रविवार, 5 जुलाई 2009

कमबख्त, कमीने..

जब कोई किसी से कमबख्त और कमीने कह दे तो उसकी हत्या तक हो सकती है, थप्पड़ खाने का इंतजाम तो जरूर हो सकता है। सामने वाला पीटने की हैसियत न रखता हो तो पलटकर गालियां तो दे ही सकता है, या हो सकता है पत्थर दे मारे और भाग जाए। कुछ भी हो सकता है किसी को कमीने और कमबख्त कहने में। इन दिनों कोई भी टीवी चैनल खोलिए, एएफ रेडियो आपकी कार में बज रहा हो, यही दो लफ्ज लगातार सुनने को मिल रहे हैं लेकिन हम किसी को पीट नहीं सकते। क्योंंकि ये हालीवुड की उतरन बालीवुड के दो ताजातरीन शाहकार हैं। उनके एक्टर देश भर में घूम घूमकर कमबख्ती और कमीनेपन को देखने की गुहार कर रहे हैं। क्या जमाना आ गया फिल्मों में भी, एक वक्त था अमर प्रेम, प्रेम पुजारी, मोहबबत, महबूबा, प्रेम तपस्या नाम से फिल्में बनतीं थी और अब आलम ये है कि फिल्म का नाम लेने पर से आप पिट सकते हैं। कुछ वक्त पहले एक गाना खूब बजा था- मुश्किल कर दे जीना, इश्क कमीना। इश्क प्रेम या प्यार कमीना होता है, इसी गाने से पता चला थाा। गाना हिट हुआ था इसका मतलब है लोगों को भरोसा हो गया था कि हां इश्क कमीना हो सकता है और जीना मुश्किल भी कर सकता हैँ। चचा गालिब भी कह गए हैं- इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया वर्ना हम थे आदमी काम के। मतलब बेरोजगारी का ताल्लुक भी इश्क से है। अगर कोई शै आपको बेरोजगार कर दे, फाकामस्ती पर ले आए , अर्थात भिखमंगा तक बना डाले तो वह चीज कमीनी और कमबख्त भी लग सकती है। खैर ईएमआई, संकट सिटी, मेट्रो, मार्निंग वॉक इत्यादि अंग्रेजी नाम वाली हिंदी फिल्मों की फेहरिश्त में कम से कम हिंदी नाम वाली फिल्में तो आईं। भले ही उनके नाम कमीने और कमबख्त इश्क ही क्यों न हों। तो दोस्तों पता नहीं आपने कमीने और कमबख्त इश्क देखीं हैं या नहीं या देखना तय किया या नहीं, मैंने तो तय कर लिया है कि मैं कमीने और कमबख्त इश्क नहीं देखूंगा। क्योंकि इस किस्म के लोगों से मेरे रोज ही साबका पड़ता है जिन्हें सुबह ओ शाम यही संबोधित करने को जी चाहता है, जी तो पीटने का भी चाहता है। लेकिन चाहने से क्या होता है, हिम्मत भी होना चाहिए। ऐसी हिम्मत के लिए बेअक्ली भी होना चाहिए सो अपने पास फिलहाल बेअक्ली नहीं है, इसलिए कमीने और कमबख्तों के दौर में भी अपन सबसे दुआ सलाम करके वक्त काट रहे हैं। आपका क्या ख्याल है, बताइएगा जरूर । ्रपुन:श्च
फिर से इसलिए क्योंकि इन दो लफ्जों कमीने और कमबख्त के बारे में तो मैं आपसे बात कर ही नहीं पाया। असल में अर्थ के लिहाज से यह दोनों करीब करीब समानार्था हैं। कमबख्त कहा जाता है उस इंसान को जो मां के गर्भ में भी पर्याप्त समय नहीं रहा और वक्त से पहले आकर मां को परेशान किया , खुद परेशान हुआ और फिर दुनिया को परेशान करता है। कमीने भी मुझे लगता है कम महीने में जन्म लेने से ही बना होगा। वैसे विशेषज्ञ गण मेरे विश£ेषण पर अपनी सहमति जता सकते हैं, न जताएं तो भी अपनी राय जरूर बताइएगा।

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

सतीश जी ऎसी फ़िल्मो से ,ऎसे लफ़्जो से बचते है,फ़िल्मे तो दुर हम टी वी भी नही देखते.
आप ने सुंदर ढंग से अपनी बात लिखी
धन्यवाद

Dr.Mahesh Parimal ने कहा…

ऐलिया जी,
आपके ब्लॉग में दो शब्दों ने मुझे प्रभावित किया। वैसे तो पूरा आलेख ही मौजूं है, पर दो शब्दों ने मुझे शब्दकोश खंगालने का अवसर दे ही दिया। ये दो शब्द हैं 'कमबख्तÓ और 'कमीनाÓ । दोनों ही शब्द मूल रूप से फारसी हैं। दोनों में एक ही समानता है, दुनियाभर की छोटी-छोटी गालियों से सराबोर हैं, इनके अर्थ। इसमें से कुछ प्रजातियाँ भी हैं, जिस पर केवल आप ही गौर कर सकते हैं। आइए बताते चलें, इनके अर्थ:-
कमबख्त=बदकिस्मत, हतभाग्य, शामत का मारा, करमजला, दईमारा, निगोड़ा,दुर्भंग, भ्रष्टश्री, बेनसीब, शूम, सत्यानाशी और हतश्री।

कमीना=क्षुद्र,क्षुद्रात्मा, टुच्चा, नीच, जलील, नालायक, पाजी, पिशुन, मरदूद, मंदात्मा, हेय, बदमाश, शातिर,शैतान, हरामी, कलियुगी, काम, कुटिल, कुकर्मी, छिछोरा।
मज़ा तो तब आएगा, जब इन सारे शब्दों के आगे इश्क लगाकर पढ़ा जाए।