शनिवार, 6 जून 2009

मान भी जाइए क्रिकेट हमारा राट्रीय खेल है

मित्रों, मैं अपने ब्लॉग पर सातों दिन अलग-अलग रंग पेश करने का इरादा रखता हूं, इसमें शनिवार का दिन व्यंग्य के लिए होगा। पिछले शनिवार भी मैंने व्यंग्य पोस्ट किया था, जिसे अच्छा प्रतिसाद मिला, इस बार फिर व्यंग्य लेकर पेश हूं, अपनी राय जरूर दीजिएगा बेझिझक। तारीफ लायक न हो तो मत कीजिएगा, वैसे भी मैं आपका क्या बिगाड़ लूंगा।

हमारा राष्ट्रीय खेल क्या है? चोंकिये मत यह सवाल कोई करोड़पति लखपति बनाने वाले गेम शो या पांच का दम दस का दम जैसे किसी दमादम का हिस्सा नही है। न ही मैं आपके सामान्य ज्ञान की हिमाकत ही कर रहा हूं। दरअसल इस सवाल में मेरी अपनी पीड़ा समाई हुई है। और मैं तो आपसे बस अपनी व्यथा शेयर करना चाहता हूं, अर्थात साझा करना चाहता हूं। वो कहते हैं न कि अपना दुखडा दूसरों के सामने रोने से मन हल्का हो जाता है। तो पाठक व्रंद में भी अपनी पिटाई का दर्द आपके कांधे पर सर रखकर सुनाने का ख्वाहिशमंद हूं। अब आप भी अपनी कोई दर्द भरी दास्तां मुझे मत सुनाने लग जाइएगा। क्योंकि होता यही है कि जिसके पास कांधे की तलाश में जाइए वही अपना सर आपके कांधे पर रखकर रोना रोने लगता है। वो गाना है न दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है......तो फिर हम अपना गम नहीं सुना पाते। खैर जैसे ट्रेन में सीट पर रूमाल रखकर सीट पक्की कर ली जाती है, जनरल डब्बे में वैसे ही मैंने पहले आपके कांधे पर सर टिका दिया है तो सुनिए मेरी पीडा। दरअसल में अपने मित्र सवालीराम से खासा परेशान हूं, वह गाहे बगाहे जब चाहे मुझसे कोई न कोई सवाल पूछ ही लेता है, और मैं कोई भी उत्तर दूं, पिटता मैं ही हूं। कल की ही बात है सवाली राम मेरे घर पर आया। सवालीराम उसका असली नाम नहीं है, लेकिन सवाल पूछने की आदत के कारण यही नाम विख्यात हो गया है। तो सवालीराम ने आते ही मुझसे सवाल पूछ डाला। न राम राम न दुआ सलाम, सीधा सवाल दाग दिया- हमारे देश का राष्ट्रीय खेल कौन सा है? मैं कुछ पाउं इतना मौका दिए बगैर उसने कहा- जल्दी नहीं है, इत्मीनान से सोच समझकर जवाब देना, क्योंकि इसमें कोई आप्शन या लाइफ लाइन का मौका नहीं है। मैंने सवाल पर हर एंगिल से गौर किया। वामपंथी, दक्षिण पंथी, खिचडी पंथी, तीसरा मोर्चा, चैथा मोर्चा, एनडीए, यूपीए, फुरसतिए लगभग सभी ढंग से सोच लिया। मौका परस्ती, चापलूसी जैसे सदाबहार नजरियों से भी देखने समझने की कोशिश लेकिन उत्तर नहीं सूझ पडा। सिवाय पाठय पुस्तकों और जनरल नालेज की किताबों में दर्ज जानकारी के मैं और क्या उत्तर देता भला। सो मैंने कहा- हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। अब सवालीराम ने हमेशा की तरह मेरे उपर सवारी गांठी- साबित करो कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। तर्कों और सिद्धांतों को दरकिनार और खारिज किए जाने के दौर में, अपनी बात पर अड़े रहने की अदोलोजि जमकर चल रही है सो मैंने भी सवालीराम से मुकाबला करने के लिए कहा- हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है, क्योंकि वो हमारा राष्ट्रीय खेल है। मेरे हर तर्क को किसी नाकाम सीएम के इस्तीफे की मांग को ठुकराने के अंदाज में माहिर सवालीराम बोला- सांसद क्रिकेट खेलते हैं, क्रिकेट टीम के प्रदर्शन पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री बयान देते हैं। मराठा क्षत्रप शरद पवार से लेकर दलबदलू बेपैंदी के