मंगलवार, 21 जुलाई 2009

लगी आज सावन की फिर वो झडी है

सोमवार की रात से मध्यप्रदेश खासकर राजधानी भोपाल पर बादल खासे मेहरबान हैं, सावन की झड.ी लगी है। वो स्कूल के शुरूआती दिन, कई कई दिन की झड.ी टपकता स्कूल वरदान बनता था और खूब छुटटी होती थी। जिस के पास नया और रंगीन छाता होता वही राजकुमार बनता था, दोस्तों के बीच। निक्कर पहने डेढ दर्जन बच्चों की कतार गलियों में दौड. लगाती तेज बारिश में नहाने का मजा लेती फिरती थी। नालियों में लबालब और तेज रफतार pani में कागज की नाव, कोई छडी कोई खाली बोतल बहाना और उसके संग संग नाले के छोर तक दौडते जाना, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी... वो भी क्या दिन थे। किसी चबूतरे पर बैठना दोस्तों के बीच गप्प कहानी, किस्से चुटकुले मिमिक्री और जमकर ठहाके। मन हुआ तो झमाझम बारिश में फुटबाल का आनंद। वो भी क्या दिन थे। बारिश में दोपहर भर दोस्तों के साथ ऐसे ही बिताना, घर वालों की पुकारों पर सबके सब अनुसुनी करने में माहिर, दूसरे के यहां से आवाज आई तो बाकी सब ठहाके लगाते थे। किसी के भी पिताजी की आवाज आई तो फिर जाना ही पड.ता था। मांएं तब भी चिंता करती थीं, भीग रहे हो, बीमार पड. जाओगे, लेकिन बारिश का आनंद इस कदर था और बीमार भी शायद ही हमारे दोस्तों में कभी कोई पड.ा हो। बील, पीपल और नीम के पेड. पर झूले, उंची उंची पींगें, और अपनी बारी के लिए झगड.े। वे भी क्या दिन थे। अब न बच्चे बारिश में गलियों में दौड.ते दिखते हैं और न ही उनके हुजूम बारिश में जमा होकर गपियाते नजर आते हैं। न कोई फुटबाल खेलता दिखता है, रेनी सीजन का अपना मजा था, लेकिन अब वो कहां। हायर सेकंडरी के जमाने में बारिश का इंतजार घर से निकलने के लिए करते थे, जमकर भीगते थे और तबियत मस्त हो जाती थी। कई सालों बाद लगी सावन की झडी ने मन को भी भिगो दिया है, याद आ रहे हैं बचपन के वे दिन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी, वो फुटबाल, वो गलियों में भीगते हुए दौडें लगाना। वे सब दोस्त राकेश, बलवीर, ईश्वर सिंह, उमाशंकर, बबलू, देवेंद्र लंबी फेहरिश्त है। मन दौड. लगाते हुए भीगने का हो रहा है, लेकिन अब वो बात कहां, वो इरादे पक्के कहां, वो दोस्त यार कहां, वो सावन कहां। फिर भी झड.ी लगी है सावन की तो मन सावन सावन हो आया है। आप भी भीगे क्या! बताईएगा जरूर।

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