बुधवार, 22 दिसंबर 2010
ये जीना भी कोई जीना है लल्लू
इन दिनों दो दशक पुराना एक गाना मेरे अवचेतन में लगातार गूँज रहा है। फिल्म थी मिस्टर नटवरलाल। इसमें बच्चन बाबू लीड रोल में थे लीड रोल क्या वही अकेले थे। उनने बच्चों के लिए गाना भी गया था। मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनो। इस किस्से में वे कहते हैं मुझे मारकर बेरहम खा गया। तो मासूम बच्चे पूछते हैं लेकिन आप तो जिंदा हैं। वे गाते हुए ही डायलाग मारते हैं ये जीना भी कोई जीना है लल्लू। तो यही लल्लू वाला जुमला मेरे कानों में गूंजता है इन दिनों। क्योंकि पेट्रोल ६० रूपये लीटर प्याज भी ६० रूपये किलो। बाकी चीजें भी आकाशगामी भावों पे हैं। एसे में इस देश की ८० फीसदी जनता जैसे जी रही है उस जीने पे तो यही कहियेगा न कि ये जीना भी कोई जीना है लल्लू। सोनिया राहुल मनमोहन अभिषेक सिंघवी मनीष तिवारी सत्यव्रत चुर्वेती दिग्विजय सिंह वगेरह मजे में हैं। अपना क्या है अपन तो लल्लू ही भले.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
एक विदेशी मजे ले रहा हे, ओर ........ लल्लू मुंह ताक रहा हे.... किस की गलती जी
क्या करें राजनीतिक मजे में है बिल्डर मजे मे है, अधिकारी मजे में है। मरे तो लल्लू मरे, इस से उसे क्या, लल्लू भी तो शराब मे वोट डालते है।
एक टिप्पणी भेजें