अंग्रेजी में पल्प फिक्शन लिखकर नव अंग्रेजीदां लोगों में मशहूर होने के बाद लगता है चेतन भगत हर किसी विषय पर विद्वता हासिल कर चुके हैं। कुछ दिन पहले उनका अंग्रेजी में ही एक लेख आया गोत्र को नकारने वाला। इसका अनुवाद हिंदी अखबारों में भी छपा था। इसका पूरा स्वर इस दिशा में था कि बात देश क्यों, पिता क्यों, नाम, उपनाम क्यों, यानी हर तरह की पहचान की खिलाफत। अंग्रेजी में फिक्शन लिखने से हुई कमाई से महानगरीय जीवन उनके लिए मुफीद हो जाने से उन्हें गोत्र बेमानी भले लगे लेकिन हिंदुस्तान के सवा अरब लोगों को तो गोत्र जरूरत है। अब अपनी और अपने समुदाय से पहचान का गुण सूत्र है। भगतजी का ताजा मामला गुलजार सरीखे नामवर शायर, गीतकार, फिल्मकार और हरदिल अजीज
शख्स से मुंहजोरी का है। वे गुलजार साहब की हंसी उडाने की जुर्रत कर बैठे, मजाक उडाने के अंदाज में उनके गीत- कजरारे कजरारे... की तारीफ करने लगे। आखिर कोई भी प्रसंशा और व्यंग्य का फर्क समझ सकता है, फिर गुलजार साब जैसे संवेदनशील गीतकार जो भगत की तरह एक किताब से प्रसिद्ध नहीं हुए, वे कैसे न समझ पाते। गुलजार साब ने चेतन से उलटा ही सवाल कर डाला, जाहिर है चेतन निरूत्तर हो गए। पापुलर होने से कोई विद्वान नहीं हो जाता, यह बात चेतन भगत और उन जैसे सभी नवप्रसिद्ध नवधनाढयों को समझना चाहिए। चेतन एक दफा भोपाल आए थे तो हमारे एक साथी के सवाल पर उनका ही उत्तर था कि हम तो वो लिखते हैं जो बिकता है। इस देश में प्रेमचंद, टैगोर, राहुल सांस्क्रत्यायन, गांधी, नेहरू, बंकिमचंद्र, शरतचंद्र, रेणु, नागार्जुन, बाबू देवकीनंदन खत्री जैसे महान लेखकों और व्यक्तित्वों की श्र्रंखला है। कोई भी अपने अग्रजों से इस तरह का व्यवहार नहीं करता जैसा करने की चेष्टा भगतजी कर रहे थे। न ही उनकी तरह कोई गोत्र के खिलाफ इस तरह अतार्किक होकर बोला और न ही लिखा। चेतन भगत सामाजिक बुराई किसी चीज को मानते भी हैं तो ऐसे लिखने से तो आग में घी डालने जैसा ही है, जो कोई भी कर सकता है। समाज सुधार राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद विद्यासागर, महात्मा गांधी की तरह ही किया जा सकता है, जो पैसे के लिए नहीं लिखते थे। बदलाव के लिए हर संभव कार्य करते थे, लिखना उनमें से एक उपाय था। वे आधुनिक जीवन शैली के लिए प्रचुर धन पाने के लिए नहीं लिखते थे। लिखे का असर तभी होता है जब हम वैसे हों और धन कमाने के लिए न लिख रहे हों। धन कमाने के लिए लिखना है तो फिर एक ..... में और लेखक में फर्क ही क्या है?
मंगलवार, 1 जून 2010
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6 टिप्पणियां:
आजकल वही लिखा जाता है जो बिक सके,चेतन भगत भी वही कर रहे हैँ । हिन्दी मे पले बढे लोग न जाने क्यो अंग्रेजी मे लिखते है,जो आधे से अधिक भारतिय समझ हि नही सकते।
etips-blog.blogspot.com
sir wo itna bhi bura nahi likhte...haan wahi likhte hain jo yuva padhna chahte hain...management ke student hain to marketing to aati hi hogi...
आप की बात सही है जी ...
धन कमाने के लिए लिखना है तो फिर एक तवायफ़ में और लेखक में फर्क ही क्या है?
Bhagat is a good writer.
Prabhuta paakar thoda gurur aana swabhawik hai...Insaani swabhaav hai...Samay unhe bhi sab kuchh sikha dega !
Kis bhasha mein likha jaye, ye vyakti ki niji choice hai...behes ka mudda nahi.
I admire his writings.
One should not be jealous of him. Everyone writes for his own mental peace. He didn't criticize anyone in his books. He writes light and entertaining stuff.
Galtiyan sabhi karte hain. Galtiyon se hi log seekhte hain.
Bhagat is over all a nice person/ writer.
Divya
वो लेखक नहीं है लेखन की दूकान है, चेतन की कृतियाँ च्पुचाप पढ़ने और भूल जाने लायक हैं
चेतन भगत जी तो पैसे कमाने मे लगे है, उन्हे सामाजिक बुराईयों से मतलब नहीं है, करेंट मुद्दो को भुना कर पैसे कमाये जा रहे है।
आज के भास्कर मे देश की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के सुझाव दिये है। सारे नेताओं के बंगले खाली कराकर जमीन को बेच दें। सांसदों, मंत्रियों को नोयडा मे शिफ्ट करने की सलाह दी गई है!
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