शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

शिवराज से तनातनी भारी पडी अटलजी के भांजे अनूप मिश्रा को

भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति में अनंत कुमार के संदेश को सुनहरा अवसर बनाकर मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा को मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया। असल में जल संसाधन विभाग छिन जाने से अनूप मिश्रा शिवराज से नाराज थे और उनकी अनदेखी तक कर रहे थे। करीब एक साल से वे उच्च स्तरीय बैठकों और कैबिनेट तक में भाग लेने में रूचि नहीं ले रहे थे। इतना ही नहीं अनूप मिश्रा के तेवर इस कदर तीखे थे कि सीएम, साथी मंत्रियों, विधायकों, अफसरों से लेकर पत्रकारों तक को उनसे अडचन होती थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे होने की वजह से ही शिवराज सिंह चौहान को उमा भारती के सिपहसालार रहे अनूप मिश्रा को मंत्री बनाना पडा था। बेलागांव हत्याकांड में अनूप, उनके बेटे और अन्य संबंधियों का नाम आने के तत्काल बाद ही पार्टी आलाकमान के इस संदेश कि दागियों को अलग करो, से शिवराज को मौका मिल गया। वे इससे पहले स्वास्थ्य महकमे में एक राज्य मंत्री रखकर, ग्वालियर जिले के ही मंत्री नरोत्तम मिश्रा को ज्यादा विभाग और सरकार का अधिक्रत प्रवक्ता बनाकर अनूप के पर कतरने का नमूना दिखा चुके थे। ग्वालिअर के एक मंत्री नारायण कुशवाह उसी जाति के हैं जिसकी मिश्रा परिवार की ओर से हुई गोलीबारी में मौत हुई है। नारायण इस जाति से अकेले बीजेपी विधायक और मंत्री है। हालाँकि वे भी उमा भारती की कृपा से पहली दफा विधयक बनते ही मंत्री बने थे। शिवराज को जातीय समीकरणों के चलते उन्हें मंत्री बनाना पड़ा था। लेकिन ग्वालियर में अनूप मिश्रा ओर बीजेपी महासचिव नरेन्द्र तोमर की ही चलने से कुशवाह खासे नाराज हैं। कांग्रेसियों के धरने के चलते उनके भाई को सही इलाज न मिलने से मौत के बाद से वे खुद धरने पे बैठने का एलन कर चुके है। वे २ माह भोपाल भी नही आये थे। खैर अब देखना ये है कि उमा भारती की भाजपा में वापसी की अटकलों के बीच अनूप का इस्तीफा क्या गुल खिलाता है! अन्य दागी कहे जाने वाले मंत्रियों को हटाने में शायद शिवराज इतनी तत्परता न दिखाएं। क्योंकि वे मंत्री आपराधिक मामलों के आरोपों से नहीं घिरे हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में शिवराज से लेकर अनंत कुमार और प्रभात झा तक यह दोहरा ही रहे हैं कि दोष सिद्ध होने पर ही सजा दी जाना चाहिए, पहले नहीं।