भाजपा की युवा विंग भाजयुमो को एमपी में आखिर युवा अध्यक्ष क्यों नहीं मिला? वह भी तब जबकि न सिर्फ पूरी पार्टी बल्कि संघ परिवार में युवा नेतृत्व उभारने का भूत सवार है। भाजपा में संघ परिवार के प्रतिनिधि संगठन महामंत्री रामलाल के निर्देशों का उल्लंघन कर 37 साल के विधायक जीतू जिराती को मोर्चे का अध्यक्ष क्यों बनाना पड़ा? इस के पीछे गणित चाहे जो हों, लेकिन संघ कि गाइड लाइन का उल्लंघन हुआ और मप्र भाजपा में संघ के प्रतिनिधि प्रदेश संगठन महामंत्री माखन सिंह और उनके दोनों सहयोगी मौन रहे? वास्तव में पिछले एक दशक से भाजपा जिस रास्ते पर चल रही है, यह उसी का नतीजा है। एक समय था जब पार्टी में संघ की परंपरा से तपे हुए नेता आते थे, उन्हें सत्ता और संगठन में तरजीह मिलती थी। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी टीम के ज्यादातर सदस्य विद्यार्थी परिषद से युवा मोर्चा में आए और राजनीति में इस मुकाम पर पहुंचे। कालेज और यूनिवर्सिटी में चुनाव लड़ कर यह लोग पहले छात्र नेता, फिर युवा नेता और अब पूरे प्रदेश के नेता बने। अब हालत यह है कालेज और यूनिवर्सिटी में डायरेक्ट इलेक्शन नहीं होते, ताकि युवा नेतृत्व न उभर जाए। बीते एक दशक में भाजपा से जो लोग जुड़े उनमें संघ और संघ परिवार के कार्यकर्ताओं की संख्या बहुत कम है। जो आए उन्हें भी पार्टी में नया माना गया। संघ या परिवार संगठन में किये गए कम को पार्टी ने तवज्जो नहीं दी गई। अब तो स्थिति यह है कि भाजपा नेता संघ का नाम उसी तरह से लेते नजर आते हैं जैसे कांग्रेसी गांधी जी का । यानी वे उनके सिद्धांतों का पालन तो नहीं करते लेकिन नाम का लाभ लेना चाहते हैं। इतना ही नहीं एक बड़ा वर्ग ऐसा खड़ा हो गया है जो संघ और संघ परिवार से सिर्फ इसलिए जुड़ता है कि वह संघ का लेबल लगा राजनीति में लाभ उठा सके । भाजपा का संघ से रिश्ता कितना रह गया है अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा कार्यकर्त्ता , नेता और यहां तक कि संघ के प्रतिनिधि प्रदेश संगठन महामंत्री शाखाओं में नजर नहीं आते।... माफ कीजिये अब तो शाखाएं भी नजर नहीं आती। अब ऐसे में यदि भाजपा 37 साल उम्र के ऐसे विधायक को युवा इकाई की कमान सौंपती है जिसने कालेज का मुंह भी नहीं देखा और जिस पर कई अपराध दर्ज हैं तो कैसा आश्चर्य और किस बात का हल्ला?
मनोज जोशी भोपाल मध्यप्रदेश
शनिवार, 17 जुलाई 2010
शुक्रवार, 2 जुलाई 2010
शिवराज से तनातनी भारी पडी अटलजी के भांजे अनूप मिश्रा को
भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति में अनंत कुमार के संदेश को सुनहरा अवसर बनाकर मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा को मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया। असल में जल संसाधन विभाग छिन जाने से अनूप मिश्रा शिवराज से नाराज थे और उनकी अनदेखी तक कर रहे थे। करीब एक साल से वे उच्च स्तरीय बैठकों और कैबिनेट तक में भाग लेने में रूचि नहीं ले रहे थे। इतना ही नहीं अनूप मिश्रा के तेवर इस कदर तीखे थे कि सीएम, साथी मंत्रियों, विधायकों, अफसरों से लेकर पत्रकारों तक को उनसे अडचन होती थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे होने की वजह से ही शिवराज सिंह चौहान को उमा भारती के सिपहसालार रहे अनूप मिश्रा को मंत्री बनाना पडा था। बेलागांव हत्याकांड में अनूप, उनके बेटे और अन्य संबंधियों का नाम आने के तत्काल बाद ही पार्टी आलाकमान के इस संदेश कि दागियों को अलग करो, से शिवराज को मौका मिल गया। वे इससे पहले स्वास्थ्य महकमे में एक राज्य मंत्री रखकर, ग्वालियर जिले के ही मंत्री नरोत्तम मिश्रा को ज्यादा विभाग और सरकार का अधिक्रत प्रवक्ता बनाकर अनूप के पर कतरने का नमूना दिखा चुके थे। ग्वालिअर के एक मंत्री नारायण कुशवाह उसी जाति के हैं जिसकी मिश्रा परिवार की ओर से हुई गोलीबारी में मौत हुई है। नारायण इस जाति से अकेले बीजेपी विधायक और मंत्री है। हालाँकि वे भी उमा भारती की कृपा से पहली दफा विधयक बनते ही मंत्री बने थे। शिवराज को जातीय समीकरणों के चलते उन्हें मंत्री बनाना पड़ा था। लेकिन ग्वालियर में अनूप मिश्रा ओर बीजेपी महासचिव नरेन्द्र तोमर की ही चलने से कुशवाह खासे नाराज हैं। कांग्रेसियों के धरने के चलते उनके भाई को सही इलाज न मिलने से मौत के बाद से वे खुद धरने पे बैठने का एलन कर चुके है। वे २ माह भोपाल भी नही आये थे। खैर अब देखना ये है कि उमा भारती की भाजपा में वापसी की अटकलों के बीच अनूप का इस्तीफा क्या गुल खिलाता है! अन्य दागी कहे जाने वाले मंत्रियों को हटाने में शायद शिवराज इतनी तत्परता न दिखाएं। क्योंकि वे मंत्री आपराधिक मामलों के आरोपों से नहीं घिरे हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में शिवराज से लेकर अनंत कुमार और प्रभात झा तक यह दोहरा ही रहे हैं कि दोष सिद्ध होने पर ही सजा दी जाना चाहिए, पहले नहीं।
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
शिवराज को ये किस मुसीबत में फंसा गए अनंत..
