बुधवार, 30 सितंबर 2009
मौला रूखसाना सी बिटिया ही दीजौ
शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
अपने स्वार्थ के लिए विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगाने वालों का तंबू उखड़ा
(कृपया इस संबंध में मेरी 10 सितंबर 2009 की पोस्ट भी देखें)
बुधवार, 23 सितंबर 2009
जिंदादिल कौन है?
सोमवार, 21 सितंबर 2009
दिग्विजय उवाच-देवी का भंडार भरा रहे, लोग पी-पी कर पड़े रहें
रविवार, 20 सितंबर 2009
सादगी वालों सुनो अरज हमारी......
मादाम सोनिया गांधी, चिरंजीव राहुल गांधी और सादगी के नए प्रणेता प्रणव मुकर्जी से लेकर कैटल क्लास मुहावरे के जनक शशि थरूर तक सब देवियों और सज्जनों से एक गुहार करने का मन हो रहा है। कांग्रेस की पीवी नरसिंहराव सरकार में एक रेल मंत्री थे सीके जाफर शरीफ। उन्हें आज भी लोग याद करते हैं, वह भी किसी भी यात्री गाड़ी के जनरल डिब्बे में। उन्हें लोग जिन विशेषणों से नवाजते हैं, उनका समर्थन नहीं किया जा सकता, क्योंकि शरीफ अब इस दुनिया में नहीं हैं। लोग भी क्या करें, उन्हें यह सब इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि जनरल बोगी में सफर करना करीब करीब सजा भुगतने जैसा होता है। लोग शरीफ को कोसते हैं वो इसलिए कि उन्होंने तब तक जारी दिन में स्लीपर कोच में सफर कर सकने की सुविधा को खत्म कर दिया था। गाडिय़ों की संख्या तब से अब तक कई गुना बढ़ चुकी है लेकिन यात्रियों की तादाद से कहीं ज्यादा बढ़ी है। लेकिन जनरल केडिब्बों की संख्या नहीं बढ़ी। कम दूरी की यात्रा में रिजर्वेशन नहीं मिलने पर जो लोग ईमानदारी से जनरल बोगी में पहुंच जाते हैं, उनकी जो दशा इन बोगियों में होती है, वह शशि थरूर के मुहावरे का प्रत्यक्ष उदाहरण है। लंबी दूरियों की गाडिय़ों में लोग सामान रखने की जगह में शरीर को तोड़ मोड़कर सोए रहते हैं, सीटों के बीच में भी लोग सोते हैं। टायलेट मेें भी लोग खड़े और बैठे मिल जाएंगे। करीब करीब 16 साल से यही हालात हैं। हवाई जहाज के इकोनामी क्लास को कैटल क्लास कहनेवाले शशि थरूर को भले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मजाक के बहाने माफ कर दें और थरूर के बयान से वीवीआईपी महाशयों और देवियों को संतोष न हो लेकिन मेरी गुजारिश इन सादगी पसंदों से है, कृपया किसी एक्सप्रेस के खासकर मुंबई जाने वाली और मुंबई से उत्तर भारत की तरफ आने वाली गाडिय़ों के जनरल डिब्बे में एक दफा यात्रा जरूर करें, वह भी किसी पूर्व सूचना या प्रचार के। आपको सादगी का राग बंद करना पड़ेगा या फिर आप में जरा भी मानवीयता होगी तो भारतीय रेलवे में 16 सालों से जारी यह कैटल क्लास बंद कराने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे।
सोमवार, 14 सितंबर 2009
आज हिंदी डे है
आज हिंदी डे है न
उन्हें सुबह से शाम तक,
धारा-प्रवाह हिंदी में बोलते-बतियाते,
देखकर अद्र्धांगिनी घबराईं,
चिंता की लकीरें माथें पर आईं,
एक युक्ति मस्तिक्क में आई,
फौरन पारिवारिक चिकित्सक को लगाया फोन,
साहब की भंगिमाओं और भाषण शैली का बताया एक-एक कोण,
डॉक्टर महोदय तनिक मुस्कराए, लक्षणों पर गौर फरमाया,
बोले- मैडम, घबराइए मत,
कल सुबह तक साहब हो जाएंगे ठीक,
बोलने लगेंगे फर्राटेदार अंग्रेजी या अपनी प्यारी भाषा हिंगिलिश,
एक ही दिन का है यह रोग, दरअसल आज हिंदी डे है न॥
-सतीश एलिया
रविवार, 13 सितंबर 2009
हिंदी का सर्वाधिक अहित हिंदी पत्रकारिता कर रही है
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
भूल गलती..... को याद करते हुए
और -एक साहित्यिक की डायरी से....
