शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

कंट्रोवर्सी प्रेमी न्यूज चैनलों ने शिवराज को बना दिया राज

मप के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुक्रवार को अपनी एक कथित विवादास्पद टिप्पणी से विवाद में घिरते नजर आए। उन्होंने सतना में कहा 'ऐसा नहीं होगा कि कारखाना यहां लगे और काम बिहार और उप्र के लोगों को मिले।Ó उनकी इस टिप्पणी को मीडिया चैनलों ने न केवल जमकर उछाला बल्कि शिवराज की तुलना महाराष्टï्र नवनिर्माण सेना के सुप्रीमो राज ठाकरे से करने की कोशिश भी की। श्री चौहान को देर शाम स्पष्टï करना पड़ा कि उनका आशय 50 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को देने का था, हर भारतवासी का मप्र में स्वागत है। उनकी मंशा मप्र के मूल निवासियों को नौकरी में प्राथमिकता दिलाने की थी न कि अन्य राज्यों के लोग को प्रदेश में आने से रोकने की। मध्यप्रदेश के लोगों और शिवराज सिंह चौहान को जानने वाले शिवराज की तुलना राज ठाकरे से किए जाने को पचा नहीं पा रहे हैं। इस पूरे प्रकरण से एक बात तो साफ है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया का काम विवाद पैदा करना और उसे फैलाने में ज्यादा है। दरअसल श्री चौहान ने शुक्रवार को दोपहर में सतना में आयोजित गरीब उत्थान सम्मेलन में कहा कि प्रदेश में स्थापित होने वाले कारखानों मध्यप्रदेश के मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसा नहीं होगा कि कारखाना सतना में लगे और पहले काम उप्र-बिहार के लोगों को मिले। जहां कहीं भी कारखाने उद्योग धंधे या कारखाने लगें वहां पचास प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। कारखानों में जिनकी जमीनें जाती हैं, उनकी पीड़ा दूर की जाना चाहिए। यदि स्थानीय लोग प्रशिक्षित नहीं हैं, तो उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। श्री चौहान के बयान को निजी न्यूज चैनलों दिखाने के बाद इस मामले में राष्टï्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और जद-यू प्रमुख शरद यादव की प्रतिक्रियाएं दिखार्ईं जाने लगीं। बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए लालू ने बिहारियों की जो स्थिति बनादी उसे न केवल बिहारी बल्कि पूरे देश के लोग जानते हैं। शरद यादव राजनीति भले बिहार की करते हों, लेकिन वे हैं तो मध्यप्रदेश के ही। लेकिन नेता प्रदेश और देश का व्यापक हित बाद में और अपने हित पहले देखते हैँ। न्यूज चैनलों ने श्री चौहान की तुलना उत्तर भारतीयों को मुंबई से खदेडऩे का अभियान चला रहे महाराष्टï्र नवनिर्माण सेना सुप्रीमो राज ठाकरे से करना शुरू कर दी। श्री चौहान को देर शाम इंदौर में बयान जारी कर सतना में की गई टिप्पणी पर स्पष्टïीकरण देना पड़ा। दरअसल केंद्र सरकार की पुनर्वास नीति में ही स्पष्ट प्रावधान है कि कारखाने लगाने में 50 फीसदी रोजगार उन लोगों को दिया जाए, जिनकी जमीनें उस उद्योग में प्रभावित हुई हैं। यही पुनर्वास नीति सभी राज्यों में भी लागू है। लेकिन इस पर अमल नहीं होता। मीडिया को इस विषय पर वास्तविकता उजागर करना चाहिए कि पुनर्वास नीति का राज्य सरकार क्या कर रही हैं। किन उद्योगों में स्थानीय लोगों को रोजगार मिला या किन में नहीं। यह करने के बजाय भड़काने वाले विवाद क्रिएट करना ही मीडिया का काम रह गया लगता है। मप्र में हर भारतवासी का स्वागत- चौहानअपने स्पष्टीकरण में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा है कि- मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि अन्चय प्रदेश के नागरिक मप्र न आएं। बिहार, उप्र, दक्षिण भारत, पंजाब या भारत के किसी भी अंचल के लोग मप्र आएं, उनका हार्दिक स्वागत है। उन्होंने कहा कि मैं भारत को मां मानता हूं और हम सब भारतवासी उसके लाल हैं। मैं ऐसी हर बात का विरोध करता हूं जो देशवासियों में विभेद पैदा करती है। उन्होंने कहा- हम सब भारत मां के लाल, भेद-भाव का कहां सवाल।

