मंगलवार, 17 नवंबर 2015

व्यर्थ ही धन गंवायो....

आप अपनी पत्नी को खुश करने के लिए जो जो कर सकते हैं, उनमें से एक काम एक साफ सुधरी पारिवारिक सोद्देश्य फिल्म दिखाना भी है, जिसमें पर्याप्त मात्र में इमोशन हों, संगीत हो, सजधज हो। राजश्री प्रोडक्शन की तमाम फिल्में देख चुका मैं और मेरी पत्नी भी ताराचंद बड़जात्या के पुत्र सूरज की फिल्म जिसमें फोक्स समेत न जाने कितने पार्टनर हैं, के ताजा प्रोडक्ट प्रेम रतन धन पायो देखने जा पहुंचे एक मॉल में। दो टिकट चार सौ रुपए के मिले। टिकट खिड़की पर एक भी दर्शक नहीं होने का मतलब हमने लगाया कि फिल्म शुरू हो चुकी है और हाऊसफुल के कारण अब शायद ही टिकट मिले। मगर हम गलत थे, न केवल टिकट मिला बल्कि मनचाही सीट भी मिली और हॉल में महज 25 दर्शक ही थे। वह भी फिल्म रिलीज होने के पांचवें दिन। खैर शाहरुख खान की कंपनी रेड चिली इंटरटेनमेंट जिसके वे खुद स्टार हैं, के ट्रेलर से लेकर कई अन्य ट्रेलर और दर्जनों विज्ञापनों के बाद फिल्म शुरू हुई और पूरी फिल्म में जो एक सातत्य रहा वह एक पल को भी नहीं टूटा यानी बोरियत और झुंझालहट। पत्नी को झपकियां आती रहीं। मेरी अगली कतार में बैठी एक लड़की ने सेलफोन निकालकर चैटिंग को फिल्म देखने से बेहतर काम समझा और वह पूरी फिल्म में यही करती रही। उसके साथ बैठे लड़के भी मोबाइल से तो कभी आपस में बतियाते रहे। किसी जमाने में फिल्म दीवाना और पत्रकारिता में आने के बाद एक सैकड़ा फिल्मों की अखबार में समीक्षा लिख चुका मैं भी यह समझने की कोशिश करता रहा कि इस फिल्म में एकाध तुक की बात मिल जाए। आखिर तक ऐसा नहीं हुआ।
सलमान खान ने जैसे ठान लिया था कि उन्हें स्टारडम दिखाना है, एक्टिंग की क्या जरूरत। वे जरूरत से ज्यादा मोटे लगे और न हास्य में सुहाए और न ही गुस्से में। मंझे हुए अभिनेता अनिल कपूर की पुत्री सोनम न तो सुंदरी राजकुमारी लगीं और न ही अभिनेत्री। स्टोरी और सीक्वेंस बेहद सतही थे। अभिनय तो केवल अनुपम खेर ने ही किया, उनके हिस्से जो आया उन्होंने शिद्दत से निभाया। सईद जाफरी की कमी नहीं खलेगी हिंदी सिनेमा को क्योंकि इंडस्ट्री के पास अनुपम खेर हैं। गानों का कोई तुक नहीं, ज्यादातर धुन हिमेश रेशमिया ने यहां वहां से इंस्पायर होकर उठाई हैं, ऐसा लगता है। हां, पलक मुछाल की आवाज गानों में बेहद कर्णप्रिय लगती है। जिस रियासत की यह कहानी बताई गई है, वह भी स्थापित नहीं होती। कभी राजस्थानी तो कभी गुजराती का प्रयोग कर न जाने डायरेक्टर फिल्म बेचने के लिहाज से क्या क्या ठूंसता चला गया है। महलों के भव्य दृश्य और फाइटिंग की सिंघम शैली रोहित शेट्टी की पहचान है, यह राजश्री की फिल्म में मिसफिट लगती है। फिल्म का नाम प्रेम रतन धन पायो भी महज तुकबंदी ही लगता है। फिल्म का क्लाईमैक्स बेहद लचर और बेअसर है। कुल मिलाकर तीन घंटे की बर्बादी और पत्नी का ये कहना- अपन इन 400 रुपए से कुछ खरीद लेते तो बेहतर होता। मुझे बेहद आश्चर्य हो रहा है कि आखिर अखबारों में तीन दिन में 140 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाली फिल्म में पांचवें दिन के शो में महज 25 दर्शक क्यों थे? पत्नी ने एक जोरदार संवाद थिएटर से निकलते ही कहा- व्यर्थ ही पैसा गंवायो।