मंगलवार, 9 जून 2009

हबीब तनवीर के बारे में

मित्रो, मैं अठारह सालों से जिस शहर भोपाल में हूं, वहां थिएटर को एक नया मुहावरा देेने वाले हबीब तनवीर भी करीब करीब इतने ही सालों से लगभग स्थाई तौर पर रह रहे थे, अर्से से बीमार हबीब साहब ने सोमवार को इस फानी दुनिया में आखिरी सांस ली। उनके निधन की खबर आने के कुछ ही देर बाद दूसरी दुखद खबर विदिशा से भोपाल के रास्ते में वाहन दुर्घटना में अग्रज कवि ओमप्रकाश आदित्य समेत तीन कवियांे के निधन का समाचार आया। चार दिन के मप्र दौरे पर आया तेरहवां वित्त आयोग सोमवार को भोपाल में था, एक संवाददाता के नाते में मेरी व्यस्तता भरा दिन था, लेकिन दिन भर साहित्य और रंगमंच जगत को लगे सदमे से बेचैन रहा। खासकर हबीब साहब के बारे में कुछ लिखने का मन था, नहीं लिख पाया, इसकी बेचैनी अब तक है। मैं बतौर रंगप्रेमी, दर्शक, समीक्षक और पत्रकार हबीब साहब के संपर्क में रहा था। उनके कुछ चर्चित नाटक देखे, उनकी समीक्षा भी लिखी और 1996 में भारत भवन के रंगमंडल के निदेशक के रूप मेें उनके खिलाफ कलाकारों के अभियान, विवाद, श्री तनवीर का इस पद से 9 माह में ही इस्तीफे के घटनाक्रम से बतौर संवाददाता जुड.ा रहा। असल में रंगमंडल के कलाकारों को लगता था कि श्री तनवीर अपने नया थिएटर के कलाकारों को रंगमंडल में लाना चाहते हैं, और पुराने कलाकारों को आउट करना चाहते हैं। भरोसा न हो तो साथ काम करना मुश्किल ही होता है, विवाद तो खैर होते ही हैं। हबीब साहब रंगमंडल में होते हुए भी अपने नया थिएटर के साथियों को मझधार में कैसे छोड सकते थे। आखिरकार हबीब साहब ने इस विवाद का पटाक्षेप इस्तीफा देकर किया था। श्री तनवीर ने तब भारत भवन की स्वायत्तता पर गंभीर सवाल उठाए थे, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। इसी दौरान हबीब साहब से कई दफा मुलाकात हुई। इस विवाद के दौरान उनकी बेचैनी को न केवल करीब से देखा बल्कि इस्तीफे के बाद उनका लंबा इंटरव्यु भी किया था, जो दैनिक नई दुनिया में तब प्रकाशित भी हुआ था। पुरानी कतरनों में यह इंटरव्यु बहुत तलाशा लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, वक्त पर वही चीज नहीं मिलती, जिसकी तलाश की जाए, दूसरी चीजें मिल जाती हैं। तो अलग-अलग वक्त में भोपाल में हुए श्री तनवीर के तीन नाटकों की समीक्षा मिल गइ्र्र और उनके इस्तीफे की खबर भी। खबर सबसे पहले मैंने ही लिखी थी। मैं इस खबर को यहां ज्यों का त्यों यहां उद्ध्रत करूंगा। हालांकि रंगमंडल में श्री तनवीर का जिन कलाकारों से विवाद हुआ था, उनमें से कुछ इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मेरा मकसद किसी के बारे में नकारात्मक तथ्य पेश करना नहीं है। उनमें से कई से मेरी अच्छी मुलाकात थी और कुछ तो उस वक्त मेरे अच्छे मित्र भी थे। इससे पहले श्री तनवीर से हुई मुलाकात का जिक्र करना चाहूंगा, मुझे उनसे मिलकर जो अनुभव हुआ था।
रंगमंडल विवाद के वक्त मैं नया थिएटर से जुडे मेरे बिलासपुर निवासी मेरे मित्र अनूपरंजन पांडे के साथ भोपाल के शिमला हिल स्थिति फ्रलैट में मेरी श्री तनवीर से लंबी बातचीत हुई थी। उनका यह घर भारत भवन से चंद कदम की दूरी पर था। वे रंगमंडल कलाकारों की उनके खिलाफ मुहिम से बेहद विचलित थे, लेकिन उनसे हुई बातचीत में उनका थिएटर के प्रति प्रेम और उनके स्वभाव की गंभीरता ने मुझे बहुत गहरे तक प्रभावित किया। इस मुलाकात के दौरान उनकी पत्नी मोनिका मिश्रा और बेटी नगीन भी थीं। असल में हबीब साहब रंगमंच में जो भी मुकाम हासिल कर सके उसके पीछे की शक्ति मोनिका जी ही थीं। नया थिएटर उन्हीं की देन था, जिसने हबीब तनवीर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दी और छत्तीसगढ के देशज कलाकारों को रंग आकाश दिया। मोनिका जी ने रंगमंच के मंच पर और नेपथ्य में हबीब तनवीर की पहचान नया थिएटर को उसका मकाम दिलाने में अहम किरदार निभाया। हर कामयाब पुरूष के पीछे महिला की शक्ति होने की कई मिसालों में से यह भी एक मिसाल थी, मैंने इस मुलाकात में इसे शिददत से महसूस किया था। एक और बात जो मुझे बेहद प्रभावित कर गई थी, वो ये कि हबीब साहब, उनका परिवार और नया थिएटर जो उनके परिवार का ही विस्तार था, आपस में अभिवादन के लिए जय शंकर का उदघोष करते थे। मुझे शुरू