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मित्रों शीर्षक देखकर चैंकिए मत मैं संस्कृत कोई आख्यान आपको नहीं सुना रहा हूं, मैं तो मात्र भाषा हिंदी में ही आपसे रूबरू हूं, दरअसल यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसा मुंबईया सिनेमा में जिसे अब हालीबुड की नकल में बालीवुड कहा जाने लगा, हिंदी फिल्मों के नाम अंग्रेजी में होते हैं। लेकिन मैं चूंकि पिछडी हुई सोच का आदमी हूं सो बात हिंदी में कर रहा हूं लेकिन शीर्षक पांच हजार साल पुरानी भाषा संस्कृत में रख लिया है। यह शीर्षक भी मैंने महाकवि कालिदास से उधार लिया है, बिना कोई रायल्टी दिए। मैं रायल्टी देना भी चाहूं तो दूं किसे? कालिदास के बारे में कहा जाता है कि उनकी ज्ञान और भावेंद्रियां जाग्रत होने से पहले वे इतने मूढ थे कि जिस डाल पर बैठे थे, उसे ही काट रहे थे। लेकिन जब उनका कवित्व जागा तो वे संस्कृत सबसे उदभट कवि बन गए। तब भी जब वे थे और अब भी जब ढाई हजार साल उनके होने के वक्त को बीत चुके हैं। लेकिन हमारे देश में जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काटने वाले सैकडों नहीं लाखों की तादाद में हैं, हालांकि उनमें से कोई कालिदास नहीं बन रहा है। पैसे की चकाचैंध में न तो उन्हें और न ही राह दिखा सकने वालों को यह समझ आ रहा है कि कोई तो उन्हंे बताए कि भाई आप जिस डाल पर बैठे हो उसी को काटोगे तो खुद भी तो बर्बाद हो जाओगे। खैर आज शनिवार है और मैं वादे के मुताबिक यह रचना लेकर आपके सामने हाजिर हूं, मुलाहिजा फरमाइए। तो संसदस्य एकस्मिन दिवसे शीर्षक महाकवि कालिदास से साभार है। लेकिन उनके आषाढस्य एकस्मिन दिवसे जैसी प्रणय था इसमें नहीं है, क्योंकि इस मामले में अपन शून्य ही हैं, आज की प्रणयी बैंक बैलेंस देखती है और अपने पास न कभी था, न है और न होने की कोई आशंका ही है। खैर मैं तो आपको एक स्वप्न की गाथा सुनाना चाहता हूं, वह सुस्वप्न है या दुःस्वप्न यह आपके उपर छोडता हूं। दरअसल मुझे कल रात सपने में संसद दिखी, कैसी थी, ज्यों की त्यों पेश है। आप चाहें तो मेरे शीर्षक को संसदस्य एकस्मिन रात्रौ पढ सकते हैं।
पहलासीनघोषणा- माननीय सदस्यगण, माननीय अध्यक्ष महोदय।
अध्यक्ष के आते ही सभी उठकर खडे हो जाते हैं, बडा ही कोलाहल है, जो शून्यकाल को भी मात करता प्रतीत हो रहा है।
कई महिला सदस्य एक साथ- यह सरासर अन्याय है, क्या इस पवित्र सदन का आरंभ गलत उदघोषणा से होगा। हम भी यहां हैं और आसंदी पर भी महिला हैं। वही सदियों पुरानी पुरूषवादी परंपरा चल रही है। माननीय सदस्यगण और माननीय अध्यक्ष महोदय कहा गया। जबकि माननीय सदस्या देवियों और सदस्यगण, माननीया अध्यक्ष महोदया कहा जाना चाहिए था।
अध्यक्ष महोदया मुस्कराते हुए- देखिए, महिला बिल पेश होने के बाद आपसे मुखातिब होने का यह पहला ही मौका है, बिल पास हो जाएगा तो सदन धीरे धीरे आपके मुताबिक परंपराएं भी सीख लेगा। कृपया शांत हो जाइए।जद-यूआई-अध्यक्ष महोदया मैं। आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि यह जो महिला बिल पेश हुआ है, यह अधूरा है। इसमें आरक्षण के अंदर आरक्षण तो है ही नहीं। आखिर कब तक मजलूमों और अकलीयतों को पार्लियामेंट में आने से रोका जाएगा। हम यह बिल पास नहीं होने देंगे। अगर ऐसा हुआ तो हम....। शोर शराबे में कुछ सुना नहीं जा सका।
कांग्रेसी- आप लोग महिलाओं को सत्ता से दूर रखना चाहते हैं, इसलिए ऐसे अडंगे लगाते हैं। हमारी यहां तो सोनियाजी ही हाईकमान हैं तो पहले से ही महिलाओं की सत्ता चल रही है, इसके पहले इंदिरा जी सत्ता में थीं।
भाजपाई- इसलिए हम कहते हैं सरकार कठपुतली है, मनमोहन जी कमजोर प्रधानमंत्री हैं। असली सत्ता तो सोनियाजी हैं। फिर भी हम बिना अगर मगर के इस बिल को पास करवाने के लिए तैयार हैं।
कांग्रेसी- हमारे यहां सोनियाजी ही सत्ता हैं, इसमें किसी को कोई शक है क्या? आपके यहां महिलाओं की क्या स्थिति है, उमा भारती से पूछे ?
