स्वागत है आगत का
नव हो प्रभात
उज्जवल गात
तरु नव, नव पल्लव
नव हो साँझ नव रात
निर्झर सी हंसी प्रफुल्लित ललाट
प्रेम रस पगा हो जीवन
दुःख न आये पास
आओ हिलमिल करें प्रार्थना
सुखमय हो सबका जीवन
मंगलमय हो नववर्ष नवप्रभात
* सतीश एलिया डॉ अपर्णा एलिया
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
ये जीना भी कोई जीना है लल्लू
इन दिनों दो दशक पुराना एक गाना मेरे अवचेतन में लगातार गूँज रहा है। फिल्म थी मिस्टर नटवरलाल। इसमें बच्चन बाबू लीड रोल में थे लीड रोल क्या वही अकेले थे। उनने बच्चों के लिए गाना भी गया था। मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनो। इस किस्से में वे कहते हैं मुझे मारकर बेरहम खा गया। तो मासूम बच्चे पूछते हैं लेकिन आप तो जिंदा हैं। वे गाते हुए ही डायलाग मारते हैं ये जीना भी कोई जीना है लल्लू। तो यही लल्लू वाला जुमला मेरे कानों में गूंजता है इन दिनों। क्योंकि पेट्रोल ६० रूपये लीटर प्याज भी ६० रूपये किलो। बाकी चीजें भी आकाशगामी भावों पे हैं। एसे में इस देश की ८० फीसदी जनता जैसे जी रही है उस जीने पे तो यही कहियेगा न कि ये जीना भी कोई जीना है लल्लू। सोनिया राहुल मनमोहन अभिषेक सिंघवी मनीष तिवारी सत्यव्रत चुर्वेती दिग्विजय सिंह वगेरह मजे में हैं। अपना क्या है अपन तो लल्लू ही भले.
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
गंध की याद
एक गंध बसी है मन में
गेंदे के फूल की ।
एक याद बसी है मन में
गुलाब की ।
एक अहसास बसा है मन में
कमसिन उम्र में
दिनरात किसी को देखने की चाह का।
गंध, याद, चाह के इस अनवरत सिलसिले में
शामिल है कुछ बेमतलब सी
गंधें ,यादें और अहसास भी
जैसे एचसीएल की गंध लैब में
प्रक्टिकल करते वक़्त की।
जैसे प्यार का इज़हार करने के एन मौके पर
जुबान को काठ मार जाने की याद की।
जैसे कुछ बिसर गया
जो याद नही आता लाख कोशिश पर भी
इस सतत अहसास की
बस यही एक अहसास भारी है
हर अहसास पर।
* सतीश एलिया
ये पंक्तियाँ ६ जनवरी २००७ के राशन के बिल के पीछे लिखी गयी थी। आज रद्दी समझ लिए गये कागजों की भीड़ में मिली तो यहाँ भी पोस्ट कर दें ।
गेंदे के फूल की ।
एक याद बसी है मन में
गुलाब की ।
एक अहसास बसा है मन में
कमसिन उम्र में
दिनरात किसी को देखने की चाह का।
गंध, याद, चाह के इस अनवरत सिलसिले में
शामिल है कुछ बेमतलब सी
गंधें ,यादें और अहसास भी
जैसे एचसीएल की गंध लैब में
प्रक्टिकल करते वक़्त की।
जैसे प्यार का इज़हार करने के एन मौके पर
जुबान को काठ मार जाने की याद की।
जैसे कुछ बिसर गया
जो याद नही आता लाख कोशिश पर भी
इस सतत अहसास की
बस यही एक अहसास भारी है
हर अहसास पर।
* सतीश एलिया
ये पंक्तियाँ ६ जनवरी २००७ के राशन के बिल के पीछे लिखी गयी थी। आज रद्दी समझ लिए गये कागजों की भीड़ में मिली तो यहाँ भी पोस्ट कर दें ।
