रविवार, 31 मई 2009

इक लम्हा

हर सिम्त लरजता है इक लम्हा,
जीने का इलहाम होता है।

झूठ के सिक्के चलने का दौर है ये,
सच तो यहां बस नाकाम होता है।

कौन जाने किस गली में मिल जाएं वो,
इस उम्मीद से मन को कुछ आराम होता है।

मत छेडो तुम कोई राग, रो रोकर सोया है बेबाक अभी,
दिन भर तो यहां कोहराम होता है।

सांस जाती है सांस आती है,
चलता है जीवन ये अहसास होता है।
सुने कोई किसी के मन की,
कहां बची अब ये रवायत,
अब कहां किसी को किसी का अफसोस होता है।

हर सिम्त लरजता है इक लम्हा,
जीने का इलहाम होता है।
-सतीश एलिया बेबाक
30 जून 2002

शनिवार, 30 मई 2009

बेशर्मी इज द बेस्ट पाॅलिसी

सबसे पहले तो इस शीर्षक के लिए आॅनेस्टी इज द बेस्ट पाॅलिसी के प्रवर्तकों, फालोअरों और पक्षधरों से क्षमायाचना करता हूं, जैसे कि पूर्वज गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखने की शुरूआत में वंदउ खलव्रंद कहते हुए दुष्टों को नमन किया था, क्योंकि गुसांई जी का मानना था कि उनकी कृपा के बिना मानस का लेखन नहीं हो पाता। तो मित्रों मैं ईमानदारी के झंडाबरदारों से क्षमा याचना करते हुए नए जमाने की नई बात यानी नए युग स्लोगन बेशर्मी इज द बेस्ट पाॅलिसी के प्रमोशन के लिए आपसे रूबरू हूं। क्यांेकि वो जमाना लद चुका है जब ईमानदारों की कद्र होती थी, मेरी बात को यूं समझें कि अब लाल साबुन से नहाने और तंदुरूस्त रहने के विज्ञापनों का जमाना लद गया है और संदल समेत एक दर्जन खुश्बुओं में आने वाले साबुनों का जमाना है। इस नए स्लोगन के प्रमोशन के लिए मैं क्यों आगे आया इसकी भी रोचक और प्रेरक दास्तां है। मेरे एक परिचित हैं, मित्र कहलाने लायक कोई योग्यता उनमें न तो है और न ही वे इस तरह की वाहियात बातों में यकीन ही रखते हैं। उनकी खूबी ये है कि वे सफल हैं, और उसकी जड. वे बेशर्मी को मानते हैं, गुनते हैं और धारण करते हैं। वे शरीर विज्ञान की इस धारणा के भी खिलाफ हैं कि रीढ. की हडडी शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, वे यहां तक मानते हैं कि इसकी जरूरत ही क्या है! तो जनाब वे कहते हैं सफल होने के लिए चमचागिरी महत्वपूर्ण गुर है, लेकिन मूल मंत्र तो बेशर्मी है। एक दफा यह जीवन का अविभाज्य अंग बन जाए तो चमचागिरी, चुगलखोरी, टांग खिंचाई इत्यादि सहयोगी गुणों के जरिए सफलता मिल ही जाती है। उनका जीवन प्रत्यक्षं किं प्रमाणं की तरह मेरे सामने है। अपेक्षाकृत कम शिक्षित, कम अक्ल और अविश्वसनीय होने के बावजूद वे न केवल सफल हैं, बल्कि राह में आने वाले हर किस्म के रोड.