भाजपाई- देखिए आपके यहां भी जयंती नटराजन के साथ आपने क्या किया था, जब उन्होंने कर्नाटक में टिकिट बिकने की बात कह दी थी, आप कोई दूध के धुले नहीं हैं।
सपाई- आप लोग विषय से भटकाने की बात मत करिए, आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग का समर्थन तो उमा भारती भी कर रही थीं, जब वे भाजपा में थी, इसी वजह से आपने बहाना बनाकर उन्हें पार्टी से निकाल दिया, आपकी पार्टी पिछडा विरोधी है। देखिए न कल्याण सिंह जैसे पिछडे भाजपाई को हमने साथ लिया है। भाजपा तो है ही दो तरह की बात करने वाली पार्टी, इसीलिए तो सरकार नहीं बना पाए आप लोग।
भाजपाई- तो आपने चुनाव में कौन सा तीर मार लिया, कल्याण से आपका क्या खाक कल्याण हुआ, अब आप न केंद्र में न सत्ता पक्ष में हैं और न विपक्ष में त्रिशंकु हो गए त्रिशंकु।
स्पा हम अब भी यूपीए में हैं।
भाजपाई- जरा कांग्रेसियों से तो पूछ लो, आपका पासवान जी और लालू जी का साथ उनको चाहिए ही नहीं। जबरन ही आप खुद को यूपीए में बताते फिर रहे हो।
अध्यक्ष महोदया- अशांत हो जाइए, महिला बिल पर बात करिए। बिल के अलावा जो भी बात की जा रही है उसे रिकार्ड में नहीं लिया जाएगा।
भाजपाई- महिलाओं के बारे में इन सपाईयों के विचार अच्छे नहीं है, इमराना मामले में मुलायम सिंह यादव ने कटटरपंथियों की तरफदारी की थी।
सपाई- जबाबी शोर के साथ.....महिलाओं की इतनी ही तरफदारी है तो उमा भारती को पार्टी मंे वापस लाकर फिर मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना देते।
शोर बढता गया और अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी।
दूसरा सीनसदन फिर समवेत हुआ
सपाई- माननीय अध्यक्ष महोदय भाजपा साम्प्रदायिकता के नाम पर वोट मांगती है, महिलाओं के मामले मंे इनका रवैया ठीक नहीं है। यह पार्टी दोहरी मानसिकता वाली है, एक बार इनकी मान्यता दोहरी सदस्यता के चलते खत्म भी हो चुकी है।
भाजपाई- अध्यक्ष महोदया, यह जनता का अपमान है, हमें जिस जनता ने वोट दिया है साम्प्रदायिक कहकर उसका अपमान किया जाता है।
कांग्रेसी- साम्प्रदायिक तो हैं ही आप लोग, मदनलाल खुराना को आपने इसीलिए पार्टी से बाहर कर दिया था कि वे गुजरात के दंगों के लिए वहां की सरकार को दोषी मान रहे थे।
भाजपाई- साम्प्रदायिक तो आप लोग हैं, 84 के दंगों के आरोपियों को कई कई बार सांसद और केंद्र में मंत्री बनाया, अबकी बार ऐन टाइम पर चुनावी नफा देखकर टाइटलर और सज्जन कुमार के टिकिट काटना पडे।
कांग्रेसी- हमारे पीएम 84 के लिए माफी बहुत पहले ही मांग चुके हैं। टिकिट तो हमने प्रत्याशियों की मर्जी से ही काटे।
भाजपाई- प्रत्याशियों की मर्जी से या सिख पत्रकार के जूते से?