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
जोशी जी ७५ के हो गये
आज सुबह सुबह आये फोन से पता चला जोशीजी ७५ के और उनकी पत्रकारिता ५५ साल की हो गयी। उन्होंने इस मौके पे अपने घर बुलाया है, यह सन्देश सुनकर ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इसलिए की वे ७५ के तो कतई नही लगते। सदा सफारी सूट में एकदम फिट तंदुरस्त नज़र आने वाले जोशी की उर्जा किसी नोजवान से कम नही है। जी हाँ में मदनमोहन जोशी जी की बात कर रहा हूँ। कई बार आज के नोजवान पत्रकारों से ज्यादा ही लगती है, बल्कि होती है। मुझे याद है २ साल पहले विधानसभा में भारी हंगामे के बाद हम अध्यक्ष के कमरे के बाहर खड़े थे, जोशी जी वहां मौजूद थे। उनके जमाने के और उनसे पत्रकारिता में ३० साल जूनियर भी खुद को तुर्रम समझते हैं और कितना भी महत्वपूर्ण घटनाक्रम क्यों न हो मोके पर नही जाते। मैंने अवसर का लाभ लिया और उनसे हंगामों का इतिहास पल भर में जान लिया। अगले दिन अखवारों में मेरी खबर सबसे उम्दा थी।
जोशीजी करीब ५ साल मेरे सम्पादक रहे। तुनक मिजाज और कभी कभी मुनि दुर्वाषा के अवतार बन जाने वाले जोशीजी थोड़ी ही देर में सहज और सामान्य हो जाते थे। मुझे याद है जब मैंने दैनिक नई दुनिया ज्वाइन किया था तारीख थी २ सितम्बर १९९५। तो पहली मीटिंग में रिपोर्टिंग टीम और उसके इंचार्ज से मेरा परिचय कराया गया। वरिष्ठों और गरिष्ठो ने कहा हम इन्हें सब समझा और सिखा देंगे। जोशीजी ने कहा मैंने इनकी लिखी खबरें पड़ी हैं। ये तो सब सीखे हुए हैं, आप में से कई लोगों से अच्छी भाषा और समझ है इनकी। मेरे लिए बड़ा कम्प्लिमेंट था ये।
तीसरा वाकया २ साल पहले का है। मध्यप्रदेश समेत ६ राज्यों के विधानसभा चुनाव के मतदान का दिन था। आकाशवाणी ने मुझे चुनाव विश्लेषण के लिए बुलाया। लाइव कार्यक्रम था। स्टूडियो में पहुचा तो पैनल में जोशी जी और नई दुनिया में जोशीजी के सह सम्पादक रहे अग्रज शिवअनुराग पटेरियाजी मौजूद थे। इस प्रोग्राम में जोशीजी ने मुझ कनिष्ठ को बातचीत में सहज बनाये रखा। २ घंटे के प्रोग्राम में ५ एनी राज्यों की राजधानियों से जाने माने पत्रकार और दिल्ली स्टूडियो में मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी भी मोजूद थे। जोशीजी ने मुझे ज्यादा बोलने और सवाल करने के मौके दिए। पटेरियाजी तो खैर सदा ही मुझे आगे बढाते रहे हैं। इसके अगले ही दिन मुझे दूरदर्शन पर पैनल डिस्कसन में बुलाया गया। संयोग से इस पैनल डिस्कसन में हिंदुस्तान तिमेस के एडिटर श्री एनके सिंह थे जो दैनिक भास्कर में मेरे संपादक रह चुके थे। उन्ही के वक़्त में मैंने भास्कर ज्वाइन किया था। इस परिचर्चा में भास्कर के मेरे साथी सुनील शुक्लभी थे। आकाशवाणी के डिस्कसन का मुझे इस चर्चा में लाभ मिला।