े को हटाने में सक्षम हैं। उनकी पूरी सफलता में अहम किरदार बेशर्मी का ही है। वे अपनी कीर्ति के ऐसे ऐसे किस्से सहजता से सुनाते रहते हैं कि सुनने वाले हर शख्स की आंखों में परिहास की चमक कौंध जाती है, वे इसे भांप लेते हैं, जान लेते हैं लेकिन इस सबके बावजूद उन्हें इस सबसे कोई फर्क नहीं पड.ता, इसीलिए तो वे सफल हैं। अब केंद्र में फिर यूपीए की सरकार आ गई तो वे बोले देखा बेशर्मी ही सफलता का एकमात्र पैमाना है, हमने कहा कैसे! तो कहने लगे लोकतंत्र में परिवारवाद को कोई जगह नहीं होना चाहिए, हमने कहा हां, वे बोले, लेकिन हकीकत में क्या है, नेहरू जी के कुनबे से चार सांसद चुने गए, इनमें से राहुल सुपर पीएम और सोनियाजी अल्टा सुपर पीएम हैं। फारूख अब्दुल्ला और उनके दामाद सचिन पायलट मंत्री बन गए, बेटा उमर पहले ही मुख्यमंत्री बन चुके हैं। करूणानिधि मुख्यमंत्री, बेटा एम स्टालिन उपमुख्यमंत्री, दामाद एवं भानजा दयानिधि मारन केंद्र में मंत्री, बेटा अझागिरी भी केंद्र में मंत्री, बेटी कणिमोझी को मंत्री नहीं बनवा पाए तो क्या उनके लिए और कोई पद दिला देंगे। संगमा की बेटी अगाथा भी मंत्री बन गई।
मैंने पूछा ईमानदारी इज बेस्ट पाॅलिसी को खारिज करने का इस वंशवाद से क्या ताल्लुक! वे बोले, ताल्लुक है। वो ये कि जो होना चाहिए वह नहीं होना ही सफलता है, इसी तरह आॅनेस्टी इज द बेस्ट पाॅलिसी होना चाहिए के पीछे पड.े रहोगे तो सफल कैसे होगे? सफलता पाना है तो बेशर्मी इज बेस्ट पाॅलिसी पर अमल करो, भले ही हर और दफतर की दीवाल पर आॅनेस्टी की तारीफ वाला स्लोगन लिखवा लो और उसे रोज अगरबत्ती भी लगाओ, लेकिन उसे दिल में मत बसाओ। दिल में जो बसा हो उसका जिक्र भी कोई करता है भला। श्रीमान सफल के इस दर्शन ने मुझे झकझोरा डाला, लेकिन मेरे शरीर के वर्तमान डीएनए में तो इस पर अमल मेरे लिए नितांत असंभव लग रहा है, इसलिए में उनके प्रभावी भाषण से हिल गया हूं। मैं असपफल ही रहना चाहता हूं, हो सकता है यही मेरी नियति हो। इस कथा ने आपके मन में भी हलचल मचाई हो तो लिखिएगा जरूर, आमीन!

