गुरुवार, 11 जून 2009

वक्त के सफीने से चंद अल्फाज

मैं सौ सौ कसमें खाता हूं फिर भीहर बार तेरी याद में गुम हो जाता हूं।
तेरी यादों से बावस्ता होने सेमिलता है सुकूं मेरी रूह कोकहां मैं तेरे नाम के बगैर सांस लेता हूं।
जुदाई की तडप है यादों के बलबले हैं,बिन तेरे जीने के इम्तिहां में हार जाता हूं।
मशरूफियत, जिंदगी की जददोजहद सेमिल जाती है राहत मुझकोदिल पर रखकर हाथ जो तेरा नाम लेता हूं।
यूं तो जिंदगी की सख्तगी कोहंसते हंसते झेल लेता हूंजब तेरी याद आती है तो जार जार रोता हूं।
मैं सौ सौ कसमें खाता हूं फिर भीहर बार तेरी यादों में गुम हो जाता हूं।

सतीश एलिया
भोपाल 10 जून 1992

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