शुक्रवार, 19 जून 2009
उदारवाद की राह पर जाने की तैयारी में संघ
स्वयंसेवक संघ अब अपने उग्र तेवरों वाले संगठनों विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी मातृ वाहिनी को उदारवाद का पाठ पढ़ा रहा है। बात बात पर हिंसात्मक प्रदर्शनों के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले इन संगठनों को अब नियमों के दायरे में रखकर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों की सीख दी जा रही है। इसके लिए बकायदा प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं। शुरूआत भोपाल से हुई है, ऐसे ही दिल्ली और जम्मू में हो रहे हैं। भोपाल में शिविर बिना किसी प्रचार के शुरू हुआ और पंद्रह दिन बाद आज इसका समापन विहिप के उग्र नेता प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने किया। इस ट्रेनिंग कैंप में गुजरात, महाराष्टï्र मप्र, छत्तीसगढ़ और गोवा के पौने दो सौ चुनींदा कार्यकर्ताओं को शांति का पाठ पढ़ाया गया। संघ ने उग्र हिंदूत्व से उदार हिंदूत्व की राह क्यों अख्तियार करना चाही है? यह सवाल इन शिविरों की श्रृंखला से उठना स्वाभाविक है। इसकी एक वजह तो संघ पुत्री भाजपा की लोकसभा चुनाव में करारी हार और इससे पहले उसके हाथ से राजस्थान की सत्ता फिसलना है। दूसरा कारण भाजपा शासित राज्यों मप्र, छत्तीसगढ़ और गुजरात में सरकार और संघ के आनुषांगिक संगठनों के सामने आ रही दिक्कतें हैं। संघ के यह आत्मज और आत्मजा संगठन अपनी सहोदरा भाजपा की सरकारों को मुसीबत में तो डालते ही हैं, चुनावों में उसकी हार का कारण भी बन जाते हैं। ऐसे में बहुत सोच विचार कर ही संघ ने अपने उग्र संगठनों से नियमों के दायरे में विरोध की रणनीति अपनाने को कहा है। खासकर भाजपा शासित राज्यों में। संगठनों को कल्याणकारी कार्यक्रमों में ज्यादा ध्यान लगाने, गौवध और धर्मांतरण जैसे संवेदनशील मामलों में भी कानून के दायरे में रहकर विरोध करने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। शिविरों में ट्रेंड किए जा रहे कार्यकर्ता और पदाधिकारियों को अपने अपने क्षेत्रों में यह पाठ आगे प्रसारित करने को कहा जा रहा है। संघ उदारवादी चेहरा अपनाने की तरफ अग्रसर है, अगर ऐसा होता है तो इसके दो फलितार्थ हो सकते हैं। पहला तो यह कि उससे वे लोग भी जुड़ जाएंगे जो अभी तक संघ की उग्र छवि के कारण सैद्धांतिक रूप से कई मुद्दों पर सहमत होते हुए भी कन्नी काटते थे। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि उग्रता से छिटकने पर संघ के आनुषांगिक संगठनों की ताकत कमजोर भी हो सकती है। लेकिन दूरगामी परिणामों और राष्टï्रहित और भाजपा हित के लिहाज से देखा जाए तो उदारवादी छवि ही अब संघ के पास सही रास्ता है। क्योंकि संघ पुत्री भाजपा भी सत्ता में उदारवादी छवि वाले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में आई थी। उग्र हिंदुत्व के पैरोकार माने जाने वाले आडवाणी को जनता ने तो एक तरह से नकार ही दिया है, पार्टी में भी उनके खिलाफ अभियान चला हुआ है। अब ऐसा लगता है कि संघ आत्मजा भाजपा में उन नेताओं की वापसी की मुहिम चलेगी, जिन्हें गुट विशेष ने निकाल बाहर किया था। इनमें गोविंदाचार्य, उमा भारती जैसे नेता भी शामिल हैं। देखना ये है कि संघ का उग्रवाद से उदारवाद की तरफ यह पथ संचलन उसके और देश के कितने काम आता है।
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1 टिप्पणी:
उग्र नेता प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने उदारवाद का पाठ पढ़ाया..
क्या बात है..
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