भोपाल के लोग यानी भोपाली दो चीजों का बेसब्री से इंतजार करते हें और दो ही चीजों से सर्वाधिक खुश होते हैं। एक तो बड़े तालाब के लबालब होने पर भदभदा के मोरे यानी गेट खुलने से और दूसरे गैस कांड के मुआवजे की किश्त जारी होने की खबर से। भोपाल की पहचान पहले ताल से थी और अब ताल और गैस कांड दोनों से होती है। तो खबर ये है कि बुधवार और गुरूवार की झमाझम से भोपाल के ताल में आधा फुट पानी बढ़ गया है। सो सभी भोपालियों की तरह अपन भी खुश हैं। अपने इतिहास में सर्वाधिक गंभीर सूखे का सामना कर रहे ताल में पानी की धाराएं फूटती और समाती देखना अपने आप में इस कदर खुश करने वाला पल है कि इसे महसूस ही किया जा सकता है, बयान करना मुश्किल है। बुधवार को जब में विधानसभा की कार्यवाही के कवरेज में था तो जब चाय पीने प्रेस रूम मंं पहुंचा तो चाय की तलब भूल ही गया। क्योंकि बाहर जो नजारा दिख रहा था, जन्नत से कम नहीं था। झमाझम बारिश में भोपाल शिमला से भी ज्यादा हसीन दिख रहा था। बड़ा ताल भी पानी की धाराओं का इस्तकबाल कर रहा था। मप्र का विधानसभा भवन एशिया की सर्वश्रेष्ठï इमारत का वास्तु पुरस्कार जीत चुका है। उसे आगा खां अवार्ड करीब दस साल प हले मिला था। इस भवन से भोपाल शहर को जो नजरा दिखता है, उससे कोई भी अभिभूत हो सकता है। बारिश में तो मुहं से अपने आप ही सुभान अल्लाह निकल पड़ता है। यहां से बड़ा ताल, छोटा ताल, एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मसाजिद से लेकर हर खूबसूरत नजारा दिखता है। विधानसभा भवन से सटा हुआ बिरला मंदिर है। तो जनाब हमारे भोपाल ताल में पानी की आमद उम्मदा हो रही है। नजारा बेहतरीन है। लोगों ने हवन किये, दुआएं कीं, अब इंशा अल्लाह बारिश झमाझ हो रही है। बस इल्तिजा यही है कि इस झमाझम को किसी की नजर न लगे।
पुन:श्चहमारे यहां कुछ लोग बड़े तालाब को बड़ी झील कहते हैं। हालांकि यह झील नहीं है। तालाब को झील कहतना कब शुरू हुआ, इसका ठीक ठीक अंदाज किसी को नहीं है। लेकिन इसकी वजह अंग्रेजी के अखबार और फिर नकलची हिंदी के अखबार हैं। अंग्रेजी अखबारों ने बड़े तालाब को अपर लेक लिखन शुरू किया और फिर यह हिंदी अखबारों में बड़ी झील में तब्दील हो गया। जबकि यह स्पष्टï है कि तालाब मानव निर्मित और झील प्राकृतिक होती है। भोपाल का तालाब राजा भोल ने बनवाया था यह ऐतिहासिक तथ्य है। फिर भी लोग झील कहते हैं तो क्या किया जाए। लेकिन ताल कहें या झील, यह भोपाल की शान, जान और पहचान है। इन दिनों बारिश से यह भर रहा है।
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
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3 टिप्पणियां:
बहुत खुशी की बात बतलाई आपने सर।
हम भी आप सब भोपाल बासियो की खुशी मै शामिल है. बहुत खुशी कई बात है.
धन्यवाद
मेरी एक ग़ज़ल में एक मिसरा आता है 'गैस ने भोपाल सारे को भिखारी कर दिया'' आपने भोपाल को ठीक पहचाना है ।
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