दिन खुशगवार था रात पर भी नशा सा छाया है।
ये कौन मेरे दिल पे अपना नक्श गया है छोडकर,
हर सिम्त हर जर्रे में उसका ही सरमाया है।
अब यहां रिश्तों में न रही पहले सी हरारत,
हर शख्स दूसरों से और अपने आप से घबराया है।
चल बेबाक गुम हो जाएं अपनी ही बेखुदी में,
यहां कौन किसके गम को समझ पाया है।
शरद के चांद पर बादलों का सरमाया है।।
- सतीश एलिया बेबाक
भोपाल शरद पूर्णिमा 2009
9 टिप्पणियां:
बेहतरीन कविता के लिए बधाई
आज आपका जन्म दिवस भी है उसके लिए बधाई शुभकामनाएं.......................
सुन्दर कविता, और मेरे तरफ से भी जन्मदिन की बधाई !
आखिरी लाइन में शायद टंकण त्रुटी लगती है "साया" की जगह "सरमाया" अंकित हो गया उसे ठीक कर ले, शुक्रिया !
हमारी तरफ से भी जन्मदिन की बधाई . कविता बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
पहले तो जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं । ये दिन तो शुभ है ही पर साथ्ा ही यादगार भी हो जायेगा क्योंकि आपने आज एक रचना को जन्म भी दिया है। अरसा पहले मैं भी अपने जन्मदिन पर एक कविता जरूर लिखा करता था । आपने वो याद ताजा कर दी । नज्म सीधे दिल को छू गयी । इसे थोडा और बडाइये।
DIN YADGAR OR MOSAM KHUSHGVAR HAI KYOKI SHARAD KA CHAND SWARNIM RASHMIYO KE SATH EK GHAR KO ROSHAN KR RHA HAI
JANAMDIN KI SHUBHKAMNAYE
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DIN YADGAR OR MOSAM KHUSHGVAR HAI KYOKI SHARAD KA CHAND SWARNIM RASHMIYO KE SATH EK GHAR KO ROSHAN KR RHA HAI
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