रविवार, 6 सितंबर 2009

न सरकार कम है और न ही ये शिक्षक .......

भोपाल में शिक्षक दिवस के मौके पर प्रदर्शन कर रहे अध्यापकों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया। यह घटना सतह पर ऐसी लगती है मानो सरकार शिक्षक दिवस जैसे पावन माने जाने पर्व पर शिक्षकों को पिटवा रही थी। दरअसल शिक्षा, शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था के मामले में सरकारों की स्पष्टï नीति न होने और शिक्षक कर्म से जुड़े लोगों की इस पवित्र काम के प्रति निष्ठïा नहीं होने से यह विचित्र स्थिति करीब करीब हर साल बनती है। सरकार खासकर भाजपा की सरकार गुरू पाद पूजन और राजर्षि घोषित करने जैसे लॉलीपॉप देकर अध्यापकों को शााब्दिक महिमामंडन से नवाज कर चुनावों में उनका फायदा उठाने की कोशिश करती है। दूसरी तरफ जिन शर्तों और नियमों को मंजूर कर शिक्षा कर्मी की नौकरी हासिल की थी, उन्हें नकार कर भरपूर वेतन और फायदे लेने के लिए अध्यापक शिक्षक दिवस को सुनहरे मौके के तौर पर देखते हैं। दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में ही स्कूल शिक्षा विभाग के सहायक शिक्षक संवर्ग को डाइंग कैडर घोषित कर दिया गया था। इसके बाद शिक्षा कर्मी भर्ती किए गए जिन्हें गांवों मेंं पंचायत और शहरों में नगरीय निकाय के जिम्मे भर्ती किया गया। भारी भाई भतीजावाद और अयोग्यों को भर्ती करने के अभियान में प्रदेश भर में शिक्षकों की जगह शिक्षा कर्मी भर्ती कर लिए गए। सरकार को स्कूल चलाने के लिए सस्ते दामों पर यह शिक्षा कर्मी मिल गए। लेकिन इनमें से ज्यादातर स्कूलों का रुख नहंीं करते। कम योग्य लेकिन प्रभावशाली लोगों के रिश्तेदार होने की वजह से शिक्षा कर्मी बन गए लोगों को भाजपा की सरकार ने एक बड़े वोट बैंक के रूप में देखा और उन्हेंं सरकार बनने पर शिक्षा कर्मी से शिक्षक बनाने का वादा किया। इस पर अमल जिस तरह किया गया उससे यह शिक्षा कर्मी बनाम अध्यापक नाराज हैं। वे लगातार यह आंदोलन करते हैं कि स्कूल शिक्षा विभाग के सहायक शिक्षकों को जितना वेतन और सुविधाएं मिलती हैं, हमें भी दी जाएं। सरकार की न तो माली हालत इतनी मोटी तनख्वाहें देने की है और न ही मंशा। दूसरी तरफ शिक्षा कर्मी से अध्यापक बने शिक्षक भी अध्यापन में कम ही रूचि लेते हैं। प्रदेश के स्कूलों में उनकी उपस्थिति और बच्चों की शिक्षा का स्तर इसका प्रमाण है। प्रदेश में प्राथमिक, मिडिल से लेकर हाईस्कूल और हायरसेंकेडरी तक के परीक्षा परिणाम इसकी पुष्टिï करते हैं। सरकार गुरू पाद पूजन और राजर्षि कहे जाने जेसी बेवकूफियों के बजाय शिक्षकों की भर्ती में स्तर बढ़ाने, उसी के मुताबिक वेतन भत्ते देने और फिर उनसे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के जमकर काम लेने की नीति पर अमल करे तो मप्र की शिक्षा की स्थिति में सुधार हो सकता है। स्कूल शिक्षा के इस बदहाल दौर में उच्च शिक्षा यानी सरकारी कॉलेजों की हालत भी अत्यंत दयनीय है। सरकार की रूचि सहायक प्राध्यापकों और प्राध्यापकों के खाली पद पीएसएसी के माध्यम से भरने में रूचि नहीं है। बीते करीब दो दशक से हजारों की संख्या में पद खाली पड़े हैं। स्कूलो में सस्ते दामों वाले शिक्षा कर्मियों की ही तरह कॉलेजों में अतिथि विद्वान नाम से सस्ते श्रमिकों से ठेके पर काम लेने की प्रथा को करीब करीब स्थाई सा बना दिया गया है। अब यह अतिथि विद्वान भी कई सालों से काम करने के आधार पर नियमित किए जाने की मांग कर रहे हैँ। वे भी पीएसएसी से भर्ती की मांग नहीं कर रहे हैं क्योंकि तब केवल काबिल लोग ही भर्ती हो पाएंगे। दूसरी तरफ पहले ही तदर्थ इत्यादि कई पिछले दरवारों से सहायक प्राध्यापक और प्राध्यापक बन गए शिक्षक अब राज्य सरकार से केंद्रीय वेतनमान के मुताबिक यूजीसी का छठवां वेतनमान मांग रहे हैं। कालेजों में शिक्षकों की उपस्थिति, उनकी योग्यता और शिक्षा का स्तर देखते हुए अभी मिल रहा उनका वेतन भी इतना अधिक है कि आश्चय्र होता है कि आखिर इतना वेतन क्यों दिया जाता है। यूजीसी का स्केल मिलने पर प्राध्यापकों की तनख्वाह 70 से 80 हजार रुपए तक हो जाएगी। यानी मुख्य सचिव के बराबर वेतन प्राध्यापक का। वह भी कितना अध्यापन और शोध कार्य करते हैं? एक वरिष्ठï प्राध्यापक ने शिक्षक दिवस के मोके पर मुझसे कहा कि हम लोग आज हडताल पर हैं यूजीसी वेतनमान सरकार को देर सबेर देना ही पड़ेगा लेकिन हम लोग ऐसा क्या काम करते हैं कि हमें 70-80 हजार रुपए वेतन मिले। देश में एक तरफ 40 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों, प्राध्यापकों, इंजीनियरों का वेतन कई कई गुना बढ़ता जा रहा है, ऐसे में जो शिक्षित वर्ग गरीबों के करीब था वह भी उनसे दूर जा रहा है। अमीरों की एक नई श्रेणी छठवें वेतनमान ने बना दी है, जो कम काम कम श्रम के बावजूद खुशहाल हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद संतुष्ठï नही है, दूसरी तरफ लोग दो वक्त की रोटी के लिए जददोजहद में लगे हैं, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। 

2 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

क्या कहे इस नकारा व्यवस्था को .

राज भाटिय़ा ने कहा…

आज कल हर तरफ़ गुरु घंटाल ही है