अगर मैं उन्नति के उस जीने पर चढने के लिए ठेलमठेल करने लगूं तो शायद मैं भी सफल हो सकता हूं। लेकिन ऐसी सफलता किस काम की जिसे प्राप्त करने के लिए आदमी को आत्म-गौरव खोना पडे, चतुरता के नाम पर बदमाशी करना पडे। शालीनता के नाम पर बिल्कुल एकदम सफेद झूठी खुशामदी बातें करनी पडें। जिन व्यक्तियों को आप क्षण-भर टालरेट नहीं कर सकते, उनके दरबार का सदस्य बनना पडे। हां, जो लोग यह सब कर लेते हैं, वे अपनी यशः पताकाएं फहराते हुए घर लौटते हैं और कितने आत्मविश्वास से बात करते हैं। मानो उन्हीं का राज्य है। बहुरूपिया शायद पुराना हो गया है, लेकिन उसकी कला दन दिनों अत्यंत परिष्क्रत होकर भभक उठी है।
अब तक क्या किया...
अब तक क्या किया,
जीवन क्या जीयाकिस-किसके लिए तुम दौड गए,
करूणा के द्रश्यों से हाय मुंह मोड गए
बन गए पत्थर।
अरे! मर गया देश जीवित रह गए तुम!!
अब क्या कियाजीवन क्या जीया।
भूल गलती
आज बैठी है जिरहबख्तर पहन करतख्त पर दिल के,
चमकते हैं खडे हथियार उसके दूर तक,
आंखे चिलकती हं नुकीले तेज पत्थर-सी,
खडी हैं सिर झुकाए
सब कतारें
बेजुबां बेबस सलाम में,
अनगिनत खंभों व मेहराबों-थमे
दरबारे-आम में।
सामनेबेचैन घावों की अजब तिरछी लकीरों से कटाचेहराकि
जिस पर कांपदिल की भाफ उठती है
पहने हथकडी वह एक उंचा कद,
समूचे जिस्म पर लत्तर,
झलकते लाल लंबे दागबहते खून के।
वह कैद कर लाया गया ईमानसुलतानी निगाहों में निगाहें डालता,
बेखौफ नीली बिजलियों को फेंकताखामोश!!
सब खामोशमनसबदार,शायर और सूफी,अलगजाली, इब्ने सिन्ना, अलबरूनी,आलिमो फाजिल सिपहसालार, सब सरदार
हैं खमोश!!
नामंजूर,
उसको जिंदगी की शर्म की-सी शर्तनामंजूर,
हठ इनकार का सिर तान खुद-मुख्तार।
कोई सोचता उस वक्तछाए जा रहे हैं सलतनत पर घने साए स्याह,
सुल्तानी जिरहबख्तर बना है सिर्फ मिटटी का,
वो-रेत का-सा ढेर शंहशाह,
शाही धाक का अब सिर्फ सन्नाटा!!;
लेकिन, ना,जमाना सांप का kata
;आलमगीरद्धमेरी आपकी कमजोरियों के सयाहलोहे का जिरहबख्तर पहन,
खूंख्वारहां, खूंख्वार आलीजाह,
वो आंखें सचाई की निकाले डालता,
सब बस्तियां दिल की उजाडे डालता,
करता, हमें वह घेर,
बेबुनियाद, बेसिर-पैरहम सब
कैद हैं उसके चमकते ताम-झाम में
शहरी मुकाम में!!