लोटे राजीव शुक्ला तक और शाहरूख से लेकर शिल्पा और प्रीति जिंटा तक, लिकर किंग विजय माल्या से लेकर डान दाउद इब्राहीम तक, जुआरी से लेकर पनवाडी तक कंडक्टर से लेकर पायलट तक सब क्रिकेट की ही बात करते और खेलते खिलाते हैं, मतलब ये कि पूरा राष्ट्र क्रिकेट मय है। टेस्ट मैच से लेकर बीस-बीस उर्फ टवेंटी-टवेंटी तक क्रिकेट का ही जलवा है, अर्थात पूरा देश क्रिकेटमय है तो फिर भला क्रिकेट राष्ट्रीय खेल हुआ कि नहीं? अब मैं बचाव की मुद्रा में आ गया, कहा- खेलों में राजनीति काहे घुसाते हो। सवालीराम ने मुझे फिर पटखनी दी, खेलों में राजनीति तो पहले से ही है, अब नेता भी घुस आए हैं। मुझे लगा कि अब बुनियाद सवाल उठाने का वक्त आ गया है, सो पूछा- यह तो बताओ सवालीराम कि कभी क्रिकेट खेले भी हो, या यूं ही क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल घोषित कराने पर तुले हो? सवाल पूछने की तरह नहले पे दहलानुमा जवाब देने में माहिर सवाली राम बोला- सो तो मैं हॉकी भी कभी नहीं खेला, तो फिर तुम लोग कागजों में हॉकी को राष्ट्रीय खेल बनाए हुए हो कि नहीं राष्ट्रीय खेल हॉकी पर क्रिकेट को भारी पड़ता देख मैं फिर बचाव की मुद्रा में आ गया। पैंतरा बदलने की कोशिश में मैंने कहा- सवालीराम जी आप हाॅकी के खिलाफ बात कर अल्पसंख्यकों की भावना को चोट पहुंचा रहे हैं। कुटिल राजनीतिज्ञ की तरह अल्पसंख्यकों का नाम सुनते ही सवालीराम कुछ चैकन्ना हुआ। मैंने सुनहरा मौका समझकर कहा- हॉकी प्रेमी इस देश में अल्पसंख्यक हैं, आईपीएल के बाद टवेंटी-टवेंटी हो रहा है, नेताओं से लेकर एक्टरों तक की इसमें रूचि है, निर्माताओं का करोडों रूपए लगा है। फिल्में रिलीज नहीं हो पा रही हैं, एक तो मल्टीप्लेक्स वालों का झगडा उपर से यह क्रिकेट टूर्नामेंट। क्रिकेट की तरफदारी बंद कीजिए, अल्पसंख्यक हॉकी प्रेमियों की आवाज को दबाइए मत। टवेंटी टवेंटी में पहले ही दिन धोनी के शेर ढेर हो गए। सवालीराम दबने के बजाय और उभरकर बोले- हॉकी में तुम्हारी टीम कौन से तीर मारती रही है भला, बताओ तो? मैंने कहा- अभी हमारी टीम जीतकर लौटी है, हॉकी से एकजुटता हमारे देश के फिलम प्रेमी तक जमकर दिखा चुके हैं, चक दे इंडिया सुपर डुपर हिट रही थी। सवालीराम ने पलटवार किया- चक दे इंडिया वाले शाहरूख क्रिकेट टीम के मालिक हैं, भले ही हारी हुई सही लेकिन क्या वे हॉकी की टीम के लिए कुछ करते हैं? लगातार सवाल जवाब के इस सिलसिले से मैं थक गया, थक तो सवालीराम भी गए थे, तो मैंने इस निरर्थक निष्कर्ष को पेश करते हुए चीं बोल दिया- हॉकी हमारा घोषित राष्ट्रीय खेल है और क्रिकेट हमारा अघोषित राष्ट्रीय खेल है। इस बीच मोहल्ले में पटाखे फूटने लगे, जून के महीने में दीवाली सा हंगामा सुनाई दिया, पता चला धोने की धुरंधरों ने 20-20 में कोई धमाकेदार जीत हासिल की है। मैं सवालीराम जी को बाहर तक छोडकर अपने कमरे में लौट आया, हालांकि राष्ट्रीय खेल वाले सवाल का जवाब अभी भी नहीं मिल पाया। आपके पास हो तो जरूर दीजिएगा। सुन रहे हैं न मनोहर सिंह गिल साहब..............!

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सवाली राम जी कहना ठीक है अब हाकी राष्ट्रीय खेल कहलाने लायक नहीं रहा...धयन चाँद की जगह सचिन ने ले ली है...जिस खेल में हमें हमेशा हार ही मिलती रही हो उसे राष्ट्रिय खेल कहना समझदारी नहीं...
आपने खेलों की व्यथा को बहुत अच्छे से व्यंग में लपेट कर पेश किया है...बधाई...
नीरज