मंगलवार, 27 अप्रैल 2010
वे बो रहे हैं मप्र की पहली महिला वाइस चांसलर की राह में कांटे
कांग्रेसअध्यक्ष, यूपीए चेयरपर्सन महिला, लोकसभा में अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष सभी महिलाएं, महिला आरक्षण बिल पर यादव त्रयी को छोडकर सभी पक्ष विपक्ष एक साथ। टीवी पर, अखबार में, हवाई जहाज में, नासा में अंतरिक्ष में सभी जगह महिलाओं ने अपनी ताकत दिखा दी है। मप्र के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर ने बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में प्रो.निशा दुबे को कुलपति बनाकर राज्य की पहली महिला वाइस चांसलर की नियुक्ति की। इस बात की तारीफ मीडिया में जमकर हुई। लेकिन जब सोमवार को प्रो. दुबे विवि में कुलपति पद का काम सम्हालने पहुंचीं तो उनको विवि प्रशासन के अफसरों से लेकर उन प्रोफेसरों तक ने कोई तवज्जो नहीं दी जो अब तक के सभी कुलपतियों के लिए गुलदस्ते लेकर उनके निवास से लेकर कुलपति कार्यालय के द्वार तक पलक पांवडे बिछाए खडे होते आए थे। आइएएस,आइएफएस और आईपीएस अफसर भी इस विवि में कुलपति रहे और इनमें से कोई भी ऐसा नहीं रहा जिसे भारी विवाद, झगडों टंटों के बाद विदा न होना पडा हो। कार्यवाहक कुलपतियों की भी लंबी परंपरा है बल्कि हर कार्यवाहक नए कुलपति की चयन की सूची में शामिल होता रहा। निशा दुबे को हत्सोसाहित करने का माहौल केवल इसलिए नहीं बना कि कार्यवाहक कुलपति प्रो. पीके मिश्रा की नियुक्ति तय मानी जा रही थी और फिर भी नहीं हुई। इसकी असल वजह प्रो. दुबे का महिला होना है, यह ठीक वैसा ही जैसा भाजपा में उमा भारती के साथ हुआ, क्योंकि वे मायावती या जयललिता नहीं हैं। निशा दुबे को कुलपति बनाने वाले लोगों की मंशा नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक और कदम उठाया गया साबित करने की थी और वह साबित भी हुई लेकिन बरकतुल्ला विवि प्रशासन और प्राध्यापकों ने साबित करने की कोशिश की है कि वे किसी महिला को कुलपति पद पर सफल नहीं होने देंगे। आश्चर्य तो इस बात का है कि मीडिया ने प्रदेश की पहली महिला कुलपति की नियुक्ति को पॉजीटिव मानते हुए भरपूर तवज्जो दी लेकिन जब वे फीके माहौल में कार्यभार ग्रहण कर रही थीं तक कुछ पत्रकार बाहर खडे होकर यह चर्चा कर रहे थे कि मैडम चल नहीं पाएंगी। यह जुमले विवि प्रशासन के जिम्मेदार पदों पर सालो से जमे हुए और विभागों में जडें जमाए बैठे लोग भी बोलते सुने गए थे। अब देखना ये है कि महिला को कुलपति बनाने वाले और खुद प्रो. निशा दुबे विवि में जमे कॉकस का तिलिस्म किस तरह तोड. पाते हैं। नई कुलपति को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि उनका कम्युनीकेशन और एडमिनिस्ट्रेटिव पॉवर स्ट्रांग है, देखना ये है कि बरकतुल्ला विवि सही अर्थ में विवि की गरिमा हासिल कर पाता है या नहीं।
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2 टिप्पणियां:
ये प्रतिक्रिया बहुत ही स्वाभाविक है, जो असंतुलित और अतृप्त मनोभावों को दर्शाती है, लेकिन मेरे विचार से ये ठीक इस मामले में है की ये ही वो लोग हैं जो पहले किसी कुलपति के खासम खास बनते है और स्वार्थ पूर्ती न होने पर विरोध का वातावरण भी बनाते है, जहाँ तक मैडम दुबे के बारे में मेरी समझ है उन्हें किसी इस तरह के सहारे की जरूरत भी नहीं है वे अपने आप में समर्थ है..
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