इतने में,
हमीं में सेअजीब कराह-सा कोई निकल भागा,
भरे दरबारे-आम में मैं भीसंभल जागा!!
कतारों में खडे खुदगर्ज बा-हथियारबख्तरबंद समझौत्ेसहमकर,
रह गए,
दिल में अलग जबडा, अलग दाडी लिए,
दुमुंहेपने के सौ तजुर्बों की बुजुर्गी से भरे,
दढियल सिपहसालार संजीदा सहमकर रह गए!!
लेकिन, उधर उस ओर,कोई, बुर्ज के उस तरफ जा पहुंचा,
अंधेरी घाटियों के गोल टीलों,
घने पेडों मेंकहीं पर खो गया,
महसूस होता है कि वह बेनामबेमालूम दर्रों के इलाके में;
सचाई के सुनहले तेज अक्सों के धुंधलके मेंद्ध मुहैया कर रहा लश्कर,
हमारी हार का बदला चुकाने आएगासंकल्प-धर्मा चेतना का रक्तप्लावित स्वर,
हमारे ही ह्रदय का गुप्त स्वर्णाक्षरप्रकट होकर विकट हो जाएगा!!
- गजानन माधव मुक्तिबोध
जन्म श्योपुर मप्र 13 नवंबर 1917, निधन दिल्ली11 सितंबर 1964
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
हडताली कालेज शिक्षकों, सरकार और मीडिया से चंद सवाल.....
1 वर्तमान में मप्र में उच्च शिक्षा की स्थिति क्या है? आशय नतीजों से और प्रदेश के डिग्रीधारी युवाओं को क्या कॅरियर मिल पा रहा है?
2 प्रदेश में कितने सरकारी और कितने गैर सरकारी कालेज हैं?
3 सरकारी कालेजों में वर्तमान में शिक्षकों के कितने पद खाली और कितने भरे हैं?
5जो पद भरे हैं उनमें से कितने शिक्षक पीएससी के जरिए भर्ती हुए और जो पिछले दरवाजे से भर्ती हुए वे क्या उस वक्त यूजीसी के मापदंडों को पूरा कर रहे थे?
5मापदंड पूरा नहीं कर रहे थे उन्हें कोई भी वेतनमान क्यों दिया जा रहा है? क्या इनसे बाद में पीएससी के जरिए चयन की अनिवार्यता का पालन नहीं कराया जाना चाहिए था?
6 सरकार खाली पद भरने पीएससी की परीक्षा क्यों नहीं करा पा रही है? प्राध्यापक पदों को भरने शुरू की गई प्रक्रिया किसके दवाब में रोक दी गई और क्यों?
7 क्या हडताली शिक्षक और शिक्षा मंत्री को पता है प्रदेश में अब सरकारी कालेजों से ज्यादा संख्या निजी कालेजों की है, जिनमें सरकारी कालेजों के मोटी तनख्वाह पाने वाले शिक्षकों से ज्यादा योग्य शिक्षक उनकी तुलना में एक चैथाई तनख्वाह पर काम कर रहे हैं?
8 सरकारी शिक्षकों को अपने ही इन साथियों को छठवां वेतनमान या यूजीसी वेतनमान न मिलने की कोई फिक्र है? क्या सरकार निजी कालेजों में कागज के बजाय हकीकत में वेतनमान लागू करा पाएगी? 9 सालों से शहरों में ही वह भी एक ही शहर और एक ही कालेज में जमे शिक्षकों के तबादले कर कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों के कालेजों में रिक्त पद भरने के लिए सरकार कोई कदम उठाएगी?
10क्या हडताली शिक्षक रिजल्ट सुधारने और मप्र के स्नातक और स्नातकोत्तरों को अन्य प्रदेशों में इज्जत की नजर से देखने लायक बनाने के लिए भी अपनी तनख्वाह बढवाने की ही तरह गंभीर होंगे?