बुधवार, 23 सितंबर 2009

जिंदादिल कौन है?

जो खुद पर हंस सके वही सबसे ज्यादा जिंदादिल हैं। जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जीया करते हैं। मित्रों आज में आपसे ऐसे शख्स के बारे में बात कर रहा हूं, जिनका सेंस आफ ह्यूमर गजब का है और जीवट भी उतने ही गजब का। यह बात इसलिए कि वे अक्सर मेरे पास आते हैं, बावजूद इसके कि मैं शायद इक्का दुक्का मर्तबा ही उनसे जाकर मिला हूं। वे जब भी आते हैं, कोई ऐसी बात, जुमला या चुटकुला छोड़ जाते हैं कि देर तक मन गुदगुदाता रहता है। कल जब वे आए तो बोले- मैं संडे को छत पर चला गया था, सोमवार को ईद हो गई। कोई अपने गंजेपन को इस तरह एंजाय कर सकता है भला! यह जिंदादिल इंसान हैं हमारे पत्रकार मित्र डा. महेश परिमल अरे, वही ब्लाग जगत में 'संवदेना के पंखÓ लिखते हैं। इसमें साबुन से लेकर कहानी और कविता से लेकर शोर शराबे तक तमाम विषयों पर शिद्दत से जानकारियां दी जाती हैं और संवेदना जगाई जाती है। मैं डा. परिमल को करीब पौने दो दशक से जानता हूं, जब वे देशबंधु अखबार में भोपाल आए थे, इसके बाद वे नवभारत में रहे और इन दिनों गुजराती अखबार दिव्य भास्कर के लिए काम करते हैं। वे पत्रकारिता में पीएचडी हैं और वह भी शीर्षक अर्थात हेडलाइंस में। इस दौर में जब डा. परिमल और उन सरीखे अन्य कई पढ़े लिखे पत्रकार किन्हीं वजहों से हिंदी पत्रकारिता में हाशिए पर हैं, वे लेखन में पूरी तरह न केवल संलग्न हैं, बल्कि बाल पत्रिकाओं से लेकर रेडियो तक के लिए सतत लेखन करते रहते हैं। वह तब जब उन्हें आंखों की क्षमता प्रभावित हो जाने की वजह से लंबे समय तक इलाज कराना पड़ा था। अब भी उन्हें लिखने और पढऩे में खासी तकलीफ होती है, लेकिन वे सिवाय लिखने और पढऩे के कोई और काम कर ही नहीं सकते। पूरी तरह मसिजीवी इस शख्स के बिंदास अंदाज का एक और नमूना बताना चाहता हूं। एक दिन वे आए और बोले अगर मैं आपको गाली देना चाहूं तो बिना गाली दिए भी गाली दे सकता हूं। हमारे एक साथी ने पूछा तो डा. परिमल बोले- मैं कहूंगा आप विशाल भारद्वाज की ताजा फिल्म के टाइटल हैं।

3 टिप्‍पणियां:

Admin ने कहा…

यह भी कमाल है

समयचक्र ने कहा…

महेश परिमल जी से मेरी दो बार फोन पर चर्चा हो चुकी है उन्होंने बताया था की वे भोपाल में है और गुजराती संस्करण के लिए लिखते है .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

खुद पर हँसना सचमुच जिन्दादिली की पहचान है.