शब्द गढने के माहिर पत्रकार जोशीजी के प्रशंसकों की तरह आलोचकों की भी कमी नही है। लेकिन आलोचक भी उनकी लेखनी की तारीफ़ से खुद को रोक नही पाते। वैसे कहा भी जाता है की आपके आलोचक न हों तो कई दफा आपकी सक्रियता की कमी भी इसकी वजह होती है। जोशी जी का पत्रकारिता से इतर योगदान भी उल्लेखनीय है भोपाल में केंसर अस्पताल उनकी देन है। जोशीजी सक्रिय बने रहें, यही कामना है।
जोशीजी करीब ५ साल मेरे सम्पादक रहे। तुनक मिजाज और कभी कभी मुनि दुर्वाषा के अवतार बन जाने वाले जोशीजी थोड़ी ही देर में सहज और सामान्य हो जाते थे। मुझे याद है जब मैंने दैनिक नई दुनिया ज्वाइन किया था तारीख थी २ सितम्बर १९९५। तो पहली मीटिंग में रिपोर्टिंग टीम और उसके इंचार्ज से मेरा परिचय कराया गया। वरिष्ठों और गरिष्ठो ने कहा हम इन्हें सब समझा और सिखा देंगे। जोशीजी ने कहा मैंने इनकी लिखी खबरें पड़ी हैं। ये तो सब सीखे हुए हैं, आप में से कई लोगों से अच्छी भाषा और समझ है इनकी। मेरे लिए बड़ा कम्प्लिमेंट था ये।
तीसरा वाकया २ साल पहले का है। मध्यप्रदेश समेत ६ राज्यों के विधानसभा चुनाव के मतदान का दिन था। आकाशवाणी ने मुझे चुनाव विश्लेषण के लिए बुलाया। लाइव कार्यक्रम था। स्टूडियो में पहुचा तो पैनल में जोशी जी और नई दुनिया में जोशीजी के सह सम्पादक रहे अग्रज शिवअनुराग पटेरियाजी मौजूद थे। इस प्रोग्राम में जोशीजी ने मुझ कनिष्ठ को बातचीत में सहज बनाये रखा। २ घंटे के प्रोग्राम में ५ एनी राज्यों की राजधानियों से जाने माने पत्रकार और दिल्ली स्टूडियो में मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी भी मोजूद थे। जोशीजी ने मुझे ज्यादा बोलने और सवाल करने के मौके दिए। पटेरियाजी तो खैर सदा ही मुझे आगे बढाते रहे हैं। इसके अगले ही दिन मुझे दूरदर्शन पर पैनल डिस्कसन में बुलाया गया। संयोग से इस पैनल डिस्कसन में हिंदुस्तान तिमेस के एडिटर श्री एनके सिंह थे जो दैनिक भास्कर में मेरे संपादक रह चुके थे। उन्ही के वक़्त में मैंने भास्कर ज्वाइन किया था। इस परिचर्चा में भास्कर के मेरे साथी सुनील शुक्लभी थे। आकाशवाणी के डिस्कसन का मुझे इस चर्चा में लाभ मिला।
शब्द गढने के माहिर पत्रकार जोशीजी के प्रशंसकों की तरह आलोचकों की भी कमी नही है। लेकिन आलोचक भी उनकी लेखनी की तारीफ़ से खुद को रोक नही पाते। वैसे कहा भी जाता है की आपके आलोचक न हों तो कई दफा आपकी सक्रियता की कमी भी इसकी वजह होती है। जोशी जी का पत्रकारिता से इतर योगदान भी उल्लेखनीय है भोपाल में केंसर अस्पताल उनकी देन है। जोशीजी सक्रिय बने रहें, यही कामना है।
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
पत्रकारिता के हमाम में.....
