हर सिम्त लरजता है इक लम्हा,
जीने का इलहाम होता है।
झूठ के सिक्के चलने का दौर है ये,
सच तो यहां बस नाकाम होता है।
कौन जाने किस गली में मिल जाएं वो,
इस उम्मीद से मन को कुछ आराम होता है।
मत छेडो तुम कोई राग, रो रोकर सोया है बेबाक अभी,
दिन भर तो यहां कोहराम होता है।
सांस जाती है सांस आती है,
चलता है जीवन ये अहसास होता है।
सुने कोई किसी के मन की,
कहां बची अब ये रवायत,
अब कहां किसी को किसी का अफसोस होता है।
हर सिम्त लरजता है इक लम्हा,
जीने का इलहाम होता है।
-सतीश एलिया बेबाक
30 जून 2002
रविवार, 31 मई 2009
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1 टिप्पणी:
सांस जाती है सांस आती है,
चलता है जीवन ये अहसास होता है।
सुने कोई किसी के मन की,
कहां बची अब ये रवायत,
अब कहां किसी को किसी का अफसोस होता है।
bahut achcha likha hai
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