शुक्रवार, 29 मई 2009

अबके बरस

अबके बरस फिर न लौट के आईं,
खुशियां जो हमसे रूठके गईं
बरस बरस बरसों बरस,
अब कितना बरसें
बरस बरस अंखियां तरस गईं
सावन बरसीं भादौं बरसी,
माघौं बरसी फागुन बरसीं
न कोई सोचे न कोई समझे
न कोई जाने न पहचाने
दिल पत्थर के लोग दिवाने
मेने मनवां भेद न जाने
पग पग रोये ठोकर खाए
रूखी पगडंडी पर चलते चलते
फट गईं पांव विवांईं
अबके बरस फिर न लौट के आईं
खुशियां जो हमसे रूठ गईं
- सतीश एलिया बेबाक
10 जून 1992

गुरुवार, 28 मई 2009

एक दिन चार कविताएं

मित्रों आपको याद वर्ष 2001 की कुछ हौलनाक घटनाएं स्मरण होंगी, गुजरात का भूकंप, कोल माइंस में मजदूर का दबना। इन घटनाओं ने निश्चित ही आपको भी झकझोर दिया होगा। मैं भी इन त्रासदियों से व्यथित हुआ और करीब डेढ. सप्ताह बाद चंद कविताएं लिखीं थीं। भूकंप में एक मां की म्रत देह से चिपटा जीवित शिशु मिला था, जो मां का रक्त पीकर जीवित रहा था। भूकंप के बाद ही गुजरात के उस इलाके में मीठे पानी के सोते फूट आए थे जहां पहले खारा पानी निकलता था। छुटटी के दिन पुरानी डायरियां और पन्ने सहेजने बैठा तो नौ फरवरी 2001को लिखीं यह कविताएं भी मिलीं। मैं पत्र पत्रिकाओं में छपता रहा हूं लेकिन यह कविताएं कहीं भेजी नहीं थीं। आपके समक्ष प्रस्तुत हैं- टिप्पणी जरूर दीजिएगा।
धरती
धरती धैर्य का प्रतीक,
धैर्य भी आखिर कब तक
चुक जाए तो होता है भूडोल
कांपती है क्रोध में धरती
होता है विनाश।
हे मां धारित्री कर क्षमा अपने नामसझ बच्चों की ध्रष्टताओं को
दे जीवन पिला अम्रत अपने प्रेम का
मां ने अपने सर झेली विपदा
शिशु को लिया अंक में समेट मर गई मां,
शिशु को दिया दूध की ही तरह अपने रक्त से जीवन
धन्य है तू मां।
हे धरती मां सोता फूटा है खारे पानी में से मीठे जल का
अपने अंक में छुपा लिया था जिस सिंधु धारा कोलौटा दे मां,
सबको दे अम्रत और भुला दे हम सबकी नादानी को
हे मां अब मत होना तू अधीरा।
पानी
जल ही जीवन है पानी की एक एक बूंद है अम्रत
यह वाक्य भी रट लिए हमने तोते की तरह
शिकारी आता है दाना डालता हैजाल फैलाता है, हमें जाल में नहीं फंसना चाहिए
व्यर्थ बहाना पानी, प्रदूषित करना जलस्त्रोत, नहीं छोड.ते हम
कांपी धरती, दबे सैकड.ों मलबे में,
बच गए वे जिन्हें मिल गई बूंदें अम्रत समान जल की,
धरती के गर्भ में मौत खड.ी सामने,
मौत बने पानी में भी दिया जीवन पानी की बूंदों ने
अब तो समझो जल ही जीवन है,
एक एक बूं अम्रत है इसकी।
हवा
मत करो तुम द्वार-दरवाजे खिड.की-जंगले बंद,
आने दो हवा कि चलती रहे सांस, कि चलती रहे जिंदगी
कर लोगे तुम द्वार छिद्र बंद सब तब भी ढूंढ ही लेगी राह हवा कोई न कोई।
हवा बांटती है सांसें, जिंदगी
हवा नहीं चाहती कि कोई मरे उसके बिना।
धरती की अतल गहराईयों में पानी में निमग्न कोयले की खान,
बचने की उम्मीद नहीं कोई,
एक सुराख ढूंढ घुस गई हवा
मौत के जबड.ों से खींच लाई सलीम अंसारी को
क्योंकि हवा नहीं चाहती कोई मरे उसके बिना,
कोई मरना भी नहीं चाहता यूं ही
तो मत करो तुम द्वार-दरवाजे बंद
मत चलाओ आरे और कुल्हाडि.यां पेड.ों पर
ताकि चलती रहे हवा, चलती रहे सांस, चलती रहे जिंदगी।
जंगल
जंगल में रहते थे कभी
अब भी रहते हैं जंगल में ही
काटते गए पेड. रच लिए जंगल कांक्रीट के
पेड.ों के जंगल में रहना छूटता गया
और जंगल के साथ जंगली शब्द का अर्थ ही बदल डाला हमने
कांक्रीट के जंगल में बसकर हमने
खुद को बना लिया है उस अर्थ में जंगली
जैसा कि हमने बना डाला इस शब्द को।

