एक दीप धरें मन की देहरी पर
धीरे धीरे घिरता है तम,
ग्रस लेता जड़ और चेतन को
निविड़ अंधकार गहन है ऐसासूझ न पड़ता
हाथ को भी हाथ
क्या करें,
कैसे काटें इस तम को
यह यक्ष प्रश्न
विषधर साकर देता किंकर्तव्यविमूढ़
तो जगती है एक किरनउम्मीद की
टिमटिमातीकंपकंपाती दीप शिखा सी
आओ लड़ें तिमिर अंधकार से,
एक दीप धरें मन की देहरी परप्रेम की जोत जगाएं हम
मिटे अंधियारा
बाहर काभीतर का भी,
आओ दीपमालिका सजाएं,
दीपावली बनाएंएक दीप धरें मन की देहरी पर।।
- सतीश एलिया
3 टिप्पणियां:
jeevan ko nai rah dikha rhi hai nishit roop se kavita bhut behtar hai. aap samay samay per kvita likha krein. dipawali ki bdhai
एक उम्दा रचना!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
aapko deepawali ki shubhkamnay
एक टिप्पणी भेजें