रविवार, 29 दिसंबर 2019

मप्र की सियासत में साल 2019 के गुजरते अक्स

कहते हैं वक्त हर बदल रहा होता है, हम उसे कैसे गुजारते हैँं इस पर आने वाले वक्त की बुनियाद बनती चली जाती है। वर्ष 2019 बीत रहा है, वर्ष 2020 की आहट करीब आती जा रही है। दोनों वर्षो के आने और जाने के इस संधिकाल में बीत रहे साल की छवियां और आने वाले वर्ष की उम्मीदों के लेखा जोखा के इस वक्त में अगर हम मध्यप्रदेश के लिहाज से देखें तो प्रदेश के लिए 2019 परिवर्ततनों और उठापटक का तो दौर रहा ही, यह प्राकृतिक से लेकर राजनीतिक उथलपुथल तक का भी साल रहा। सियासत की बात करें तो वर्ष 2018 के आखिर में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और लगातार 15 साल से कायम भाजपा की सत्ता से विदाई होकर इतने ही वर्ष से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस का सत्तारोहण हुआ था। नए साल 2019 में मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के सामने अपने सबसे बड़े चुनावी वादे को पूरा करने की चुनौती थी। यानी किसानों के कर्ज माफी के वादे पर अमल का मुख्यमंत्री ने आदेश तो जारी कर दिया था लेकिन यह वादा अमल शुरू होने के बावजूद पूरा होने की तरफ नहीं बढ़ पाया, पूरे साल सरकार और प्रमुख विपक्षी दल केे बीच यही मुद‍दा राजनीतिक घमासान का केंद्र बिंदु बना रहा। भाजपा ने तो इसके खिलाफ कई दफा प्रदेश स्तर पर प्रदर्शन भी किए। इतना नहीं सत्ताधारी दल कांग्रेस में भी किसान कर्ज माफी का वादा पूरा नहीं होने के खिलाफ खींचतान के मामले सामने आते रहे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह भी इस मामले को लेकर सरकार की खिंचाई करते रहे। सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद शुरू हुए इस साल के पांचवें महीने यानी मई में हुए लोकसभा चुनाव ने एक बार फिर बाजी पलटते हुए मप्र की 29 में से 28 लोकसभा सीटाें पर विजय भाजपा के खाते में डालकर कांग्रेस की विधानसभा चुनाव की जीत को फीका कर दिया। अकेले मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ अपने पिता की पारंपरिक सीट जीतकर प्रदेश में कांग्रेस का खाता भर खोलने में कामयाब हो सके। गुना से अब तक अपराजेय रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री और मप्र में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को पहली दफा हार का स्वाद चखना पड़ा। लोकसभा चुनाव के नतीजे ने प्रदेश के मतदाताओं की परिवक्पता का एक बार और प्रमाण दिया कि वे देश के मुद‍दों और राज्य के मुद‍दों पर अलग तरह से सोचकर मतदान करते हैं। इसकी बानगी झाबुआ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एक बार फिर दिखी। झाबुआ के विधायक गुमान सिंह डामोर के सांसद बनने से हुए उपचुनाव में भाजपा यह सीट हार गई। डामोर ने जिन कांतिलाल भूरिया को रतलाम लोकसभा सीट पर चुनाव में हराया था, वही भूरिया झाबुआ उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी को हराकर विधायक बन गए।                                                              प्रदेश की सियासत में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी पूरे साल जारी रही। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने स्थानीय निकायों के चुनाव में महापौर और नगरपालिका नगर परिषद अध्यक्षों का सीधा चुनाव बंद कर पार्षदों में से ही मेयर और अध्यक्ष चुनने का फैसला किया। इसके खिलाफ भाजपा ने प्रदेश व्यापी विरोध प्रदर्शन किए और राज्यपाल लालजी टंडन से गुहार लगाई। नतीजा यह हुआ कि नगरीय निकाय चुनावों को लेकर फैसला साल के अंत तक नहीं हो पाया। मेयर और अध्यक्षों कें अप्रत्यक्ष चुनाव के अलावा भोपाल नगर निगम के दो भागों में बंटवारे के मुद‍दे पर भी सत्ताधारी दल कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के बीच तनातनी साल के अंत तक जारी रही।                                                                                                                                          