दफा एक गाँव में एक मौलाना आया, गाँव के लोग सीधे और नेक थे। मौलाना की बैटन से प्रभावित हुए। खूब सम्मान दिया। कई दिन गुज़र गये, एक दिन मौलाना ने गाँव वालों से कहा विप्प्ती आने वाली है.कैसी विपदा गाँव वालों ने पूछा.आंधी तूफ़ान, ओले कुछ भी हो सकता है। क्या करें आप ही बताइए। मौलाना ने कहा इस रमजान में बच्चे से लेकर बुजुर्गवारों तक को पानी की एक बूँद भी नही लेना है। पूरे ३० दिन ये करना है। फिर में दुआ पडूंगा। सैतानी ताकत लौट जाएगी। गाँव वालोनो ने इस पे अमल किया। गाँव में एक तलब था। मौलाना रोज़ पाक होने उसमें स्नानं करता था। गाँव वालो को तालाब में जाने की मनाही थी। एक रोज़ मौलाना चीकट हुआ दौड़ा गाँव की तरफ आता दिखा लोग घबरा गये। देखा तो मौलाना लुहुलुहान। बोलने से भी लाचार। असल में तलब में डूबकी लगाकर पानी पीने वाली इन जनाब के गले में कांटे वाली मछली फंस गयी थी। सबको हकीक़त पता चल गयी।
इस कथा का अर्थात ये है कि जो लोग ये समझते हैं हम जो कर रहे हैं वोह हम ही जानते हैं कोई और नही। उनकी दशा एक दिन एसी ही होती है, दुनिया को नेकी की रह पे चलने की नसीहतें देने वाले ढेरो लोग इसी तरह बेनकाब हो रहे हैं। धन को तृष्णा बताने वालो के यहाँ अरबों की सम्पत्ति मिल रही है, काले धन का पता पूछ रहे और हल्ला मचाने वाले अपने पिता का ही नाम सही नही बता रहे। सत्ता में बने रहने के लिए लोग क्या नही क्र रहे। चाहे वो सरकार की सत्ता हो की कारपोरेट की या मठ मंदिर, हाऊसिंग सोसायटी की सब जगह लोग इन मौलाना जैसे ही तलब में दुबकी कगते हैं लेकिन वे ये याद रखें की कभी भी कांता फंस सकता है... जय रामजी की
मंगलवार, 5 जुलाई 2011
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