गुरुवार, 10 सितंबर 2009

हडताली कालेज शिक्षकों, सरकार और मीडिया से चंद सवाल.....

बुधवार को भोपाल में मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने जा रहे कालेज शिक्षकों के एसोसिएशन के सदस्यों पर कथित पुलिस लाठी चार्ज के समाचारों से अखबार रंगे हैं और टीवी चैनल वालों ने भी इस कथित भयंकर अत्याचार का जमकर कवरेज किया। जो नहीं दिखाया गया और जो नहीं छप रहा है, उसमें कई सवाल हैं जो इन शिक्षकों से पूछे जाना चाहिए और मीडिया से भी की किसी मामले की तह तक क्यों नहीं जाते, सरकार को कटघरे में खडा कर देने भर से काम की इतिश्री हो जाती है क्या? कई दिनों से यूजीसी वेतनमान के लिए आंदोलन कर काम बंद कर बैठे कालेज शिक्षकों के आंदोलन स्थल पर कारों की तादाद देखकर ऐसा लगता है कि भरे पेट वालों का यह आंदोलन आखिर किनके हिस्से का पैसा अपने वेतन में लेने के लिए है? दो दिन पहले भोपाल के नूतन काॅलेज के बाहर तंबू लगाए बैठे ये शिक्षक अभी तो ये अंगडाई है, आगे और लडाई है जैसे नारे लगा रहे थे तो एकबारगी हंसी आई। जिस देश में 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर हैं वहां के ये शिक्षक तनख्वाह 30 हजार से 60 और 70 हजार रूपए मासिक करवाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इन शिक्षकों और मीडिया को अगर वक्त हो और उन तक ये सवाल पहुंचे तो क्रपया जरूर दें, सरकार तो खैर देर सबेर वोट का गणित देखकर इनके आंदोलन पर निर्णय करेगी ही, भले ही उच्च शिक्षा और स्टूडेंटस का जो भी हो, चाहे निजी कालेजों में कोई नियम लागू हो रहा हो या नहीं। पेश हैं सवाल
1 वर्तमान में मप्र में उच्च शिक्षा की स्थिति क्या है? आशय नतीजों से और प्रदेश के डिग्रीधारी युवाओं को क्या कॅरियर मिल पा रहा है?
2 प्रदेश में कितने सरकारी और कितने गैर सरकारी कालेज हैं?
3 सरकारी कालेजों में वर्तमान में शिक्षकों के कितने पद खाली और कितने भरे हैं?
5जो पद भरे हैं उनमें से कितने शिक्षक पीएससी के जरिए भर्ती हुए और जो पिछले दरवाजे से भर्ती हुए वे क्या उस वक्त यूजीसी के मापदंडों को पूरा कर रहे थे?
5मापदंड पूरा नहीं कर रहे थे उन्हें कोई भी वेतनमान क्यों दिया जा रहा है? क्या इनसे बाद में पीएससी के जरिए चयन की अनिवार्यता का पालन नहीं कराया जाना चाहिए था?
6 सरकार खाली पद भरने पीएससी की परीक्षा क्यों नहीं करा पा रही है? प्राध्यापक पदों को भरने शुरू की गई प्रक्रिया किसके दवाब में रोक दी गई और क्यों?
7 क्या हडताली शिक्षक और शिक्षा मंत्री को पता है प्रदेश में अब सरकारी कालेजों से ज्यादा संख्या निजी कालेजों की है, जिनमें सरकारी कालेजों के मोटी तनख्वाह पाने वाले शिक्षकों से ज्यादा योग्य शिक्षक उनकी तुलना में एक चैथाई तनख्वाह पर काम कर रहे हैं?
8 सरकारी शिक्षकों को अपने ही इन साथियों को छठवां वेतनमान या यूजीसी वेतनमान न मिलने की कोई फिक्र है? क्या सरकार निजी कालेजों में कागज के बजाय हकीकत में वेतनमान लागू करा पाएगी? 9 सालों से शहरों में ही वह भी एक ही शहर और एक ही कालेज में जमे शिक्षकों के तबादले कर कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों के कालेजों में रिक्त पद भरने के लिए सरकार कोई कदम उठाएगी?
10क्या हडताली शिक्षक रिजल्ट सुधारने और मप्र के स्नातक और स्नातकोत्तरों को अन्य प्रदेशों में इज्जत की नजर से देखने लायक बनाने के लिए भी अपनी तनख्वाह बढवाने की ही तरह गंभीर होंगे?

5 टिप्‍पणियां:

manisha ने कहा…

ye vo yaksh prashan hai jinhe yudhishter ka intzar hai!!! jha tak bat private colleges ki hai vha to abi b 3 betanman lagu hai,haan kagji ghodo ki bat alag hai ! lekin sach y b hai guru shishy smbandho ki madhurta yha abhi b baki hai !! or kuch shikshak aise b hai k dil unki ijjat ma sman krta b hai or manta. or nam ap or mai dono hi jante hai

manisha ने कहा…

ye vo yaksh prashan hai jinhe yudhishter ka intzar hai!!! jha tak bat private colleges ki hai vha to abi b 3 betanman lagu hai,haan kagji ghodo ki bat alag hai ! lekin sach y b hai guru shishy smbandho ki madhurta yha abhi b baki hai !! or kuch shikshak aise b hai k dil unki ijjat ma sman krta b hai or manta. or nam ap or mai dono hi jante hai

manisha ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
राज भाटिय़ा ने कहा…

अंधी पिस रही है..... ओर कुत्ता चाटे जा रहा है... बस यह चक्कर ऎसे ही चलता रहेगा, कोई नही पुछने वाला इन मास्टरो से कि भाई तुम पढाते कब हो ???

sanjeev persai ने कहा…

बड़ा ही भयानक प्रश्न उठाया है आपने, शिक्षा जगत को कलंकित करने वाले इन हड़ताली प्राध्यापकों को शर्म भी नहीं आ रही है, इन कालेजों में छात्रों का स्तर देखिये और स्वयं इनका स्तर देखिये इनमें से अधिकाँश वे हैं, जो पढ़ते नहीं, पढाते नहीं, शोध से जिनका दूर दूर तक वास्ता नहीं, एक वरिष्ठ प्रोफेसर से बात की समाज शास्त्र के है,
उनसे कहा की - महिलाओं के साथ काम करने वाले कुछ लोगों को समन्वय और स्वसहायता का प्रशिक्षण देना है तो उनका कहना था की पहले आप पूरी तैयारी करके दें फिर में क्लास लूँगा और फीस होगी दो हजार रुपया. आखिर में एक सज्जन मिले जो उनसे कही अधिक काबिल थे जिन्होंने कहा क्लास में ले लूँगा पैसे की कोई बात नहीं है.
दो धंटे की क्लास साढ़े तीन घंटे चली.
बात करते है मोटी तनखा की...................