बुधवार, 3 जून 2009

अभी भी अक्ल ठिकाने नहीं आई लालू की

भले बिहार की जनता ने बडबोले लालू प्रसाद यादव को लोकसभा चुनाव में सबक सिखा दिया हो लेकिन बुधवार को संसद में लालू ने भी दिखा दिया कि उन्होंने सबक नहीं सीखा है, बल्कि अपने दंभ और बडबोलेपन को वे पूरी ताकत से बरकरार रखने पर आमादा हैं। मौका मीरा कुमार को लोकसभा अध्यक्ष बनाए जाने पर बधाई देने का था, लेकिन लालू मुसलमानों की कथित तौर पर पैरोकारी करने लगे और शरद यादव के टोकने पर लगभग बदतमीजी से पेश आए। भले ही स्पीकर मीरा कुमार ने इस वाकये को कार्यवाही में शामिल नहीं करने के निर्देश दे दिए लेकिन पूरे देश ने सीधे प्रसारण में लालू प्रसाद की पिटी हुई फिल्म को अपने पुराने तेवर में देखा। यूपीए सरकार में लालू को कोई जगह भले न मिली हो लेकिन वे खुद समेत कुल चार सांसदों को सत्ता पक्ष का हिस्सा बता रहे थे और कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बडी पार्टी भाजपा और दूसरे सबसे बडे ग्रुप एनडीए को विपक्ष की जिम्मेदारी निभाने की नसीहत भी दे रहे थे। चारा घोटाले से लेकर अपनी अशिक्षित पत्नी को मुख्यमंत्री के तौर पर बिहार पर थोपने और रेलवे को चारागाह बनाने तक लालू यादव भारतीय राजनीति के भदेस चेहरे का अपमान करते ही नजर आते रहे हैं। एक अच्छे अवसर पर अपने ही अंदाज में रंग में भंग डालने वाले लालू की बातों पर भले ही लोकसभा में ठहाके लगे हों लेकिन देश को शायद ही यह अंदाज अब भाएं। उम्मीद की जाना चाहिए कि जनता भविष्य में लालू और उन जैसे नेताओं को जो बोलने से पहले न तो सोचते हैं और सोचते ये हैं कि लोग उनकी अदाओं और कडवे बोलों को पसंद करते करते, और कडवा सबक सिखाएगी। दरअसल यह बिहारियों को तय करना होगा कि उनका नेता लालू प्रसाद यादव जैसे नेता होंगे या नीतिश कुमार, सुशील मोदी या अन्य सुलझे हुए नेता। लालू यादव न तो अब बिहार के और न ही बाकी देश के किसी भी इलाके के लोगों के रोल माॅडल हो सकते हैं। देश बहुत आगे निकल गया है, अभी और आगे जाना है, लालुओं को दरकिनार कर ही दिया जाना चाहिए।

6 टिप्‍पणियां:

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) ने कहा…

Chinta mat kijiye ek dhakka aur ki jaroorat hai. 15 vidhan sabha seats ka upchunav hoga. Aur Nitish jee thoda sanyam se kaam le to laloo jee bihar se bahar bas dill he hi nazar aayenge. Rah rah kar Sharad Yadav ko khujli ho rahi hai ki NDA se alag ho jayen. Kahin aisa kiye to Laloo ko bihar me aane se koi nahin rok sakta. Kyonki maximum jagah par lalu/ramvilas ki party dusare number aur bahut kam margin se haari hai.

Unknown ने कहा…

गंदी आदतें जल्दी नहीं सुधरतीं… थोड़ा समय दीजिये… हालांकि बिहार में भीड़ को उकसाकर दो ट्रेने जलवाकर लालू ने साबित करने की कोशिश की है कि वे अभी भी "मास-लीडर" हैं… :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

चार सांसद!!! काफ़ी है कंधा देने के लिए:)

sanjeev persai ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
sanjeev persai ने कहा…

आदरणीय सतीश जी,
मीडिया ने ही लालू के छिछोरेपन को भदेश बना का पेश किया था ,
सच तो ये है की सभ्यता की परिभाषा से ये सब हमेशा कोशों दूर रहा.
वो मीडिया ही था जिसने लालू का एक अलग प्रशंसक वर्ग खडा किया,
लालू ने भी अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए वो सब किया जो मीडिया को भाया
आश्चर्य की बात रही की मीडिया ने भी आखें मूँद ली, ध्यान रहे की सबक सिर्फ जनता ने ही सिखाया है

एक प्रश्न भी -
ख़बरों की भूख से बिलबिलाते इलेक्ट्रानिक मीडिया ने कभी भी लालू के कारनामों पर कोई स्टोरी क्यों नहीं की ?

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सही लिखा।