बुधवार, 16 दिसंबर 2009
सर हरिसिंह गौर के नगर का पार्टियों और नेताओं के गाल पर झन्नाटेदार झापड
मध्यप्रदेश में नगर निगम चुनाव में महान शिक्षाविद, कानूनविद सर डा. हरिसिंह गौर के नगर सागर के मतदाताओं ने प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा और केंद्र की सत्ताधीश पार्टी कांग्रेस को झन्नाटेदार झापड सा सबक सिखाया है। प्रदेश में मंगलवार की देर रात आए 12 नगर निगमों के चुनाव में 7 भाजपा, 2 कांग्रेस, 2 बसपा के मेयर चुने गए। लेकिन सबसे ज्यादा 43 हजार वोटों से सागर शहर के लोगों ने निर्दलीय किन्नर कमला भुआ को महापौर पद पर जिताया। सागर से विधायक, सांसद भाजपा के हैं, चुनाव तक महापौर भी भाजपा का ही था। लेकिन जनता ने तय कर लिया था, कि शहर के विकास के मामले में नंपुसक साबित होते नजर आ रहे राजनीतिक दलों के नेताओं के बजाय सबके भले के लिए दुआएं मांगते और अपना दर्द शिव के गरल की तरह पी जाने वाले किन्नर कमला बुआ को चुनना है। कमला बुआ की जीत सागर की दीवालों पर लिखी ऐसी इबारत है जो वोटों की गिनती तो छोडिए मतदान के पहले ही साफ पढने में आ रही थी। मतदान 11 दिसंबर को था और 12 दिसंबर को भोपाल में सागर के एक परिवार के विवाह समारोह में जाने का मुझे मौका मिला। वहां सागर से आए लोगों में सर हरिसिंह गौर विवि के प्राध्यापक, विद्यार्थी, वकील, पत्रकार, दुकानदार, किसान सभी वर्गों के लोग शामिल थे। मैंने बतौर पत्रकार उनसे माहौल जानना चाहा तो सबका एकसुर से कहना था सागर इस बार राजनीतिक किन्नरों को नहीं चुनेगा, लोग तय कर चुके हैं कमला बुआ ही मेयर होंगी। वहां नारा चल रहा था, कमल नहीं कमला चाहिए, हाथ नहीं किन्नर चाहिए। मध्यप्रदेश ने दस साल पहले किन्नर विधायक शबनम मौसी को, पहली किन्नर महापौर कटनी से कमलाजान को चुना था। अब सागर से कमला बुआ प्रथम नागरिक बनी हैं। किन्नर कमला बाई ने दो टूक शब्दों में कहा है कि वे सागर में पैदा हुई हैं, धोखा नहीं देंगी जनता को बल्कि नमक का हक अदा करेंगी। दरअसल राजनीतिक दलों के आधार वाले क्षेत्रों में इस तरह की जन अभिव्यक्ति को राजनीतिक दलों को सबक के तौर पर लेना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से पहले भी ऐसा नहीं हुआ और अब भी ऐसा होगा इसकी उम्मीद न के बराबर ही है। राजनीतिक दल और उनके नेता जो वादे करके जीतते है, उन्हें पूरा नहीं करते। राजनीतिक प्रतिबद्धता के बजाय पद को अपना और रिश्तेदारों का भ्रष्ट तरीकों से कल्याण करने का माध्यम बना लेते हैं। जनता के पास पांच साल टापते रहने के अलावा कोइ्र्र चारा नहीं बचता। पार्षद के चुनाव में दो तीन लाख तक और मेयर के चुनाव में एक करोड रूपए तक बेजा खर्च कर चुके नेता जीतने के बाद सूद समेत वसूलने में जुट जाते हैं। नाराज जनता किन्नर को जिताकर जता रही है कि दल और उनके घर भरू नेता सुधर जाओ, वर्ना भविष्य में और भी तरीके हैं सबक सिखाने के। भ्रष्ट नेताओं के तरफदार पत्रकार, वकील और अफसरों को चेत जाना चाहिए, अन्यथा आने वाला वक्त उन्हंे भी जनता के जरिए न जाने किन किन तरीकों से सबक सिखा सकता है।
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3 टिप्पणियां:
क्या भारतीय प्रधानमंत्री पद के लिए भी ऐसे उम्मीदवार अपेक्षित हैं??
अच्छी जानकारी दी आपने
Aage to lok Sabha Baki hai, ab to vahan par bhi ek Kamla Bua Bhejna hai.
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