मेरे एक पत्रकार साथी इन दिनों सदमे में हैं। वजह है वे जिस महान पत्रकार के फैन बन गए थे और जिसका गुणगान वे ठीक उसी तरह करते थे जैसे कि भोपाल में ही एक दीक्षितजी माधुरी दीक्षित के प्रख्यात फैन के नाते करते हैं। जी हां, मैं उसी पदमश्री महिला पत्रकार और उसके फैन की कर रहा हूं, जिनका नाम हाल ही में 2 जी स्पेक्ट्रम के सिलसिले में कारपोरेट लाबिस्ट के संपर्क सूत्र के तौर पर चर्चा में आया है। तो जो हमारे साथी पत्रकार हैं वे इन मोहतरिमा पत्रकार के न केवल फैन बन गए थे बल्कि उन्हें भोपाल बुलाकर हम जैसे नाचीजों को उनके साथ डिनर कराने के सब्जबाग भी दिखा चुके थे। मंशा अच्छी थी, वे आदमी भी अच्छे हैं और पत्रकारिता में रहकर धन भी नहीं कमाया है। दिल्ली की लॉबिंग पत्रकारिता के बारे मंे तो मैं कोई खास जानकारी नहीं रखता लेकिन भोपाल के पत्रकारिता के हमाम के कई स्नानरतों और पूर्व स्नानरतों को जानता हूं। एक साब तो एक भ्रष्ट मंत्री के धन से डेली अखबार खोलने की तैयारी में हैं। एक पत्रकार करीब डेढ दशक पहले एक समाचार पत्र से बकायदा फोटो छापकर निकाले गए थे, वे इस श्रेणी में अपनी तरह के इकलौते पत्रकार कहे जा सकते हैं। हाल ही में उन्होंने एक जलसा किया, उसका जाहिर कारण नितांत व्यक्तिगत था लेकिन जलसे में तीन चार मंत्री, तीन चार आईएएस अधिकारी और पांच सात आईपीएस अधिकारियों ने शिरकत की, इस तरह आयोजन सफल रहा। इन सज्जन की खूबियां सब जानते हैं, लेकिन इन्हीं विशेषताओं के चलते वे धडल्ले से चल रहे हैं। जब उमा भारती मप्र की मुख्यमंत्री बनीं तो आधा दर्जन पत्रकार उनके खास उल खास बन गए थे। कुछ तो फर्श से अर्श पर जा पहुंचे, कुछ पाले बदलने की चेष्टा में लगे हैं। गौर मुख्यमंत्री बने तो सरकारी संस्थानों और समितियों में पत्रकारों को जगह मिलने लगी, यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर के मध्यप्रदेशीय सम्मान और फेलोशिप भी रेबडी बन गए। शिवराज आए तो सरकारी संस्थानों में नियम कायदे दरकिनार कर सेवक पत्रकार उपक्रत होने लगे। मैं एक ऐसे पत्रकार को जानता हूं जो विधानसभा की रिपोर्टिंग कितनी गैर संजीदगी से करते थे, उन्हें श्रेष्ठ संसदीय रिपोर्टिंग का पुरस्कार मिल गया जबकि उसके ठीक पहले के सत्र में वे एक भी दिन विधानसभा कवरेज पर नहीं गए थे। एक संपादक स्तर के पत्रकार के बारे में सुना है कि उनका उस टॉवर में बेनामी फ्लेट बुक हुआ जिसमें एक पूर्व मुख्यमंत्री के पोते का भी है, कीमत महज एक करोड रूपए बताई गई है। इस टॉवर को बनाने वाले बीयर भी बनाते हैं और वे आयकर महकमे के हत्थे चढे तो टॉवर की बात भी सामने आई। भोपाल में पत्रकारिता के दलाल, बिचौलिए, भूमाफिया तक के रंग से बाखबर मेरे पत्रकारिता साथी को दिल्ली की पत्रकार की भूमिका के बारे में पता चलते ही दुख पहुंचा है। दुखी तो और लोग भी होंगे, क्योंकि 90 फीसदी लोग बेईमान नहीं हैं। हां 10 प्रतिशत दलाल ईमानदारों पर भारी जरूर पढ रहे हैं पद में, वेतन में, गाडी बंगलों में, पुरस्कारों में, सत्ता के करीब होने में, सार्वजनिक तौर पर कथित रसूख में। लेकिन वे रोज आईना तो देखते ही होंगे। कोई दूसरों को अपनी कलाकारी से बेवकूफ बना सकता है खुद को कैसे बना सकता है। फिर सबको सबकी खबर रहती है, इससे कोई बेखबर रहना चाहे तो क्या। उम्मीद की जाना चाहिए, नेताओं, अधिकारियों और कारपोरेट वर्ल्ड से लेकर तमाम संस्थानों में दाग ढूढकर उजागर करने वाले पत्रकार अपनी बिरादरी की कालिख की तरफ भी तवज्जो देंगे। आमीन
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