलाके में;
सचाई के सुनहले तेज अक्सों के धुंधलके मेंद्ध मुहैया कर रहा लश्कर,
हमारी हार का बदला चुकाने आएगासंकल्प-धर्मा चेतना का रक्तप्लावित स्वर,
हमारे ही ह्रदय का गुप्त स्वर्णाक्षरप्रकट होकर विकट हो जाएगा!!
- गजानन माधव मुक्तिबोध
जन्म श्योपुर मप्र 13 नवंबर 1917, निधन दिल्ली11 सितंबर 1964
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
हडताली कालेज शिक्षकों, सरकार और मीडिया से चंद सवाल.....
1 वर्तमान में मप्र में उच्च शिक्षा की स्थिति क्या है? आशय नतीजों से और प्रदेश के डिग्रीधारी युवाओं को क्या कॅरियर मिल पा रहा है?
2 प्रदेश में कितने सरकारी और कितने गैर सरकारी कालेज हैं?
3 सरकारी कालेजों में वर्तमान में शिक्षकों के कितने पद खाली और कितने भरे हैं?
5जो पद भरे हैं उनमें से कितने शिक्षक पीएससी के जरिए भर्ती हुए और जो पिछले दरवाजे से भर्ती हुए वे क्या उस वक्त यूजीसी के मापदंडों को पूरा कर रहे थे?
5मापदंड पूरा नहीं कर रहे थे उन्हें कोई भी वेतनमान क्यों दिया जा रहा है? क्या इनसे बाद में पीएससी के जरिए चयन की अनिवार्यता का पालन नहीं कराया जाना चाहिए था?
6 सरकार खाली पद भरने पीएससी की परीक्षा क्यों नहीं करा पा रही है? प्राध्यापक पदों को भरने शुरू की गई प्रक्रिया किसके दवाब में रोक दी गई और क्यों?
7 क्या हडताली शिक्षक और शिक्षा मंत्री को पता है प्रदेश में अब सरकारी कालेजों से ज्यादा संख्या निजी कालेजों की है, जिनमें सरकारी कालेजों के मोटी तनख्वाह पाने वाले शिक्षकों से ज्यादा योग्य शिक्षक उनकी तुलना में एक चैथाई तनख्वाह पर काम कर रहे हैं?
8 सरकारी शिक्षकों को अपने ही इन साथियों को छठवां वेतनमान या यूजीसी वेतनमान न मिलने की कोई फिक्र है? क्या सरकार निजी कालेजों में कागज के बजाय हकीकत में वेतनमान लागू करा पाएगी? 9 सालों से शहरों में ही वह भी एक ही शहर और एक ही कालेज में जमे शिक्षकों के तबादले कर कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों के कालेजों में रिक्त पद भरने के लिए सरकार कोई कदम उठाएगी?
10क्या हडताली शिक्षक रिजल्ट सुधारने और मप्र के स्नातक और स्नातकोत्तरों को अन्य प्रदेशों में इज्जत की नजर से देखने लायक बनाने के लिए भी अपनी तनख्वाह बढवाने की ही तरह गंभीर होंगे?