सोमवार, 25 मई 2009

आईपीएल के खिलाफ मेरी पीएल

कल रात दक्षिण अफ्रीका के आकाश को रोशनी करती आतिशबाजी और बालीबुड बाला कैटरीना कैफ और अन्य सुंदरियों के कैटवाक का नजारा देखा, द. अफ्रीका के राष्टपति से लेकर इंडियन प्रीमियर लीग के तमाम कर्ता धर्ता और बीयर पीते हुए अधलेटे होकर अपनी टीम राॅयल चैलेंजर्स को हारते देख रहे डा. विजय माल्या वंदेमातरम की एक लाइन शामिल करते हुए होप सांग गाते लोगों को देखा। कितना भव्य आयोजन था। दक्षिण अफ्रीका के राष्टपति कोने में खड.े थे और मंच पर खिलाडि.यों को सम्मानित करने के मौके पर क्रिकेटर राष्टपति को कियी गिनती में ही नहीं ले रहे थे, उनके लिए ललित मोदी और उनके साथी ही मानो सही मायने में शंहशाह थे। एक दफा केंद्रीय मंत्री, क्रिकेट बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष मराठा क्षत्रप शरद पवार के साथ भी बदसलूकी हो चुकी है। लेकिन क्रिकेट की सत्ता में राष्टाध्यक्ष और मंत्री की क्या बिसात, इस खेल में तो अब आईपीए या अन्य ताकतवर संगठनों के कर्ता धर्ता ही शहंशाह हैं। आईपीएल के कर्ता धर्ता ललित मोदी और उनके क्रिकेट मंत्रिमंडल के लोग इस पर इतरा सकते हैं कि भारत की सरकार ने इसे भारत में नहीं होने दिया तो क्या, हमने जोहानिसबर्ग में कर दिखाया। इस पूरे आयोजन से कई सवाल उभरे हैं, इनमें से दो सवाल ऐसे हैं जिन पर मुझे लगता है पूरी गंभीरता से चर्चा की जरूरत है। पहला तो ये कि क्रिकेट में सरकार के उपर एक सत्ता कायम हो गई है जो सरकार को ठेंगा दिखाती नजर आ रही है। दूसरा ये कि क्रिकेट की चमक बाकी खेलों को खा तो पहले ही चुकी है, अब नेस्तानाबूद करने वाली स्थिति में आ गई है। मैं क्रिकेट खेलने, देखने सुनने और खुद को आधुनिक बताने के लिए आईपीएल के मैच देखने में कामकाज को भी टाल देने वालों को नाराज नहीं करना चाहता। क्योंकि मैं खुद भी करीब एक दशक पढ.ाई और दूसरे ज्यादा महत्वपूर्ण कामों को छोड.कर क्रिकेट खेलता रहा हूं और अपनी टीम का कप्तान रहा हूं। लेकिन सवाल ये है कि क्रिकेट किस कीमत पर। क्रिकेट के दागी अजहरउददीन लोकसभा चुनाव जीत गए हैं, अजय जडेजा टीवी चैनलों पर मैच पर एक्सपर्ट कमेंट देते नजर आते हैं। और हमारे देश में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का हमने क्या किया, विश्वनाथन आनंद को हम सर आंखों पर क्यों नहीं बिठाते। फुटबाल से लेकर एथेलिटिक्स में हम कहां खड.े हैं। फिर आईपीएल के पूरे आयोजन को हमने क्रिकेट कैबरे की तरह देखा, क्या खेल की गरिमा आवश्यक नहीं है। जोहानिसबर्ग में आईपीएल के आयोजन का कुल कारोबार 12 हजार करोड. रूपए का बताया गया है यानी मध्यप्रदेश जैसे राज्य की सरकार के साल भर के बजट की एक तिहाई रकम। जरा सोचिए क्या सरकार को आईपीएल जैसे टूर्नामेंट अपने नियंत्रण में नहीं ले लेने चाहिए। ताकि क्रिकेट की गरिमा भी बनी रहे और दूसरे खेलों को मटियामेट होने से भी बचाया जा सके।

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