सदन फिर शोर शराबे में डूब गया, नौबत हाथापाई की आ गई, अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही फिर स्थगित कर दी
तीसरा सीन
कार्यवाही फिर शुरू हुई, नजारा वही हंगामे भरा।
अध्यक्ष महोदया- देखिए महिला बिल पेश हो चुका है, उस पर चर्चा होना है।
भाजपाई- अध्यक्ष महोदया, कांग्रेेस को माफी मांगना होगी हमें साम्प्रदायिक कहने के लिए।
कांग्रेसी-यह भाजपा के लोग सदन मंे सिर्फ हंगामा करते हैं, जहां तक महिला बिल की बात है तो पांच साल पहले सोनियाजी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध कर यह साबित कर चुके हैं कि भाजपा महिला विरोधी है।
भाजपाई- और आप राष्ट्रवादी कांग्रेस पाटी्र के सहयोग से पांच साल सरकार चलाने के बाद फिर पांच साल उनसे सहयोग ले रहे हैं, महाराष्ट्र में आप उनसे सहयोग ले ही रहे हैं। सोनियाजी के विदेशी होने का विरोध करने केे लिए ही तो यह पार्टी बनी थी। अब बताइए किसका चरित्र दोहरा है?
कांग्रेेसी- एनसीपी के पीए संगमा ने माफी मांग ली है हाल ही में, आप लोग अखबार नहीं पढते क्या?
भाजपाई- बेटी अगाथा को मंत्री बनाए जाने पर यह संगमाजी का अपने ढंग का आभार प्रदर्शन था, क्या शरद पवार उनसे सहमत हैं और माफी मांगेंगे?
राजदाई- यह भाजपा यूपीए में फूट डालने की चाल चल रही है, हम लोग इसकी चाल में नहीं आएंगे।
भाजपाई- आप लोग यूपीए में अब भी हैं क्या? एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लडकर आप केवल चार ही सीटें ला पाए, फिर भी यूपीए की चिंता?
राजदाई- फिकिर मत करिए नीतिश बाबू भी यूपीए में आ जाएंगे।
सदन एक बार फिर शोर में डूब गया, कार्यवाही 10 मिनिट के लिए स्थगित
सीन आखिरी
कार्यवाही फिर आरंभ हुई
भाजपाई- देखिए हमारा विरोध सोनियाजी से नहीं उनके विदेशी मूल से था, उस पर हम अब भी कायम हैं लेकिन हम महिला बिल पर सहमत हैं। हमने अपने यहां 33 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है। भविष्य में उसके पालन पर भी विचार करेंगे।हमारे यहां महिला नेताओं की न कमी है और न ही हम उन्हें आगे बढने से रोकते हैं। अभी भी सदन की उपनेता सुषमा स्वराज को बनाया है।
राजदाई- ये लोग राबडी देवी का भी विरोध किए थे लेकिन न हम तो इनसे डरे और न आज डरते हैं।
जद-यूआई- विरोध राबडी देवी का नहीं किए थे हम लोग, हम तो जंगलराज का किए थे, विरोध जनता ने हमारा साथ दिया, अब लालू, पासवान कहां हैं, बताईए तो बिहार में?
