शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
भाषण और लेखन में एक सी ताकत थे प्रभाष जी
हिंदी के शीर्षस्थ पत्रकार प्रभाष जोशी जी नहीं रहे। अंग्रेजीदां पत्रकारों के बीच देश की राजधानी में हिंदी पत्रकारिता के ध्वजवाहक प्रभाष जी, सूटेड बूटेड लोगों के बीच धोती कुर्ते में प्रखर भारतीयता की जीवंत पहचान थे। राजेंद्र माथुर के बाद प्रभाष जी है थे जो राष्ट्रीय पत्रकारिता के फलक पर जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह विराजे थे। मध्यप्रदेश और हिंदी पत्रकारिता के गौरव प्रभाषजी से मेरी पहली मुलाकात 1991-92 में उस वक्त हुई थी जब वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आए थे। मैं तब पत्रकारिता का विद्यार्थी था और उनके लेखन से खासा प्रभावित था। उनका भाषण सुना तो और भी ज्यादा प्रभावित हुआ। क्योंकि ऐसा बहुत ही कम होता है कि कोई व्यक्ति लेखन में जितना श्रेष्ठ हो, उतना ही श्रेष्ठ भाषणकला में भी हो। प्रभाषजी में यह गुण था। उनका मालवी टोन में बोलना और लेखन में भी उसी अंदाज को बनाए रखना उनकी शैली को बिरला बनाता था। विद्यार्थी के नाते मैंने उनसे सवाल किया था कि पत्रकार की लेखन शैली कैसी होना चाहिए? उन्होंने उत्तर दिया था- जो केवल अक्षर ज्ञान रखने वाले रिक्शेवाले को भी समझ में आए और खूब पड़े लिखे विद्वान को भी, ऐसी ही भाषा में पत्रकार को लिखना चाहिए। पत्रकारिता में भाषा का पांडित्य दिखाना सफलता नहीं एक तरह से असफलता की निशानी ही माना जाएगा।प्रभाषजी का क्रिकेट प्रेम तो अदभुत था, और सचिन तेंदुलकर के खेल के तो वे मानो दीवाने ही थे। यह दुखद संयोग है कि सचिन ने जिस रात 17000 का जादुई आंकड़ा पार किया, प्रभाष जी उसी रात इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए। हिंदी के शीर्ष पत्रकार प्रभाष जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
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2 टिप्पणियां:
एलिया जी,
बहुत ही सरल और सहज भाषा में आपने प्रभाष जी को श्रद्धांजलि दे दी। सचमुच उनकी लेखनी का कायल हर कोई है। जो पत्रकारिता को थोड़ा भी समझता है, वह प्रभाष जी को समझता है, क्योंकि प्रभाष जी की लेखनी बहुत ही सहज और सरल है, क्योंकि वे माटी से जुड़े इंसान थे। उनका जाना निश्चित रूप से दुखद है, लेकिन उनके आलेख हम सभी का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे, यही कहा जा सकता है।
डॉ महेश परिमल
प्रभाष जी को हम कभी भुला न पायेंगे। उनके विचार रह रह कर हमें सदा याद आयेंगे। विनम्र श्रद्धांजलि।
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