रविवार, 9 मई 2010

तुमने जो सिखाया माँ

जब भी लगती है कोई चोट
चड़ता है ताप
लगती है कसके भूख
सूख जाता है प्यास से कंठ
लगता है डर भव्तिव्य्ताओं से
लोग लगातार करते है परेशान
तो बरबस याद आता है कौन
तुम तुम तुम -- और कौन
हाँ माँ तुम
में जानता हूँ तुम नही दे सकतीं मुझे
येंसी कोई सलाह जिससे काट फेंकू में
षड्यंत्रों का जाल
तुम कहोगी सब भगवन पे छोड़ दे बेटा
जब तुमने किसी का बुरा नही किया तो
कोई तुमारा बुरा नही कर पायेगा
लेकिन मेरी भोली माँ
किसी का बुरा नही करना ही बन गया हे इस दौर में बुराई
जो दूसरों कि राह में बो रहे हैं कांटे उनको ही मिल रहे हैं फूल
तुम ही बताओ माँ
कहाँ कमी रही गई
तुमने सिखाया सच बोलना डरना मत
किसी का दिल मत दुखाना
थोड़े में संतोष रखना
यही सब करता हूँ हार जाता हूँ माँ
तुम्हारी सीख को गलत साबित करने में
लगा है जमाना
बहुत बहुत अकेला पड़ जाता हूँ माँ
कल रात फिर सपने में देखा तुम्हे
आके गले लगा लो ना माँ
...........




सतीश एलिया

6 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति
मातृ दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें . देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम...

Ashish Maharishi ने कहा…

Dil ke pas

अजय कुमार ने कहा…

समस्त माताओं को सादर नमन

दिलीप ने कहा…

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

मां तुझे सलाम...