गुरुवार, 18 जून 2009
इस बात पर तो बोलना पडेगा जयho
congressअध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में राजे रजवाडों के वारिसों को महाराज, राजा साब, श्रीमंत इत्यादि संबोधनों पर बैन लगाकर ऐसा काम किया है कि उनके इस निर्णय पर बोलना ही पडेगा जय हो। दरअसल लोकतंत्र के 62 बरस बाद भी भारतीय राजनीति और सरकारों में सामंती तत्वों का दबदबा बरकरार है। यह जितनी मात्रा में बरकरार है, समझिए कि हमारे लोकतंत्र में उतनी ही मात्रा में कमजोरी बरकरार है। सोनिया के इस फैसले पर अमल की ताकीद सबसे पहले राजस्थान सरकार ने की है, जहां नवंबर से पहले महारानी ही मुख्यमंत्री थीं। जी हां, वसुंधरा राजे को भाजपा में मुख्यमंत्री के बजाय महारानी ही कहना ज्यादा पसंद किया जाता है, यहां तक कि पार्टी में उनके विरोधी भी इस मुददे पर विरोध नहीं करते थे। राजे रजवाडों के राजस्थान में इन दिनों माली जाति के गहलोत जी मुख्यमंत्री हैं। यही तो लोकतंत्र की शान है कि जनता के बीच का किसी भी वर्ग का व्यक्ति मुख्यमंत्री हो सकता है। सोनिया गांधी ने पार्टी में इन संबोधन पर पाबंदी लगाकर वाकई स्तुत्य काम किया है। लोकसभा चुनाव के पहले और अब भी मीडिया का एक वर्ग सोनिया पुत्र राहुल को भी युवराज संबोधन से नवाजने लगा था। हालांकि सोनिया ने और खुद राहुल ने भी इस पर अप्रसन्नता ही जताई। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों में पूर्व राज परिवारों के वारिसों की भरमार है, और दोनांें ही दलों में उन्हें राजा साब, महाराज, महाराज कुमार, इत्यादि सामंतकालीन संबोधित करने वालों की भरमार है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में सोनिया गांधी के करीबी महासचिव दिग्विजय सिंह को उनके घर राघौगढ से लेकर उनके पूर्व लोकसभा क्षेत्र राजगढ में हर कांग्रेसी राजा साब के नाम से ही संबोधित करता है। उनके छोटे भाई पहले कांग्रेस और फिर भाजपा में सांसद रहे लेकिन उनको छोटे राजा साब संबोधन नहीं बदला। दिग्विजय को तो कुछ अखबार वालों और कुछ पिछलग्गू नेताओं कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री बनने के बाद दिग्गी राजा संबोधन दे डाला जो अब भी बदस्तूर जारी है। पूर्व ग्वालियर रियासत के वारिस माधवराव ंिसंधिया को कांग्रेस में उनके समर्थक गुटों ने उनके जीवन पर्यंत और निधन के बाद महाराज संबोधन बरकरार रखा है। उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अब कांग्रेस के उनके गुट के लोगों के लिए महाराज हैं। इतना ही नहीं उनका तो बकायदा राज्याभिषेक भी हुआ था। भाजपा में विजयाराजे सिंधिया राजामाता ही रहीं। हाल ही में मप्र की शिवराज सरकार ने उनके नाम पर ग्वालियर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि खोला है। उनकी पुत्री जो अभी ग्वालियर की सांसद हैं, जब प्रदेश में खेल और पर्यटन मंत्री थीं, तो राज्य सरकार ने बकायदा गजट नोटिफिकेशन जारी किया था कि श्रीमती यशोधराराजे सिंधिया को श्रीमंत यशोधराराजे सिंधिया संबोधित किया जाए। शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में मंत्री रहे विजय शाह, कुंवर विजय शाह लिखते हैं। वर्तमान पर्यटन मंत्री तुकोजीराव पवार युवराज तुकोजी राव पवार है। वे इसी नाम से चुनाव लडते हैं।मध्यप्रदेश में कई पूर्व और वर्तमान विधायक हैं जो पूर्व रजवाडों और रियासतों से संबंधित हैं, वे किसी भी दल में रहें, उनके नाम के साथ राजा जरूर बना रहता है। मसलन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चैहान के खास उल खास रहे गोपाल सिंह चैहान डग्गी राजा कहलाते हैं। इसी तरह बुंदेलखंड के कई भाजपा, कांग्रेेस और सपा नेता खुद को राजा कहलवाने और लिखने में गर्व महसूस करते हैं। इनमें अशोक वीर विक्रम सिंह भैया राजा, मानवेंद्र सिंह भंवर राजा, विक्रम सिंह नातीराजा, शंकर प्रताप सिंह बुंदेला मुन्ना राजा, यादवेंद्र सिंह जग्गू राजा, घनश्याम सिंह महाराज कुमार हैं। यह फेहरिश्त काफी लंबी है।मध्यप्रदेश में जलसे जुलूसों में भाजपा और कांग्रेस दोनों की दलों के कार्यकर्ता इन नेताओं को गैर लोकतांत्रिक संबोधनों से नवाजने वाले नारे जमकर लगाते हैं। कांग्रेस ने तो अपने दल में इन पर पाबंदी लगाई है और राजस्थान सरकार ने तो बकायदा नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। सोनिया की इस लोकतांत्रिक मंशा को पूरे देश में लागू करने के लिए कंेद्र सरकार कानून पारित करे तो सही मायने में लोकतंत्र के लिए शुभ होगा। उम्मीद की जाना चाहिए कि ऐसा होगा। ऐसा हुआ तो एक बार फिर कांगेे्रस के लोकसभा चुनाव के प्रचार नारे जय हो में सुर से सुर मिलाने को दिल करेगा। जय हो।
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3 टिप्पणियां:
वाकई, यह प्रशंसनीय कार्य है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
:)
http://pungibaaj.blogspot.com/2009/05/blog-post.html
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