बुधवार, 27 मई 2009

दर्द के ओढ.ने बिछौने हैं,

दर्द के ओढ।ने बिछौने हैं,

वक्त के हाथ हम खिलौने हैं।

बाहर हंसते रहे हम लेकिन,

उदास मन के कोने हैं। दर्द के ओढ।ने बिछौने हैं।

अभी तो तनहाई से इश्क बाकी है,

आंसुओं के हार भी पिरोने हैं।

दर्द के ओढ।ने बिछौने हैं।

तुम ही नासमझ बन जाओ बेबाक,

यहां तो सब सयाने हैं।

दर्द के ओढ.ने बिछौने हैं।

6 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

वाह ! बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रवाहमयी गीत !!

बड़ा ही आनंद आया पढ़कर...आभार.

शारदा अरोरा ने कहा…

दर्द के ओढ़ने बिछोने हैं
उदास मन के कोने हैं
ये पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर लगीं |

श्यामल सुमन ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अनिल कान्त ने कहा…

bahut achchha likha hai aapne

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Science Bloggers Association ने कहा…

अरे वाह, कमाल का मिसरा है। मिसरे के साथ पूरी गजल एक सुर में बहती हुई चली जाती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

manisha ने कहा…

bahut khub sir lgta h har man ki ankahi apne khi


manisha