आज सुबह सुबह आये फोन से पता चला जोशीजी ७५ के और उनकी पत्रकारिता ५५ साल की हो गयी। उन्होंने इस मौके पे अपने घर बुलाया है, यह सन्देश सुनकर ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इसलिए की वे ७५ के तो कतई नही लगते। सदा सफारी सूट में एकदम फिट तंदुरस्त नज़र आने वाले जोशी की उर्जा किसी नोजवान से कम नही है। जी हाँ में मदनमोहन जोशी जी की बात कर रहा हूँ। कई बार आज के नोजवान पत्रकारों से ज्यादा ही लगती है, बल्कि होती है। मुझे याद है २ साल पहले विधानसभा में भारी हंगामे के बाद हम अध्यक्ष के कमरे के बाहर खड़े थे, जोशी जी वहां मौजूद थे। उनके जमाने के और उनसे पत्रकारिता में ३० साल जूनियर भी खुद को तुर्रम समझते हैं और कितना भी महत्वपूर्ण घटनाक्रम क्यों न हो मोके पर नही जाते। मैंने अवसर का लाभ लिया और उनसे हंगामों का इतिहास पल भर में जान लिया। अगले दिन अखवारों में मेरी खबर सबसे उम्दा थी।
जोशीजी करीब ५ साल मेरे सम्पादक रहे। तुनक मिजाज और कभी कभी मुनि दुर्वाषा के अवतार बन जाने वाले जोशीजी थोड़ी ही देर में सहज और सामान्य हो जाते थे। मुझे याद है जब मैंने दैनिक नई दुनिया ज्वाइन किया था तारीख थी २ सितम्बर १९९५। तो पहली मीटिंग में रिपोर्टिंग टीम और उसके इंचार्ज से मेरा परिचय कराया गया। वरिष्ठों और गरिष्ठो ने कहा हम इन्हें सब समझा और सिखा देंगे। जोशीजी ने कहा मैंने इनकी लिखी खबरें पड़ी हैं। ये तो सब सीखे हुए हैं, आप में से कई लोगों से अच्छी भाषा और समझ है इनकी। मेरे लिए बड़ा कम्प्लिमेंट था ये।
तीसरा वाकया २ साल पहले का है। मध्यप्रदेश समेत ६ राज्यों के विधानसभा चुनाव के मतदान का दिन था। आकाशवाणी ने मुझे चुनाव विश्लेषण के लिए बुलाया। लाइव कार्यक्रम था। स्टूडियो में पहुचा तो पैनल में जोशी जी और नई दुनिया में जोशीजी के सह सम्पादक रहे अग्रज शिवअनुराग पटेरियाजी मौजूद थे। इस प्रोग्राम में जोशीजी ने मुझ कनिष्ठ को बातचीत में सहज बनाये रखा। २ घंटे के प्रोग्राम में ५ एनी राज्यों की राजधानियों से जाने माने पत्रकार और दिल्ली स्टूडियो में मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी भी मोजूद थे। जोशीजी ने मुझे ज्यादा बोलने और सवाल करने के मौके दिए। पटेरियाजी तो खैर सदा ही मुझे आगे बढाते रहे हैं। इसके अगले ही दिन मुझे दूरदर्शन पर पैनल डिस्कसन में बुलाया गया। संयोग से इस पैनल डिस्कसन में हिंदुस्तान तिमेस के एडिटर श्री एनके सिंह थे जो दैनिक भास्कर में मेरे संपादक रह चुके थे। उन्ही के वक़्त में मैंने भास्कर ज्वाइन किया था। इस परिचर्चा में भास्कर के मेरे साथी सुनील शुक्लभी थे। आकाशवाणी के डिस्कसन का मुझे इस चर्चा में लाभ मिला।
शब्द गढने के माहिर पत्रकार जोशीजी के प्रशंसकों की तरह आलोचकों की भी कमी नही है। लेकिन आलोचक भी उनकी लेखनी की तारीफ़ से खुद को रोक नही पाते। वैसे कहा भी जाता है की आपके आलोचक न हों तो कई दफा आपकी सक्रियता की कमी भी इसकी वजह होती है। जोशी जी का पत्रकारिता से इतर योगदान भी उल्लेखनीय है भोपाल में केंसर अस्पताल उनकी देन है। जोशीजी सक्रिय बने रहें, यही कामना है।
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
हमारी शुभकामनाऎ जोशी जी के लिये.
धन्यवाद
मैंने कभी जोशी जी के साथ काम तो नहीं किया परन्तु अपने करीबी पत्रकार साथियों से उनके बारे में इतना सुना है कि ये लगता ही नहीं है कि जोशी जी के साथ काम नहीं किया.जोशी जी इसीतरह उर्जावान रहकर हम सभी का मार्गदर्शन करते रहें....
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