अबके बरस फिर न लौट के आईं,
खुशियां जो हमसे रूठके गईं
बरस बरस बरसों बरस,
अब कितना बरसें
बरस बरस अंखियां तरस गईं
सावन बरसीं भादौं बरसी,
माघौं बरसी फागुन बरसीं
न कोई सोचे न कोई समझे
न कोई जाने न पहचाने
दिल पत्थर के लोग दिवाने
मेने मनवां भेद न जाने
पग पग रोये ठोकर खाए
रूखी पगडंडी पर चलते चलते
फट गईं पांव विवांईं
अबके बरस फिर न लौट के आईं
खुशियां जो हमसे रूठ गईं
- सतीश एलिया बेबाक
10 जून 1992
शुक्रवार, 29 मई 2009
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2 टिप्पणियां:
Waah ! Bahut hee sundar...Komal bhavon ki sundar abhivyakti.
bemisal!
apne dard k kalchkar ko shabdo ke lamho me piro diya. man k kone m dubke hue is dard ka bhut sunder chitran hai
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