देश भर को कपाल भाति, प्राणायाम और जाने क्या सिखाने वाले रामक्रष्ण यादव उर्फ बाबा रामदेव एक सप्ताह के अनशन में आखिर क्यों पस्त हो गए! यह सवाल देश भर में उनके अनुयायियों बकौल रामदेव एक करोड, को भी बेचैन तो कर ही रहा होगा। क्योंकि हमारे सामने निगमानंदजी का उदाहरण सामने है, वे डटे रहे, हटे नहीं और प्राण उत्सर्ग कर दिए। आजादी के संग्राम में यतींद्रनाथ दास ने भी अनशन नहीं तोडा मात्रभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। गांधीजी के अनशन अंग्रेज सरकार और उनके अपने समर्थकों को हिला देते थे। हमारे सामने ममता बनर्जी के 21 दिन का अनशन है। भोपाल मेघा पाटकर के अनशन का मैं खुद गवाह हूं, दो सप्ताह से ज्यादा के अनशन के बाद उन्हें देर रात जबरिया उठाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन जीवट की मिसाल मेघा ने कायम की थी। दिग्विजय सिंह की सरकार को झुकना पडा था। दिग्विजय ने मेघा के बारे में तब कोई ऐसी टिप्पणी नहीं की थी, जैसी अब रामदेव के बारे में कर रहे हैं। दिल्ली के रामलीला मैदान से भागने की कोशिश और फिर सात दिन में ही अनशन की समाप्ति से रामदेव ने खुद की तो भद पिटवाई ही है, योग की शक्ति के सामने सवालिया निशान भी लगा दिया है! आखिरी योगियों के किस्से सुनने पढने वाले बच्चे इस योगी की असफलता से कैसे प्रेरित होंगे, भाजपा और संघ की छोडिए उन्हंे तो दिल्ली के तख्त पर वापसी के लिए एक अदद जेपी की तलाश है। क्योंकि लोग देख रहे हैं कि उनके लोग भी सत्ता में रहकर कांग्रेसियों से बेहतर तो नहीं ही हैं।
शनिवार, 18 जून 2011
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1 टिप्पणी:
बाबा को महत्वकांक्षा खा गई, योगी नहीं है दुकान चलाते है, जिनका धंधा बढि़या चल रहा था नेतागिरी कर के अपनी भद पिटवा ली।
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