एक दीप धरें मन की देहरी पर
धीरे धीरे घिरता है तम,
ग्रस लेता जड़ और चेतन को
निविड़ अंधकार गहन है ऐसासूझ न पड़ता
हाथ को भी हाथ
क्या करें,
कैसे काटें इस तम को
यह यक्ष प्रश्न
विषधर साकर देता किंकर्तव्यविमूढ़
तो जगती है एक किरनउम्मीद की
टिमटिमातीकंपकंपाती दीप शिखा सी
आओ लड़ें तिमिर अंधकार से,
एक दीप धरें मन की देहरी परप्रेम की जोत जगाएं हम
मिटे अंधियारा
बाहर काभीतर का भी,
आओ दीपमालिका सजाएं,
दीपावली बनाएंएक दीप धरें मन की देहरी पर।।
- सतीश एलिया- Dr. aparana aliya
2 टिप्पणियां:
आओ लड़ें तिमिर अंधकार से,
एक दीप धरें मन की देहरी पर प्रेम की जोत जगाएं हम
सुन्दर अभिव्यक्ति.प्रकाश पर्व की ढेरों शुभकामनायें.
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं
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