बुधवार, 27 मई 2009

दर्द के ओढ.ने बिछौने हैं,

दर्द के ओढ।ने बिछौने हैं,

वक्त के हाथ हम खिलौने हैं।

बाहर हंसते रहे हम लेकिन,

उदास मन के कोने हैं। दर्द के ओढ।ने बिछौने हैं।

अभी तो तनहाई से इश्क बाकी है,

आंसुओं के हार भी पिरोने हैं।

दर्द के ओढ।ने बिछौने हैं।

तुम ही नासमझ बन जाओ बेबाक,

यहां तो सब सयाने हैं।

दर्द के ओढ.ने बिछौने हैं।

सोमवार, 25 मई 2009

आईपीएल के खिलाफ मेरी पीएल

कल रात दक्षिण अफ्रीका के आकाश को रोशनी करती आतिशबाजी और बालीबुड बाला कैटरीना कैफ और अन्य सुंदरियों के कैटवाक का नजारा देखा, द. अफ्रीका के राष्टपति से लेकर इंडियन प्रीमियर लीग के तमाम कर्ता धर्ता और बीयर पीते हुए अधलेटे होकर अपनी टीम राॅयल चैलेंजर्स को हारते देख रहे डा. विजय माल्या वंदेमातरम की एक लाइन शामिल करते हुए होप सांग गाते लोगों को देखा। कितना भव्य आयोजन था। दक्षिण अफ्रीका के राष्टपति कोने में खड.े थे और मंच पर खिलाडि.यों को सम्मानित करने के मौके पर क्रिकेटर राष्टपति को कियी गिनती में ही नहीं ले रहे थे, उनके लिए ललित मोदी और उनके साथी ही मानो सही मायने में शंहशाह थे। एक दफा केंद्रीय मंत्री, क्रिकेट बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष मराठा क्षत्रप शरद पवार के साथ भी बदसलूकी हो चुकी है। लेकिन क्रिकेट की सत्ता में राष्टाध्यक्ष और मंत्री की क्या बिसात, इस खेल में तो अब आईपीए या अन्य ताकतवर संगठनों के कर्ता धर्ता ही शहंशाह हैं। आईपीएल के कर्ता धर्ता ललित मोदी और उनके क्रिकेट मंत्रिमंडल के लोग इस पर इतरा सकते हैं कि भारत की सरकार ने इसे भारत में नहीं होने दिया तो क्या, हमने जोहानिसबर्ग में कर दिखाया। इस पूरे आयोजन से कई सवाल उभरे हैं, इनमें से दो सवाल ऐसे हैं जिन पर मुझे लगता है पूरी गंभीरता से चर्चा की जरूरत है। पहला तो ये कि क्रिकेट में सरकार के उपर एक सत्ता कायम हो गई है जो सरकार को ठेंगा दिखाती नजर आ रही है। दूसरा ये कि क्रिकेट की चमक बाकी खेलों को खा तो पहले ही चुकी है, अब नेस्तानाबूद करने वाली स्थिति में आ गई है। मैं क्रिकेट खेलने, देखने सुनने और खुद को आधुनिक बताने के लिए आईपीएल के मैच देखने में कामकाज को भी टाल देने वालों को नाराज नहीं करना चाहता। क्योंकि मैं खुद भी करीब एक दशक पढ.ाई और दूसरे ज्यादा महत्वपूर्ण कामों को छोड.कर क्रिकेट खेलता रहा हूं और अपनी टीम का कप्तान रहा हूं। लेकिन सवाल ये है कि क्रिकेट किस कीमत पर। क्रिकेट के दागी अजहरउददीन लोकसभा चुनाव जीत गए हैं, अजय जडेजा टीवी चैनलों पर मैच पर एक्सपर्ट कमेंट देते नजर आते हैं। और हमारे देश में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का हमने क्या किया, विश्वनाथन आनंद को हम सर आंखों पर क्यों नहीं बिठाते। फुटबाल से लेकर एथेलिटिक्स में हम कहां खड.े हैं। फिर आईपीएल के पूरे आयोजन को हमने क्रिकेट कैबरे की तरह देखा, क्या खेल की गरिमा आवश्यक नहीं है। जोहानिसबर्ग में आईपीएल के आयोजन का कुल कारोबार 12 हजार करोड. रूपए का बताया गया है यानी मध्यप्रदेश जैसे राज्य की सरकार के साल भर के बजट की एक तिहाई रकम। जरा सोचिए क्या सरकार को आईपीएल जैसे टूर्नामेंट अपने नियंत्रण में नहीं ले लेने चाहिए। ताकि क्रिकेट की गरिमा भी बनी रहे और दूसरे खेलों को मटियामेट होने से भी बचाया जा सके।

