बुधवार, 25 नवंबर 2009

महिला आरक्षण के नाम पर ये क्या हो रहा है

मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के लिए उम्मीदवारी के घमासान में आज कतल की रात है। अर्थात कल शाम तक ही उम्मीदवारी के पर्चे भरे जाएंगे। दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में मेयर, नगरपालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष और पार्षद पद की उम्मीदवारी को लेकर यूद्ध जैसे हालात हैं। रोचक बात ये है की शिवराज सरकार ने इन चुनाव में 50 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कहैं। लेकिन इस आरक्षण का दोनों ही दलों में खुला मजाक उड़ाया जा रहा है। महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों पर पार्टी के छोटे बड़े नेता पार्टी की महिला कार्यकर्त्ता के बजाय पुरूष नेताओं की पत्नी, मां, बहन, सास ko टिकीट दिलाने ki जुगत में लगे हैं। पार्टी भी ऐसा करने में पीछे नहीं हैं। भोपाल में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मंत्री बाबूलाल गौर की पुत्रवधु क्रष्णा गौर को मेयर पद का उम्मीदवार बनाया है। आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह पत्नी भावना शाह को खंडवा से महापौर पद की प्रत्याशी बनाया गया है। प्रदेश भर में ऐसे सेकड़ों उदाहरण सामने आ रहे हैं जहां पार्टियां नेताओं की पत्नियों को उम्मीदवार बना रही है, या किसीभी उम्मीदवार बनाने को तैयार है। सवाल ये है की राजनीतिक अपने ही भीतर लोकतंत्र क्यों नहीं ला पा रहे हैं। डेढ़ दशक बाद भी महापौर पति, नपाध्यक्ष पति, पार्षद पति सरपंच पति परंपरा क्यों जारी है।

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

भईया सीट चाहिये अब चाहे घर की नोकरानी को ही ना खडा करना पडे,

प्रवीण एलिया ने कहा…

क्‍या करे, यदि बाहर वालों को टिकिट दे दिया तो, अपनी पूछ परख खत्‍म नहीं हो जायेगी, एवं अन्‍य लोग नेताओं की कतार में ख्‍ाडे हो जायेगें जो बाद में विधान सभा लोक सभा में दावेदार हो जायेगें और टिकिट न मिलने पर विद्रोह कर वरिष्‍ट नेताओं की नौका डुबा देगें इसलिये घर मे टिकिट दिलाना अच्‍छा है