गुरूवार को जब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के माननीय जज एक विद्यार्थी की याचिका पर सुनवाई कर फैसला लिख रहे थे, ठीक उसी वक्त भोपाल के नूतन कॉलेज के बाहर धरने पर बैठे कॉलेज शिक्षकों को एक प्राध्यापक महोदय रोज की तरह संबोधित कर रहे थे। वे कह रहे थे विद्यार्थियों को ठीक उसी तरह हमारा साथ देना चाहिए जैसा महाभारत युद्ध में हनुमानजी ने किया था। महाशय खुद समेत सभी हड़ताली शिक्षकों को पांडव और सरकार को कौरव सेना इंगित कर छात्रों को हनुमानजी बताने की चेष्ठा कर रहे थे। छात्र हनुमानजी के दूत हो सकते हैं, क्योंकि हनुमानजी युवा लहर के प्रतीक हैं, अन्याय और असत्य पर मुष्टिï प्रहार करने वाले हैं। खैर कोर्ट ने प्राध्यापकों की हड़ताल को गलत और उनकी मांग को खारिज कर पढ़ाने का काम बहाल करने का आदेश दे दिया। शाम तक तंबू उखड़ गया। कोर्ट का फैसला सत्य की जीत है, वो इसलिए कि अध्यापन का मूल काम छोड़कर वेतन बढ़वाने के लिए कॉलेज बंद कर देना शिक्षक वृत्ति और गुरू परंपरा के न केवल खिलाफ है बल्कि त्याज्य है। हां अगर उन्हें वेतन मिलना बंद हो जाए तो उनकी जीविका के लिए की जाने वाली हड़ताल को हर हाल में समर्थन मिल सकता है, विद्यार्थियों की तरफ से भी और आम जनता की भी तरफ से भी। शैक्षणिक रूप से अन्य कई प्रदेशों के मुकाबले अपेक्षाकृत पिछड़े मप्र में शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने में जुटने के बजाय वेतन बढ़वाने और सालों साल शहरों में पदस्थ बने रहने वाले प्राध्यापकों के नेतृत्व में हुए इस नाकाम आंदोलन का ऐसा हश्र स्वागत योग्य है। अब सरकार को सख्त कदम उठाते हुए इन प्राध्यापकों से पढ़ाई, प्रैक्टिल और इम्तिहान में हुए विलंब की भरपाई करने का आदेश देना चाहिए। ऐसा होगा तो एक नजीर बनेगी और छात्रों के हित में सरकार की पहल को भी सराहना मिलेगी।
(कृपया इस संबंध में मेरी 10 सितंबर 2009 की पोस्ट भी देखें)
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