में यह कुछ अटपटा सा लगा लेकिन फिर में भी अनूप रंजन पांडे की ही तरह इस विस्तारित परिवार का हिस्सा बन गया। लेकिन जैसा कि होता है, वक्त गुजरता जाता है, वे चीजें आपसे छूटती जाती हैं, जो आपको प्रिय होती हैं। पत्रकारिता के बाद के सालों में मेरा कला और रंग जगत से नाता टूट गया और फिर सालांे हबीब साहब से मुलाकात नहीं हुई। लेकिन उनके गुजरने की खबर सुनने के बाद लगातार ऐसा लग रहा है, जैसे उनसे मुलाकात अभी कल ही तो हुई थी, उन्होंने तंबाकू वाली पाइप पीते हुए मेरे अभिवादन के प्रत्युत्तर में कहा था जयशंकर। हबीब साहब को मेरी श्रद्धांजलि। आज ही दूसरे पोस्ट में हबीब साहब के तीन नाटकों के भोपाल में प्रदर्शन पर उसी दिन मेरी लिखी और प्रकाशित समीक्षा को आपके लिए प्रस्तुत करूंगा।
मेरी खबरों की कतरनों से
मैं नियम विरोधी कलाकारों व लापरवाह प्रशासन के बीच सेंडविच बन गया थाः हबीब तनवीरभोपाल, 30 अप्रैल,96। बागी कलाकारों के रवैये और प्रशासन के गैर जिम्मेदाराना ढंग से आजिज आकर दो साल के लिए भारत भवन रंगमंडल के निदेशक बनाए गए ख्यात रंगकर्मी हबीबी तनवीर ने नौ माह में ही इस्तीफा दे दिया। कलाकारों के रवैये और प्रशासन से क्षुब्ध श्री तनवीर ने कहा है कि वे रंगमंडल कलाकारों और प्रशासन के बीच सेंडविच बन गए थे। उन्होंने भारत भवन की स्वायत्ता पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।अपने इस्तीफे के साथ नत्थी चार पेज की रिपोर्ट में श्री तनवीर ने कहा है कि- मैं नियम विरूद्ध कलाकारों और बेपरवाह प्रशासन के बीच खुद को सेंडविच की तरह दबा पा रहा हूं। बागी कलाकार लगातार नियमों की खिलाफवर्जी करते रहे और प्रशासन ने किसी एक के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं की। रंगमंडल कलाकारों का एक ग्रुप काम करने से इंकार के साथ ही रेपेटरी में नए लोागों को शामिल करने पर भी ऐतराज करते रहे, जबकि वे खुद अनुबंध को आगे बढाते हुए वर्षों से रंगमंडल में हैं।श्री तनवीर ने कलाकारों और उनके बीच विवाद के बारे में रिपोर्ट में लिखा है कि- सात दिसंबर को कुछ कलाकार रिहर्सल छोडकर चले गए। नाटके के प्रदर्शन के तीन दिन पहले रिहर्सल छोडना नाटक को मंझधार में छोडना था। यह कृत्य इसलिए किया गया कि एक कलाकार विभा मिश्रा जो नाटक में मुख्य पात्र की भूमिका के लिए चुनी गइ्र थीं, बाद में चूंकि उनकी तैयारी नहीं थी, इसलिए उनसे यह रोल वापस ले लिया गया। इससे पहले दो अन्य कलाकार संजय मेहता एवं मीना सिद्धू जिन्हें नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई थी, 23 दिन अनुपस्थित रहे। मीना ने विभा वाले रोल को अस्वीकार करने की गरज से लंबी छुटटी ले ली।श्री तनवीन ने रिपोर्ट में लिखा है कि प्रशासन ने इन कलाकारों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। जबकि कुछ पुराने कलाकारों का रिकार्ड असंतोषजनकर है। उपस्थिति के मामले में भी ऐसा ही है। विभा मिश्रा ने 1995 में रिकार्ड 167 छुटिटयां लीं, बाकी दिनों में भी तब भी उन्होंने गरम कोट, सराय की मालिकिन और मुद्राराक्षस जैसे नाटकों में काम करने से इंकार कर दिया। श्री तनवीर ने रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि- 1994 में सलाहकार समिति ने विभा मिश्रा के दो साल के अनुबंध को 30 जून के बाद खत्म करने का निर्णय लिया, जिस पर प्रशासन ने अमल नहीं किया। समिति के 8 अगस्त 1987, 24 जुलाई 1988, 15 मई 1989, एक फरवरी 1994 और 4 जुलाई 1996 के फैसलों पर भी प्रशासन ने अमल नहीं किया। श्री तनवीर ने कहा- बेहतर काम के लिए कलाकारों और निर्देशक के बीच अच्छे रिश्ते जरूरी हैं, रंगमंडल कलाकार ऐसा नहीं मानते।

3 टिप्‍पणियां:

रज़िया "राज़" ने कहा…

श्री हबीब तन्वीर साहब के निधन से हमें बडा दुख़ हुआ। थियेटर जगत ने एक चमकता चाँद खो दिया।

आपकी रिपोर्ट के लिये आभार। वरना हमारा इतनी गहराइ से भला कैसे जान सकते हबीबतंनवीर साहब का जीवन।

आभार।

वीरेन्द्र जैन ने कहा…

kripaya mera dard bhi mere blog nepathyaleela.blogspot.com par padhen
virendra jain

sanjay saxena ने कहा…

एलिया जी
आपका ब्लाग पड़कर लगा की मिटटी पर पड़ने वाली बारिश के बाद की खुशबू का अहसास क्या होता हें. यह खुशबू महकती रहेगी . इसी आशा के साथ .
शुभकामना