4 टिप्‍पणियां:

MANOJ JOSHI ने कहा…

ELECTRONIC MEDIA APNI TRP BADHANE KE LIYE AKSAR IS TARAH KE VIVADON KO JANM DETA HE.RAJNATH SINMGH AUR MOHAN BHAGWAT KE BAYANON KA VIVAD BHI ISI ELECTRONIC MEDIA KI DEN THA. KAI BAR ELECTRONIC MEDIA PAR JHHOTHI AUR APUSHT KHABAREN BHI PRASARIT HO JATI HE. IS SAB KA EK BURA ASAR YAH HO RAHA HE KI POORE MEDIA JAGAT KI CHAVI BIGAD RAHI HE, WOH PRINT AUR ELECTRONIC ME ANTAR NAHI SAMAJHTA. ISKA SAMADHAN BHI MEDIA JAGAT KO TALASHNA HOGA.
MANOJ JOSHI

रंजन (Ranjan) ने कहा…

वाह जी वाह.. यहां भी मीडिया दोषी.. चौहान जोश जोश में जो चाहा सो बोल दिये.. और दोषी मिडिया..

जब वो बोले तो ५०% की बात नहीं की.. बाद में स्पष्टीकरण देना पड़ा.. और जब एक मां के लाल है तो फिर क्या बिहारी और क्या उप्र के और क्या मप्र के..

निशाचर ने कहा…

शिवराज ने जो कुछ कहा वह गलत नहीं था. यदि किसी प्रदेश में उद्योग लगाया जाता है तो वहां की सरकार भूमि की कीमत, रजिस्ट्री और टैक्स में कई तरह की रियायते इस उम्मीद से देती है कि इस उद्योग के लगने से वहां के लोगों की बेरोजगारी दूर होगी और खुशहाली आएगी, परन्तु वहां के निवासियों की जमीने ले लेने और घर-बार उजाड़ देने के बाद यदि रोजगार दूसरे जगहों से आने वालों को मिलता है तो यह उनके साथ अन्याय ही है. नक्सली समस्या की जड़ में मूलतः यही सब बातें हैं जो आम किसानों और आदिवासियों को हिंसा की तरफ धकेल रहीं हैं.
.......परन्तु महाराष्ट्र में राज ठाकरे और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह दोनों के रूख में खासा अंतर है. जहाँ राज ठाकरे पढ़े-लिखे महाराष्ट्रियों को नौकरियों में प्राथमिकता देने की बात करते हैं लेकिन इसके लिए हिंसा का सहारा लेते हैं और उनका निशाना बनते हैं रिक्शा चालक, ठेले -खोमचे-रेहडी वाले, मजदूर, दूधिये और इसी तरह की मेहनत मजदूरी करने वाले गरीब परप्रांती, वहीँ शिवराज अपने प्रदेश में सरकारी छूट पर लगने वाले उद्योगों में विस्थापितों को रोजगार देने की बात कह रहे हैं जिसकी तुलना राज ठाकरे के तरीकों से की जा रही है.

@रंजन
जहाँ तक बात मीडिया की है तो उसके तौर तरीकों से कोई भी अनजान नहीं रह गया है. मीडिया स्वयं नैतिकता की चाहे जितनी भी ऊँची उडान भरे लेकिन वास्विकता यह है कि वह भी इस मोर्चे पर अपनी विश्वसनीयता खो चुका है. लोकतंत्र का यह चौथा खम्बा भी भ्रष्ट स्वानों के मूत्र विसर्जन से जंग खाकर खोखला हो चुका है...........

प्रवीण एलिया ने कहा…

ShivrajJi Utsah mai bol gaye lekin galat kuch bhi nahi kha hai Noukariya pahle pradeshwashiyo hi milna chahiye, sisse kshetriye berojgari khatm ho sake.