गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
फिर घर में कभी रामायण का पाठ नहीं हुआ
हमारे घर में परंपरा थी कि बड़े भैया के जन्मदिन (1 दिसंबर) को अखंड रामायण का पाठ होता था। 1984 में भी एक दिसंबर को रामायण शुरू हुई और 2 दिसंबर की रात को समापन के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सोया था। सुबह-सुबह कुछ पड़ोसियों ने तेज दरवाजा खटखटा कर उठाया कि गैस रिस रही है। कोई कह रहा था कि घर का गैस सिलेंडर बंद कर लो। कमरे की खिड़की खोल कर देखा तो मेन रोड पर दौैड़ते लोग नजर आए। फिर हम छत पर पहुंच गए, तो देखा एमएसीटी की पहाड़ी पर लोगों का हुजूम लगा हुआ है। इतनी देर में माजरा समझ में आया कि बंटी के पापा की फैक्टरी से कोई जहरीली गैस निकली है, जिससे पुराने शहर में काफी लोग मर गए हैं। इस गैस से बचने के लिए ही लोग नए शहर की तरफ बदहवास दौड़ते चले आ रहे हैं। (बंटी, मेरा हम उम्र था और उसके पापा ने कुछ साल इस मौत की फेक्टरी में नौकरी की थी। जब यह हादसा हुआ, तब तक वे यहां की नौकरी छोड़ चुके थे। उनके बारे में मुझे बस इतना याद है कि वे एक काला ब्रीफकेस लेकर उस जमाने में ऑटो से ऑफिस तक जाते थे।) मेरे बड़े भैया और मोहल्ले के दूसरे लोग पीडि़तों की सहायता के लिए पहुंच गए। कई दिन तक शिविर में रहने वाले लोगों के लिए हमारे व पड़ोसियों के घर से रोटियां गईं। ओढऩे- बिछाने और पहनने के कपड़े भी हम लोगों ने शिविरों में पहुंचाए। हम, नए शहर में रहते थे और हमारा वार्ड गैस पीडि़त नहीं माना गया। इसका मुझे गम नहीं, लेकिन उसके बाद घर में कभी रामायण का पाठ नहीं हुआ। जब भी रामायण की बात आती है, गैस त्रासदी का खौफनाक मंजर और उस दौरान भोगा गया मानसिक संताप पूरे परिवार जेहन में और जुबान पर आ जाता है। फिर हिम्मत ही नहीं होती कि रामायण पाठ का आयोजन करें। 1984 में पहले आरक्षण आंदोलन, फिर इंदिरा गांधी की हत्या और सिक्ख विरोधी दंगे और उसके बाद गैस त्रासदी। इस सबके कारण जनरल प्रमोशन तो मिल गया, लेकिन आज भी लगता है कि उस साल हुए नुकसान की भरपाई आज तक नहीं हो पाई।- मनोज जोशी, भोपाल
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7 टिप्पणियां:
अगर ईश्वर है तो दोबारा ऐसी त्रासदी न हो।
dharmendrabchouhan.blogspot.com
हॉं , उस त्रासदी को याद करके किसका दिल नहीं दहल जायेगा ।
है भगवान ऎसा दोवारा कभी ना हो कही ना हो
ओह ! लेकिन फिर शुरू करें रामायण !
मार्मिक संस्मरण ....!!
आपने जितना नजदीक से देखा और दर्द को समझा होगा वह पल बहुत कठिन रहा होगा। तब हम इस धारा में भी न थे
बस हमने तो सुना है कि क्या क्या हुआ जब पापा ने भोपाल से वापिस जाकर सुनाया, आज कभी जब बैरसिया रोड् पर जाते है तो देखते है, उस कारखाने का जिसने हजारो लोगों को मौत की नींद सुला दिया था,
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