मंगलवार, 30 जून 2009

क्या राज्यपाल पद उम्रदराजों के लिए ही है

बयासी वर्षीय रामेश्वर ठाकुर ने मंगलवार को भोपाल के राजभवन में मध्यप्रदेश के 19 वें राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण की। श्री ठाकुर बीते साढे चार साल में तीन राज्यों के गर्वनर रह चुके हैं, अलबत्ता राज्यपाल की नियुक्तियां पांच साल के कार्यकाल के लिए होती हैं और यह अपने में अनोखा है कि श्री ठाकुर को इन पांच सालों में चार राज्यों के राज्यपाल बनने का अवसर मिला। मप्र के गर्वनर पद पर कार्यकाल पूरा करके गए डा. बलराम जाखड ने जब यह पद सम्हाला था तो वे 81 वर्ष के थे, श्री ठाकुर आए हैं तो वे 82 वर्ष के हैं। केंद्र के सत्ताधारी दल वो कोई भी हो, अपने बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल पद देकर उनकी उम्र के चैथेपन के सुखद जीवन यापन का बंदोबस्त इसी तरह करता है। शपथ समारोह जैसा कि होता है, पूरा तामझाम और सात मिनिट में कार्यक्रम खत्म। आज भी ऐसा ही हुआ। लेकिन श्री ठाकुर के शपथ ग्रहण के पहले, दौरान और बाद में जो चर्चाएं उस पंडाल में मौजूद गणमान्य लोगों में हो रही थीं, उसका लुब्बो लुआब ये था कि क्या राज्यपाल पद और इतने भव्य राजभवनों की आवश्यकता है? क्या कभी कोई उर्जा से भरा हुआ नौजवान भी गर्वनर बन सकेगा? एक सज्जन पूर्व राज्यपाल डा. जाखड की फिर से राज्यपाल बनने की कोशिशों का जिक्र कर रहे थे। उनका कहना था जाखड साब को कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी ने मिलने तक का वक्त नहीं दिया। बेचारों की बहुत इच्छा थी कि पांच साल और मप्र के राजभवन में ही रहें। वे बडे बेदिल और बेमन से यहां से गए और जाते जाते कहा भी कि मैं जा तो रहा हूं दिल यहीं छोडे जा रहा हूं। दो गणमान्य लोग चर्चा कर रहे थे कि अमेरिका में देखिए बाॅबी जिंदल और अर्नाल्ड श्वाजनेगर जैसे लोग गर्वनर बनते हैं और हमारे यहां उम्र के उस पढाव पर लोग गर्वनर बनाए जाते हैं जब उन्हें चलने फिरने में भी तकलीफ होती है। मप्र के राज्यपाल पद की शपथ लेते वक्त श्री ठाकुर की शारीरिक स्थिति भी ऐसी ही थी, उन्हें सहारा लेकर चलना पड रहा था। शपथ और गार्ड आॅफ आॅनर के बाद वे इतने थक गए कि जनसंपर्क अधिकारी ने चाय के बाद नए राज्यपाल की प्रेस से बातचीत की उम्मीद जताई थी, लेकिन यह नहीं हो सका। हालांकि पांच साल पहले जब डा. जाखड ने शपथ ली थी तो उन्होंने प्रेस से न केवल चर्चा की थी बल्कि अपने बिंदास अंदाज की झलक भी दिखाई थी, जो पूरे पांच साल बरकरार रहा।खैर जब श्री ठाकुर के शपथ ग्रहण का कार्यक्रम खत्म हुआ तो इस मौके पर आए पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को भी दो लोग सहारा देकर ले जा रहे थे और मप्र विधानसभा की नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी को भी एक कांग्रेस कार्यकर्ता सहारा देकर वाहन तक ले गया। बुजुर्ग नेताओं के अनुभव के अपने फायदे हैं लेकिन इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति के लिए पूरी तरह स्वस्थ रहना क्या जरूरी नहीं होना चाहिए।

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

काग्रेस क्या करे जी.....देश में योग्य लोगों की कमी जो है.......अत: ऐसे बजुर्ग लोगो को यह पद दे दिया जाता है:))

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी इन्हे अपनी कठपुतली चाहिये, जो सरकार के लिये काम अक्रे जनता के लिये गुंडे काफ़ी है इन नेताओ के