फलसफा जिंदगी का



जिंदगी की जंग में कई मकाम ऐसे आते हैं जब आदमी नितांत अकेला महसूस करता है, दरअसल वह हमेशा ही अकेला होता है लेकिन ज्यादातर समय वह खुद को भ्रमित करता रहता है, परिवार दोस्त यार काम पूजापाठ इत्यादि में खुद को भुलाए रखता है सच्चाई तो यही है कि वह हमेशा ही अकेला होता है; जब भ्रम टूटता है तो वह यह समझता है कि मैं टूट गया हूं जबकि यह भी एक नया भ्रम होता है; हम आखिर एक भ्रम से उूसरे भ्रम के बीच क्यों भटकते रहते हैं आखिर बिना भ्रम के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्या, कोई बिना भ्रम के भी जी सकता है यह हमें कल्पना में भी नहीं आता क्योंकि हम भ्रम रहित न खुद हो पाते और न ही इसकी कल्पना ही कर पाते हैं, भगवदगीता में यही सब तो समझााने की चेष्टा कष्ण करते हैं, वे यही तो कहते हैं कि जो खत्म हो गया वह तुम्हारा नहीं था जो सामने है वह भी तुम्हारा नहीं है और जो तुम हो वह भी तुम नहीं हो, तुम्हें न तो कोई जला सकता है और न ही कोई तुम्हें नष्ट कर सकता है तुम आत्मा हो शरीर नहीं, आत्मा न जन्म लेता है और न ही मरता है, आत्मा ही ईश्वर है और बाकी सब कुछ उसी में समाया हुआ है, निष्कर्ष यही है कि हम भ्रम में न रहें न पद के न सौंदर्य के न संपत्ति के और न ही किसी किस्म की लालसा के, यदि हम इससे उबर पाए तो यही हमें अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित करा देगा तब सब बंधन नष्ट हो जाएंगे या उनकी प्रतीति खत्म हो जाएगी क्योंकि असल में तो वे हैं ही नहीं बस हमें उनकी प्रतीति होती है जो भ्रम है।

रविवार, 17 मई 2009

देश दो पार्टी सिस्टम की तरफ जाएगा

लोकसभा चुनाव के नतीजे चौकाने वाले जरूर हैं लेकिन ये इस उम्मीद से भी भरे हैं कि देश दो दलों की सियासत की तरफ जाता दिख रहा हैयह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत हैक्योंकि करी३० साल तक कांग्रेस अकेली ही इस देश में सत्ता पे काबिज रही और इसके बाद आया गैर कांग्रे वाद का दौर जिससे जनता सरकार का नाकाम प्रयोग सामने आया१९८९ के बाद ताज़ा चुनाव तक देश की raajneeti में गैर bhajpa vad दूसरा dhruv bna हुआ हैइस siyasi रंग में छोटे दलों का mhatv bad gya था। ताज़ा chunavi prinaam congrees और bjp को दो prumkh दलों के tor पे आगे की सियासत के लिए khda krte हुए दिख rhe हैंlaaloo yadav और ramvilas paaswan की siqast छोटे दलों की dadagiri khatm होने के संकेत हैंsaaf है की अगले कुछ salon में भारतीय लोकतंत्र दो daliy सिस्टम की तरफ जाएगाये लोकत्रंत्र की majbooti का संकेत हैbjp के netaon को भी अपनी galtiyon को sudharte हुए skaratmk dhang से लेना चाहिए

शनिवार, 16 मई 2009

घर को आग लगी घर के ही चिरागों से

लोकसभा चुनाव के नतीजों से एक बात तो साफ है की बीजेपी को तगडा झटका लगा वो भी इसलिए की २००४ की तरह इस बार भी यह पार्टी अतिविश्वास में थी। खासकर एमपी यूपी राजस्थान और महारास्त्र में । मध्यप्रदेश में तो बीजेपी की सीट घटने की वजह स्थानीय नेताओं खासकर मंत्रियों की सांसदों से गुटबाजी ही है। खंडवा की हार शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस और पूर्व मंत्री विजय शाह की महनत का परिणाम है। इंदौर में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पार्टी को हराने में पूरी ताक़त लगा दी। मध्यप्रदेश में बीजेपी को ४ सीट का नुकसान तो भितरघात से ही हुआ है। यानि घर को आग लग गई घर के ही चिरागों से> देखना ये है पार्टी अब इन भितरघातियों से कैसे निपटती है। क्या शिवराज सिंग चौहान कुछ मंत्रियों को हटाने की हिम्मत जुटा पाएंगे। । यदि नही तो आने वाले वक्त में पार्टी को नगरिया निकाय चुनाव में भी कांग्रेस से पीटना पड़ सकता है।

शुक्रवार, 15 मई 2009

वोटर की महिमा

वोटर की महिमा अपार कोई जीतेगा तो कोई जाएगा हार
सिद्धांतों की नही अब कोई बिसात
बस अब तो बिछ गई है बिकने की बिछात
कोण कहता है हम नही बिकाऊ
यहाँ तो ढूड़ते रह जाओगे एसा सख्स जो बिकने से कर दे इंकार
आज की रात भर है बाकि कल हो जाएगा दलों का दलदल
वोटर की महिमा फिर पाँच साल के लिए हो जायेगी गिरफ्तार
होशियार होशियार