कांग्रेसी- अध्यक्ष महोदया, ये सदन का वक्त बर्बाद किया जा रहा है, ये महिला बिल से ध्यान हटाने की साजिश है।
कई दलों की महिला सदस्य एक साथ
सही बात है अध्यक्ष महोदया, पुरूष सदस्य नहीं चाहते कि महिला बिल पर चर्चा हो और उसे पारित किया जाए। हम आज इस बिल को पास करवाकर ही मानेंगी, वर्ना यहीं हडताल करेंगी। हम पूरे देश में हडताल करेंगे, महिलाओं का आव्हान करेंगी कि जब तक यह बिल पास न हो जाए, वे खाना नहीं बनाएं और न ही घर के कोई और कामकाज करें। शोर बढता ही गया। मैं घबराकर उठ बैठा। पत्नी जगा रही थीं, वह भी डांटते हुए- न टाइम से सोना, न टाइम से उठना, घर का कोई काम नहीं करना। घडी तो देखो जरा, सुबह के नौ बज रहे हैं। पत्नी की बात सही थी, पत्नियां जितना काम करती हैं, हम करते हैं क्या? जवाब है नहीं करते। अखबार उठाया, उस पर नजर घुमाई, मुख्य शीर्षक था- संसद में महिला बिल पर बहस जारी है।।मैंने सोचा हे प्रभु अभी से ये हाल हैं तो बिल पारित होने पर क्या होगा, हम पुरूषों का। हे प्रभु हमें बचा, शरद यादव को बचा, महिला बिल को फिर ठंडे बस्ते में डालने की मति श्रीमती सोनिया गांधी को दे। आमीन! : सतीश एलिया
मित्रो, गांव की माटी की छुअन, लोकमंच की सुगंध को समेटकर नया थिएटर से भारतीय रंगमंच को नया मकाम देने वाले हबीब तनवीर यहां भोपाल में मंगलवार की शाम सुपुर्दे खाक हो गए। रंगमंच के अलावा टीवी सीरियल कब तक पुकारूं और प्रहार जैसी फिल्म में उनकी उपस्थिति भी आपको याद होगी। मैंने उनके दो नाटकों के प्रदर्शन की समीक्षा पिछले अंक में आपको पेश की थी, दूसरी किश्त में अब दो और नाटकों की बात पेश है, इनमें हबीब साब के चरणदास चोर की प्रस्तुति भी है।
अपनी ही आशंका को सच किया हबीब तनवीर ने
देशबंधु, भोपाल 17 फरवरी 1993स्थानः भारत भवन का अंतरंगमौकाः भारत भवन की सालगिरह का समारोह
आज भारत भवन के अंतरंग में हबीब तनवीर के निर्देशन में खेला गया नाटक कामदेव का अपना, बसंत ऋतु का सपना, न तो कामदेव से संबंधित है और न ही बसंत ऋतु से। यह शेक्सपियर के नाट अ मिडसमर नाइटस ड्रीम्स का लचर रूपांतरण भर बन पाया, दर्शकों ने भी इसे कमजोर माना। शेक्सपियर के नाटक के जो द्रश्य श्री तनवीर ने लिए हैं, उनमें भी रूपांतरण ने खलल ही डाला है। एथेंस के डयूक थीसस का अपनी मंगेतर से प्रणय वाला द्रश्य भी कामेडी बन गया और देशीपन डालने के उददेश्य से बस्तर का न्रत्य भी दर्शक को बांध नहीं पाया। जंगल में परियों की रानी और राजा वाले प्रसंग में राजा द्वारा रानी को छकाना जरूर कुछ हास्य पैदा करता है। एथेंस के मजदूरों द्वारा डयूक को प्रसन्न करने नाटक और उसकी रिहर्सल दर्शकों को मसखरी का मजा देती है। छत्तीसगढ अंचल की नौटंकी से मिलता जुलता और आदिवासी बोली का ज्यादा प्रयोग नायक को मसखरा बनाता है। नाटकों में काॅमेडी भी दर्शकों को अलग दुनिया में ले जाती है, और मानवीय भावों का विवेचन करती है लेकिन कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना, यह असर नहीं छोडता।द्रश्यांतर और द्रश्यों में आए गीत अपभी लय और संगीत के कारण भले लगते हैं। संवादों का जोर जोर से बोलना नाटक में खटकता है। हबीब तनवीर के ही शब्दों में हाल में कुछ नाटय रूपांतरण किए जो अधिकतर गद्य रूप में हैं और कुछ मूल में अत्यंत बेढंगे और अधकचरे। यहां तक कि पद्य में किए गए अनुवाद भी अक्सर कुद ऐसी गीतात्मकता लिए होते हैं, जो अतिभावुक कविता के लक्षणों के करीब ठहरती है। उनका यह नाटय प्रदर्शन शेक्सपियर के नाटक का यही हाल करता लगता है। - सतीश एलिया