कुछ बातें कहने सुनने में अच्छी लगती हैं लेकिन अमल में नहीं लाई जातीं। अर्थात हाथी के दांत.. वाली कहावत। मप्र में भाजपा की सरकार में मंत्रियांे की दादागिरी, उनके खिलाफ दर्ज हो रहे भ्रष्टाचार के इतर मामलों की जैसे बाढ आई हुई है। ऐसे में महासचिव अनंत कुमार की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह सीख कि दागियांे को बाहर करो, सुनने में अटपटी ही लग रही है। क्योंकि खुद मुख्यमंत्री पर डंपर खरीदी मामले में गलत जानकारियां देने और फिर स्वीकार कर लेने का मामला है। यह मामला तब उमा भारती के सिपहसालार प्रहलाद पटेल ने उठाया था, जो शिवराज से मित्रता के चलते कभी के भाजपा में लौट आए हैं और अब इस मामले में चुप हैं। खैर शिवराज दागियों पर कार्रवाई करें तो कैसे। एक तो वे खुद आरोपों से घिर चुके हैं, दूसरे दागी श्रेणी के मंत्रियों की पूरी फौज है। विश्नोई हटाए ही इसीलिए गए थे लेकिन वे फिर मंत्री बना लिए गए, हाइकमान के इशारे पर ही। नरोत्तम मिश्रा भी इसीलिए दूसरी पारी में पहले मंत्री नहीं बनाए गए थे, लेकिन बाद में न केवल मंत्री बन गए बल्कि इस वक्त वे शिवराज सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता और संसदीय, विधि विधायी के अलावा आवास एवं पर्यावरण विभाग के आधे हिस्से आवास के भी मंत्री हैं। कैलाश विजयवर्गीय भले लाख आरोपों से घिरे हों लेकिन वे भी शिवराज के प्रिय हैं, हाल ही में 11 दिन की विदेश यात्रा में साथ रहे। जयंत मलैया भी लोकायुक्त में आरोपित हैं लेकिन उनके पास जलसंसाधन और आवास पर्यावरण विभाग है। नागेंद्र सिंह और अनूप मिश्रा अपने परिजनों की हिंसक दादागिरी के चलते निशाने पर हैं। बाबूलाल गौर भी पटवा सरकार के वक्त नगरीय प्रशासन मंत्री रहते जमीनों के मामले में चर्चा में रहे थे, उनके खिलाफ जगत्पति कमेटी ने प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं, लेकिन वे मुख्यमंत्री तक बन चुके हैं, अब भी मंत्री हैं और उनकी पुत्रवधु भोपाल की महापौर हैं। विजय शाह आरोपों के चलते पहले तो दोबारा मंत्री नहीं बनाए गए थे और बाद मैं न केवल मंत्री बने, उनकी पत्नी खंडवा से महापौर बनीं। लुब्बे लुआव ये कि शिवराज दागियों पर कार्रवाई करें तो आखिर कैसे। रही बात कांग्रेस की तो उसकी सरकार के वक्त में दागियों की पूरी फौज थी। अर्जुन सिंह गैस कांड मामले में एंडरसन की सुरक्षित वापसी मामले में बुरी तरह से घिरे हैं, जिसकी आंच राजीव गांधी के घराने अर्थात कांग्रेस आला हाईकमान तक को झुलसा रही है। ऐसे में जनता किस पर विश्वास करे, अनंत कुमार पर, शिवराज पर, दागियों पर, कांग्रेेसियों पर या ईश्वर पर ही जो कि इकलौता सहारा है गरीब जनता का। मनमोहन सरकार लगातार महंगाई को परवान चढा रही है और बाकी सब सरकारें भी कमोबेश जनता के साथ यही कर रही हैं। सरकारें चलाने वाले अगर दागी बनने में रूचि लेने के बजाय जनता का वाकई कल्याण करते होते तो नक्सलियों को सहयोग और पांव जमाने का मौका क्यांेकर मिल पाता।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)