शनिवार, 4 दिसंबर 2010

पत्रकारिता के हमाम में.....

मेरे एक पत्रकार साथी इन दिनों सदमे में हैं। वजह है वे जिस महान पत्रकार के फैन बन गए थे और जिसका गुणगान वे ठीक उसी तरह करते थे जैसे कि भोपाल में ही एक दीक्षितजी माधुरी दीक्षित के प्रख्यात फैन के नाते करते हैं। जी हां, मैं उसी पदमश्री महिला पत्रकार और उसके फैन की कर रहा हूं, जिनका नाम हाल ही में 2 जी स्पेक्ट्रम के सिलसिले में कारपोरेट लाबिस्ट के संपर्क सूत्र के तौर पर चर्चा में आया है। तो जो हमारे साथी पत्रकार हैं वे इन मोहतरिमा पत्रकार के न केवल फैन बन गए थे बल्कि उन्हें भोपाल बुलाकर हम जैसे नाचीजों को उनके साथ डिनर कराने के सब्जबाग भी दिखा चुके थे। मंशा अच्छी थी, वे आदमी भी अच्छे हैं और पत्रकारिता में रहकर धन भी नहीं कमाया है। दिल्ली की लॉबिंग पत्रकारिता के बारे मंे तो मैं कोई खास जानकारी नहीं रखता लेकिन भोपाल के पत्रकारिता के हमाम के कई स्नानरतों और पूर्व स्नानरतों को जानता हूं। एक साब तो एक भ्रष्ट मंत्री के धन से डेली अखबार खोलने की तैयारी में हैं। एक पत्रकार करीब डेढ दशक पहले एक समाचार पत्र से बकायदा फोटो छापकर निकाले गए थे, वे इस श्रेणी में अपनी तरह के इकलौते पत्रकार कहे जा सकते हैं। हाल ही में उन्होंने एक जलसा किया, उसका जाहिर कारण नितांत व्यक्तिगत था लेकिन जलसे में तीन चार मंत्री, तीन चार आईएएस अधिकारी और पांच सात आईपीएस अधिकारियों ने शिरकत की, इस तरह आयोजन सफल रहा। इन सज्जन की खूबियां सब जानते हैं, लेकिन इन्हीं विशेषताओं के चलते वे धडल्ले से चल रहे हैं। जब उमा भारती मप्र की मुख्यमंत्री बनीं तो आधा दर्जन पत्रकार उनके खास उल खास बन गए थे। कुछ तो फर्श से अर्श पर जा पहुंचे, कुछ पाले बदलने की चेष्टा में लगे हैं। गौर मुख्यमंत्री बने तो सरकारी संस्थानों और समितियों में पत्रकारों को जगह मिलने लगी, यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर के मध्यप्रदेशीय सम्मान और फेलोशिप भी रेबडी बन गए। शिवराज आए तो सरकारी संस्थानों में नियम कायदे दरकिनार कर सेवक पत्रकार उपक्रत होने लगे। मैं एक ऐसे पत्रकार को जानता हूं जो विधानसभा की रिपोर्टिंग कितनी गैर संजीदगी से करते थे, उन्हें श्रेष्ठ संसदीय रिपोर्टिंग का पुरस्कार मिल गया जबकि उसके ठीक पहले के सत्र में वे एक भी दिन विधानसभा कवरेज पर नहीं गए थे। एक संपादक स्तर के पत्रकार के बारे में सुना है कि उनका उस टॉवर में बेनामी फ्लेट बुक हुआ जिसमें एक पूर्व मुख्यमंत्री के पोते का भी है, कीमत महज एक करोड रूपए बताई गई है। इस टॉवर को बनाने वाले बीयर भी बनाते हैं और वे आयकर महकमे के हत्थे चढे तो टॉवर की बात भी सामने आई। भोपाल में पत्रकारिता के दलाल, बिचौलिए, भूमाफिया तक के रंग से बाखबर मेरे पत्रकारिता साथी को दिल्ली की पत्रकार की भूमिका के बारे में पता चलते ही दुख पहुंचा है। दुखी तो और लोग भी होंगे, क्योंकि 90 फीसदी लोग बेईमान नहीं हैं। हां 10 प्रतिशत दलाल ईमानदारों पर भारी जरूर पढ रहे हैं पद में, वेतन में, गाडी बंगलों में, पुरस्कारों में, सत्ता के करीब होने में, सार्वजनिक तौर पर कथित रसूख में। लेकिन वे रोज आईना तो देखते ही होंगे। कोई दूसरों को अपनी कलाकारी से बेवकूफ बना सकता है खुद को कैसे बना सकता है। फिर सबको सबकी खबर रहती है, इससे कोई बेखबर रहना चाहे तो क्या। उम्मीद की जाना चाहिए, नेताओं, अधिकारियों और कारपोरेट वर्ल्ड से लेकर तमाम संस्थानों में दाग ढूढकर उजागर करने वाले पत्रकार अपनी बिरादरी की कालिख की तरफ भी तवज्जो देंगे। आमीन

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