दर्शकों ने सर आंखों पर लिया हबीब के चरणदास चोर को
दैनिक नई दुनिया
भोपाल, 1997 की कोई तारीखस्थानः रवींद्र भवनमौकाः चरणदास चोर का मंचन
भोपाल को देश के नक्शे पर सांस्कृतिक राजधानी बनाने की गरज से अस्सी के दशक में कला और सांस्कृतिक आयोजनों के अतिरेक के बाद नब्बे के दशक में इस क्षेत्र में उतर आया शून्य और सन्नाटा अब टूटने लगा है। खासकर रंगकर्म के क्षेत्र में तो दर्शक की लगभग अनुपस्थिति का कडवा सच अब उसकी उपथिति से मीठे सच में तब्दील हो रहा है। भारत भवन के अंतरंग में उषा गांगुली के नाटक रूदाली और आज रवींद्र भवन में हबीब तनवीर के नाटक चरणदास चोर के प्रदर्शन में दर्शकों की मौजूदगी से भोपाल में नाटक के जी उठने की उम्मीद बंधी है। थिएटर का मर्सिया पढने वालों को आज रवींद्र भवन में होना चाहिए था, जब दर्शकों की तालियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं। आज दर्शक न केवल आए बल्कि इस कदर आए कि हालत यह हो गई कि आयोजकों को फुल हाउस का बोर्ड लगाना पडा। सांस्कृतिक संस्था सूत्रधार के हफते भर के नाटय समारोह का आगाज हबीब तनवीर के विख्यात नाटक चरणदास चोर से हुआ। उनके नया थिएटर की इस प्रस्तुति में छत्तीसगढ की लोक नाटय, लोकन्रत्य और लोकगान शैली की पुरअसर छाप के साथ नाटक की वर्तमान पहुंच ने दर्शकों को दो घंटे बांधे रखा। कथ्य के बीचबी में कोरस गान और पंथी न्रत्य की सधी लय ताल ने चरणदास चोर के संदेश को सही ढंग से दर्शकों तक पहुंचाया। बात रवींद्र भवन में हबीब के निर्देशकीय कौशल और उनके लोकरंग से जुडाव को दर्शकों ने सर आंखों पर लिया।चरणदास चोर का कथ्य लोककथा पर आधारित है, जिसमें चोर अपने गुरू को झूठ न बोलने का वचन देता है और प्राण तजकर भी उसे निभाता है। चरणदास गुरू को हाथनी पर न बैठने, सोने की थाली में न खाने, रानी से ब्याह न करने तथा सत्ता न स्वीकारने का वचन देता है और उसे निभाता भी है। हास्य व्यंग्य शैली में समाज, धर्म, राजनीति और सत्ता की कुटिलताओं को बयान करते चलते इस नाटक में चरणदास बने चैतराम, गुरू बने भुलवाराम, रानी बनी अंगेश नाग और हवलदार के रूप में खुद हबीब तनवीर ने जीवंत अभिनय किया। अन्य सहयोगी कलाकारों ने नाटक की गति को बरकरार रखा और पंथी न्रत्य दल ने तो जैसे दर्शकांे को साधे रखा।नाटक का क्लाइमैक्स चरणदास चोर की अपनी सत्य निष्ठा पर पा्रण न्यौछावर करने से होता है। चरणदास की लाश को उठाकरन ले जाने का द्रश्य हबीब तनवीर के दूसरे ख्यात नाटक जिस लहौर नई वेख्या ओ जन्म्याई नईं की तरह दर्शकों को सनाके में छोडता है। लेकिन यहां हबीब सत्य की समाधि बनवा देते हैं और उसकी पूजा करवा देते हैं, इससे नाटक का क्लाइमैक्स दर्शकों के सामने छोडे सवाल के असर को कुछ कमजोर कर जाता है। आज की प्रस्तुति में संगीत पक्ष सशक्त रखा खासकर हारमोनियम से स्रजित पाश्र्व संगीत। आज की प्रस्तुति में नया थिएटर, चरणदास चोर और दर्शकों के बीच कुछ खटका तो रवींद्र भवन का हाॅल। हाॅल में मंच से ध्वनि दर्शकों तक पहुंचने में अपना असर खो रही थी और उमस से भरे खचाखच हाॅल में पंखे तक नहीं चल रहे थे। एक अच्छे नाटक को देखने में दर्शकों को गर्मी, उमस झेलना पडे। इसी वजह से मध्यांतर में कुछ दर्शक चले भी गए। -सतीश एलिया
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