एक गंध बसी है मन में
गेंदे के फूल की ।
एक याद बसी है मन में
गुलाब की ।
एक अहसास बसा है मन में
कमसिन उम्र में
दिनरात किसी को देखने की चाह का।
गंध, याद, चाह के इस अनवरत सिलसिले में
शामिल है कुछ बेमतलब सी
गंधें ,यादें और अहसास भी
जैसे एचसीएल की गंध लैब में
प्रक्टिकल करते वक़्त की।
जैसे प्यार का इज़हार करने के एन मौके पर
जुबान को काठ मार जाने की याद की।
जैसे कुछ बिसर गया
जो याद नही आता लाख कोशिश पर भी
इस सतत अहसास की
बस यही एक अहसास भारी है
हर अहसास पर।
* सतीश एलिया
ये पंक्तियाँ ६ जनवरी २००७ के राशन के बिल के पीछे लिखी गयी थी। आज रद्दी समझ लिए गये कागजों की भीड़ में मिली तो यहाँ भी पोस्ट कर दें ।
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
सुभान अल्लाह ।
मन की हर कोठरी में कोई न कोई अहसास कैद है
राम जाने हम खुद किसी कोठरी में कैद पडे होंगें
आखिर कोई न कोई तो हमें भी दिन रात याद करता होगा।
क्या बात है एलिया जी । छा गये।
बहुत सुंदर रचना जी, धन्यवाद
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