प्रदेश में इस साल मौसम के तेवर कुछ ऐसे रहे कि समूचा प्रदेश इससे हलाकान रहा। प्रदेश में इस साल मानसून में इस सदी की सर्वाधिक वर्षा का रिकार्ड बना। इस भारी बारिश और बाढ़ के हालात ने प्रदेश में फसलों को बुरी तरह से बर्बाद किया और करीब साढ़े चार सौ लोगों को जान गवांना पड़ी, पशुओं की भी बड़ी संख्या में हानि हुई। भारी बारिश ने प्रदेश की लगभग सभी सड़कों को दुर्दशाग्रस्त कर दिया। इनकी मरम्मत को लेकर भी पक्ष विपक्ष के बीच सियासी तकरार के कई मौके आए। बाढ़ और फसल बर्बादी की राहत को लेकर राज्य सरकार केंद्र सरकार के बीच विवाद के हालात बने। केंद्रीय दलों के दौरों के बाद भी राज्य सरकार ने प्रदेश को राहत नहीं दी जाने के आरोप लगाए। पक्ष विपक्ष महात्मा गांधी के 150 वें जन्म वर्ष के मौके पर कार्यक्रमों के आयोजनों को लेकर भी एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे।                                                                             मध्यप्रदेश को इस साल दो पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल गौर और कैलाश जोशी का अवसान झेलना पड़ा। लगातार आठ बार विधायक, दो बार लोकसभा और राज्यसभा के सांसद रहे कैलाश जोशी को मप्र की राजनीति में संत माना जाता था। बाबूलाल गौर भोपाल से लगातार 10 बार विधायक बनने वाले अपराजेय नेता थे। इन दोनों भाजपा नेताओं के अवसरान के अलावा मप्र से राज्यसभा सदस्य रहीं और विदिशा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष रहीं और विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज का भी इस वर्ष असामायिक निधन हो गया। यह मप्र की सियासत के लिए बड़ी क्षति रही।       प्रदेश में इस साल एक स्कैंडल न केवल प्रदेश बल्कि देश भर में मप्र की चर्चा का कारण बना। इंदौर नगर निगम के एक अधिकारी की पुलिस में शिकायत करने के बाद सैक्स वीडियो बनाकर अफसरों, नेताओं को ब्लैकमेल करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ हुआ। इसे लेकर वायरल वीडियो, गिरफ्तारी और रहस्योदघाटनों का सिलसिला साल के अंत तक कई बार सामने आता रहा। इसकी आंच कई सियासी नेताओं और आला अफसरों तक पहुंचने की चर्चा होती रही। सरकार ने इस साल मिलावटखोरी के खिलाफ शुद‍ध के लिए युद्ध चलाकर मिलावट को खत्म करने का अभियान जोर शोर से चलाया। इसके बाद इंदौर में एक कारोबारी के खिलाफ चले अभियान के बाद पूरे प्रदेश में भूमाफिया के खिलासफ अभियान भी शुरू किया गया। करीब एक दशक से चर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाले में इस साल भी कार्रवाईयों ने इस मामले को चर्चा में बनाए रखा। साल के अंत मकें तीन नई एफआईआर ने मामले को फिर सरगर्म बना दिया।                                  इधर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदेश की सरकार और सत्ताधारी दल कांग्रेस की केंद्र सरकार से सीधी तकरार की स्थिति ने नए सियासी टकराव को पैदा कर दिया। खुद मुख्मंत्री कमलनाथ ने इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की। इस बीच कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रही बहुजन समाज पार्टी की विधायक राम बाई ने नागरिकता संशोधन कानून और इस कानून को लेकर भूमिका को लेकर प्रधानमंत्री का खुला समर्थन कर देने से साल के अंत में नई सियासी हलचल सामने आई है। बसपा प्रमुख मायावती ने रामबाई को पार्टी से निलंबित कर दिया। साल के आखिरी महीने में हुआ विधानसभा का शीतकालीन सत्र पक्ष विपक्ष के बीच तनातनी के कारण खासा गर्म रहा और समय के पहले ही सत्रावसान हो गया। छह दिन के लिए बुलाए गए सत्र का समापन चार दिन में ही हो गया, जिसमें पांच विधेयक बिना चर्चा के ही पारित कर लिए गए। इस साल एक घटनाक्रम भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी को एक आपराधिक मामले में सजा होने पर उनकी सदस्यता खत्म कर दिए जाने और फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने पर सदस्यता बहाल करद दी जाने को लेकर हुआ। यह घटनाक्रम मप्र विधानसभा के लिहाज से अभूतपूर्व था। प्रदेश में गुजरता साल 2019 अपने आखिरी दिनों में भीषण शीतलहर की चपेट में बीत रहा है, उम्मीद की जाना चाहिए कि नया साल 2020 प्रदेश में मौसम के खुशनुमा होने और प्रदेश के विकास की दिशा में उल्लेखनीय बनकर आएगा।                                                      

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