रविवार, 29 दिसंबर 2019

यह भाजपा के गठबंधन धर्म से भटकने का नतीजा है.

                                  ..                                                                                                  -सतीश एलिया                                                                                     लगातार दो लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ा गठबंधन होने के बावजूद सत्ता से बाहर हो गई, इसमें उसकी तीस साल पुरानी पार्टनर शिवसेना के चुनाव के बाद अलग होने का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। अब झारखंड में भाजपा सत्ता से बाहर होती दिख रही है तो इसमें भी गठबंधन का चुनाव से पहले ही टूट जाना प्रमुख वजह के रूप में दिख रहा है। झारखंड बनने से अब तक करीब 20 साल भाजपा की सहयोगी पार्टी आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन को भाजपा इस दफा अपने साथ रखने में नाकाम रही। वजह वही बनी जिसे महाराष्ट्र में बार बार शिवसेना कहती रही कि गठबंधन में दूसरे दल को छोटा मानने का अहंकार भाजपा में व्याप्त हो गया है। आजसू लगातार भाजपा के साथ रही है लेकिन इस दफा उसकी 17 सीटों की मांग को भाजपा ने ठुकरा दिया तो वह 58 सीटों पर सीधी भाजपा के खिलाफ मैदान में थी। महाराष्ट्र में बार बार अपने स्ट्राइक रेट की दुहाई देती रही भाजपा ने झारखंड में 2014 में गठबंधन में 8 सीटें लड़कर 5 सीटें जीतने वाली यानी 62.5 फीसदी स्ट्राइक रेट वाली आजसू को 17 सीटें देने से इंकार कर दिया। इसका सीधा फायदा झारखंड मुक्ति मोर्चे के नेतृत्व वाले कांग्रेस और राजद की त्रयी वाले गठबंधन को मिलता दिख रहा है। आजसू को भी सत्ता में कोई भागीदारी नहीं मिलने जा रही है लेकिन उसने पिछले चुनाव से जयादा सीटें जीतकर भाजपा का खेल तो बिगाड़ ही दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने झामुमो से अपना गठबंधन न केवल बरकरार रखा बल्कि उसने बिहार में अपने महागठबंधन के सहयोगी राजद का भी साथ बनाए रखाा। अंतिम नतीजे आने तक किसी चमत्कार की उम्मीद अब न के बराबर ही है। ऐसे में ब्रांड मोदी और ब्रांड अमित शाह पर भी सवाल तो उठेंगे ही। ऐसें वक्त में जब नागरिकता संशोधन और एनआरसी के बहाने गैर भाजपा विपक्ष एकजुटता की नई रागिनी में एकजुट होने के लिए फिर मैदान में है, भाजपा के  हाथ से एक और राज्य खिसकना उसकी अखिल भारतीय अपराजेयता के मार्ग में बड़ा स्पीड ब्रेकर बनकर सामने आया। जब पूरा देश भाजपा और मोदी सरकार के विपक्षी और अन्य जमातों के हिंसक विरोध से सुलगा हुआ है, झारखंड के नतीजे भाजपा के लिए झटका और कांग्रेस के लिए उत्साह का कारण बन रहा है। यह महज संयोग नहीं है कि भाजपा ने बीते करीब एक साल में मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड भी गवां दिया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने अपने लक्ष्य पूरे भारत को भाजपामय बनाने का पूरा करने में अब शायद एक और नई परीक्षा का सामना करना होगा। पांच राज्य गवांने के बाद भाजपा को अब पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से मुकाबले में और ज्यादा मशक्कत करनी होगी, भाजपा अगर अब भी इन रणनीतिक पराजयों से सबक नहीं लेगी तो उसका लक्ष्य महज लक्ष्य बनकर रह जाएगा। कांग्रेस में एक बार फिर साबित हो गया है कि सोनिया गांधी ही उसके अध्यक्ष के तौर पर अब भी पार्टी की ताकत बढ़ाकर उसे राज्यों में वापसी की तरफ ले जा सकती हैँं। निश्चित ही झारखंड के नतीजे न केवल पश्चिम बंगाल के चुनाव में बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव की पूर्वपीठिका बनेंगे। 

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