सोमवार, 2 नवंबर 2009
डैमेज कंट्रोल में सफल रहे शिवराज
मप के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल विस्तार में उन पूर्व मंत्रियों को दरकिनार रखने में नाकामयाब रहे थे, जिन्हें कथित भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्होंने अपनी दूसरी पारी की शुरूआत में शामिल नहीं किया था। अजय विश्रोई, नरोत्तम मिश्रा और विजय शाह अपने पूर्व कार्यकाल में न केवल शिवराज सिंह चौहान के खासमखास थे बल्कि ताकतवर भी थे। करीब एक साल तक बिना मंत्री पद के रहे इन नेताओं में से अकेले नरोत्तम मिश्रा ऐसे थे, जिन्हें श्री चौहान फिर से अपनी टीम में रखने के इच्छुक थे। खैर दिल्ली परिक्रमा और वहां के नेताओं को प्रसन्न करने में कामयाब रहे विजय शाह और अजय विश्रोई भी फिर से मंत्री बन ही गए थे। लेकिन श्री चौहान को विभाग वितरण में पांच दिन लग गए। इसकी वजह यही थी कि कथित दागियों को मंत्री बनाने और प्रबल दावेदार तथा नए चेहरों को शामिल नहीं किए जाने से संगठन में भीषण असंतोष फूट पड़ा था। विंध्य में केदार शुक्ला को मंत्री नहीं बनाए जाने पर सामूहिक इस्तीफे हो गए थे। खैर विस्तार में हुई खामियों और दबावों के नतीजे में हुए नुकसान की भरपाई में शिवराज कामयाब दिख रहे हैं। उन्होंने स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग में अपना करिश्मा दिखा चुके अजय विश्रोई को इस मर्तबा पशुपालन,मछलीपालन और पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण जैसे हलके समझे जाने वाले विभाग दिए तो आदिवासी मंत्री विजय शाह को इस बार आदिम जाति कल्याण एवं अनुसूचित जाति कल्याण महकमा दिया। वे पहले वन विभाग में मंत्री रहकर खासे चर्चित रह चुके हैं। नरोत्तम मिश्रा स्कूल शिक्षा और फिर नगरीय प्रशासन विभाग के ताकतवर मंत्री रहे थे, इस मर्तबा उन्हें संसदीय कार्य और विधि विधायी विभाग मिला है। कुछ महीने केंद्र में मंत्री रहे और होशंगाबाद से कई दफा सांसद रहे सरताज सिंह को एक साल पहले मंत्री नहीं बनाने की गलती दुरूस्त कर उन्हें मंत्री बनाया गया और वन जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी दिया गया है। जल संसाधन विभाग फिर से पाने के लिए मचल रहे और नाराजी दिखा रहे अनूप मिश्रा से ऊर्जा महकमा ले लिया गया तो कैलाश विजयवर्गीय से संसदीय कार्य विभाग वापस हुआ। ये दोनों तेजतर्रार यह महकमे छोडऩे के इच्छुक थे। सबसे ज्यादा खराब स्थिति शिक्षा मंत्री के तौर पर उच्च, स्कूल और तकनीकी शिक्षा तीनों महकमे ठीक से नहीं सम्हाल पा रही अर्चना चिटनिस की हुई। वे अब केवल स्कूल शिक्षा मंत्री रह गईं हैं। शिवराज मंत्रिपरिषद की दूसरी महिला मंत्री रंजना बघेल के पास अब केवल महिला एवं बाल विकास विभाग रह गया है। उनके पास अब तक सामाजिक न्याय महकमा भी था। लोकसभा चुनाव में अपने पति को टिकिट दिलाने में कामयाब और जिताने में नाकामयाब रहीं रंजना को इसी वजह से नुकसान उठाना पड़ा है। गृह, जेल, परिवहन महकमों के मंत्री जगदीश देवड़ा से गृह विभाग ले लिया गया है। यह वजनदार विभाग भोपाल के विधायक उमाशंकर गुप्ता को मिला है। पहली बार के विधायक होते हुए भी बाबूलाल गौर मंत्रिमंडल में सबसे ताकतवर मंत्री रहे गुप्ता को शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्री पद नहीं मिला था। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव को सामाजिक न्याय विभाग भी दे दिया गया। लेकिन उनका पसंदीदा विभाग सहकारिता नहीं मिला। पीएचई और सहकारिता विभाग में अपनी कार्यशैली के कारण चर्चित मंत्री गौरीशंकर बिसेन के विभाग बरकरार रहने से यह संकेत गया है कि महकमे की कार्यप्रणाली से मुख्यमंत्री फिलहाल संतुष्ट हैं। लक्ष्मीकांत शर्मा को उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग के महकमे देकर उनका वजन बढ़ा दिया गया है। राज्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल से वन लेकर नए मंत्री सरताज सिंह को दिया गया है। लेकिन श्री शुक्ल को ऊर्जा जैसा महत्वपूर्ण महकमा भी दे दिया गया है। इतने महत्वपूर्ण विभाग का जिम्मा राज्य मंत्री को देना दूरदर्शी फैसला नहीं माना जा सकता। कुल मिलाकर शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल विस्तार में झेले दवाब को विभाग वितरण में परे धकेलने मेें कामयाब नजर आ रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में महिलाओं और नए चेहरों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलने से पनपे असंतोष का क्या असर होता है, इसका लिटमस टेस्ट आसन्न नगरीय निकाय चुनाव में देखने को मिलेगा।
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