शुक्रवार, 14 मई 2010

वे भी और ये भी.. कर रहे हैं नाटक

खोखले नारों से विकास और थोथे विरोध प्रदर्शन भारतीय राजनीति को प्रहसन से ज्यादा पहचान नहीं देते, नतीजा आजादी के पैंसठ बरस बाद भी बुनियादी समस्याएं जस की तस हैं। लोगों में नागरिक जिम्मेदारी का भाव है ही नहीं। मध्यप्रदेश विधानसभा में चार दिन का विशेष सत्र बुलाया गया, घोषित लक्ष्य था मप्र को स्वर्णिम बनाने के एक सूत्रीय एजेंडे पर चर्चा कर रोडमैप बनाना था। लेकिन सामान्य सत्रों मंे ही प्रदेश के विकास पर न पक्ष और न ही विपक्ष की खास रूचि नजर आती है, ऐसे में विशेष सत्र पर राजनीतिक खींचतान अवश्यंभावी थी। विपक्ष ने पहले तो सत्र पर हामी भर दी और फिर सत्र को असंवैधानिक करार देकर उसका वहिष्कार कर धरना, समानांतर संगोष्ठी और मसखरे अंदाज में सरकार की खिल्ली उडाई। असल में 10 साल दिग्विजय सिंह के नेत्रत्व में कांग्रेस की सरकार रही और मप्र को बीमारू राज्य का तमगा मिलना ही इकलौती उपलब्लिध रही, इसी वजह से जनता ने भाजपा को मौका दिया। लेकिन जिन वादों पर सरकार बनी थी उसे पहले पांच साल और दूसरी बार सरकार बनने के करीब डेढ साल में कुछ खास नहीं निभाया जा सका। मसलन बिजली के मामले में हालात लगभग वैसे ही हैं। गांवों में 18 घंटे और शहरों में दो से 12 घंटे तक बिजली गुल रहती है। हां सडकों के मामले में हालात अच्छे हो गए हैं। भ्रष्टाचार के मामले दिग्विजय सरकार की तुलना में अब ज्यादा सामने आए हैं, भाजपा भ्र्रष्टाचार को मुददा बनाती रही और अब उसके राज में कई मंत्रियों के अलावा खुद मुख्यमंत्री तक आरोपों से घिरे हुए हैं। लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस कई गुटों में बंटी होने की वजह से ऐसा कुछ नहीं कर पाई है कि लोग उसके दस सालों के कुशासन को भूल कर भाजपा को अपदस्थ करने में कांग्रेस को विकल्प के तौर पर देखने लगें। कांग्रेस और दिग्विजय सिंह को जिन उमा भारती के नेत्रत्व में भाजपा ने अपदस्थ किया था, उनकी घर वापसी की प्रबल संभावनाओं के बीच अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश में शिवराज ने स्वर्णिम मप्र के नाम पर विशेष सत्र बुलाने की जो रणनीति बनाई वह उनके लिए मुसीबत ही बनती नजर आई। विशेष सत्र भाजपा का कार्यक्रम बनकर रह गया। ऐसे में जनता को यह समझ नहीं आ रहा है कि लगातार दो बार मप्र के विकास के नाम पर जनादेश देने के बाद अब भाजपा सरकार को मप्र को स्वर्णिम बनाने से आखिर रोक कौन रहा है? विशेष सत्र की जरूरत क्यों पड़ी ? कांग्रेस के सदन से दूर रहकर बाहर प्रहसन पर भी जनता जानना चाहती है कि आखिर उन्होंने 10 साल में कुछ क्यों नहीं किया था, अब आखिर किस योग्यता पर उन्हें फिर से अवसर मिलना चाहिए?

2 टिप्‍पणियां:

sanjeev persai ने कहा…

गरीब और असहाय रोकर अपनी वेदना कम करना का प्रयास करता है लेकिन यहाँ इसका भी राजनीतिकरण कर दिया गया न....न....भद्दा मजाक बना कर रख दिया छिः................

प्रवीण एलिया ने कहा…

Cong. aur BJP ek hi thali ke chtte patte hai