बुधवार, 2 दिसंबर 2009

उम्र से लंबा हादसा, दुनिया ने नहीं लिया भोपाल से सबक

आज नौ हजार एक सौ पच्चीस दिन हो गए भोपाल में बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कारबाइड से जहरीली गैस रिसने से शुरू हुई सतत त्रासदी को। हादसे के वक्त और तब से अब तक के ढाई दशक में हजारों लोग इस नासूर का शिकार हो चुके हैं। राहत, पुनर्वास और मुआवजे की लंबी त्रासद प्रक्रिया, राजनीति के घटाटोप में पीडि़तों को न्याय और दोषियों को बाजिब सजा मिलने की संभावना कहीं गुम हो गई है। सामूहिक नरसंहार के बदले भारत सरकार ने यूनियन कारबाइड से जो 750 करोड़ रुपए लिए थे, उसका उचित रूप से बंटवारा नहीं हो सका। साढ़े सात लाख मुआवजा दावे थे, उनमें से सबका निपटारा तक नहीं हो सका। समूचे भोपाल को गैस पीडि़त घोषित करने की मांग पर ढाई दशक से राजनीति जारी है। पूर्व में भी और वर्तमान में भी गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर इस बीच एक दफा मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं, उनका सबसे बड़ा मुद्दा ही यही रहा है लेकिन यह पूरा नहीं हो सका।
करोड़ों की लागत से बनीं भव्य इमारतें जिन्हें अस्पताल नाम दिया गया है, में करोड़ों रुपए खर्च कर विदेशों से लाई गई मशीनें धूल खा रही हैं। अगर इन अस्पतालों में सब कुछ ठीक से चलने लगे तो भोपाल देश का सर्वाधिक स्वास्थ्य सुविधा संपन्न शहर हो सकता है। लेकिन दो दशक में ऐसा होने के बजाय हालात और बदतर हो गए हैं। दवाएं खरीदने के नाम पर घोटालों के बीच अपने सीने में घातक गैस का असर लिए गैस पीडि़त आज भी तिल तिलकर मर रहे हैं। दवाओं का टोटा न अस्पतालों में नजर आता है और न ही आंकड़ों में। लेकिन लोग दवाओं के लिए भटकते रहते हैं।
विश्व की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी का तमगा हासिल कर चुके इस भोपाल हादसे के मुजरिमों को न केवल तत्कालीन सरकारों ने भाग जाने दिया बल्कि बाद की सरकारों ने नाकाफी हर्जाना लेकर समझौता करने से लेकर आपराधिक मामले में धाराएं कमजोर करने जैसे अक्षम्य अपराध कर कानूनी पक्ष को कमजोर किया। इससे प्राकृतिक न्याय की मूल भावना कमजोर हुई। आर्थिक हर्जाना कभी मौत के मामले में न्याय नहीं हो सकता, फिर यह तो सामूहिक नरसंहार का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने 13 सितंबर 1996 के फैसले में यूनियन कारबाइड से जुड़े अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की दफा 304 के स्थान पर 304- ए के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। इसके तहत यूका के खिलाफ फैसला होने पर अभियुक्तों को दो वर्ष कैद और पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा होगी। इस मामले में यूनियन कारबाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन, यूका ईस्टर्न हांगकांग तथा यूका इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन अध्यक्ष केशव महिंद्रा समेत 10 अन्य अभियुक्त बनाए गए थे। एंडरसन प्रमुख अभियुक्त होने के बावजूद भारत में अदालत के सामने पेश नहीं हुआ।
भोपाल हादसे से किसी भी तरह का सबक नहीं लिया गया है। आज भी भोपाल में और देश भर में घनी आबादियों के बीच घातक कारखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं। हर कहीं हर कभी छोटे छोटे भोपाल घट रहे हैं। ढाई दशक बाद न भोपाल ने न मप्र ने न भारत ने और न ही दुनिया ने भोपाल से कोई सबक लिया है।
क्रमश.. .. जारी

5 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम हिन्दू ओर मुस्लिम के नाम पर तो लड सकते है, जब कि इस गेस ने किसी का धर्म नही देखा, सब को लपेटा, ओर अमेरिका ने अपने नागरिक को बचा लिया बदले मै हमारे नेताओ ने पता नही क्या लिया होगा, ओर हरजाना भी अमेरिका ने दे दिया, अब वो पेसा किस के पास है यह सब को पता है, ओर सब पीडित एक दिन युही तडप तडप कर खुद ही मर जायेगे, लेकिन इन कमीने नेतओ को वोट देने से नही चुकेगे, अरे वोट उसे दे तो पहले इन्हे हरजाना दिलवाये ना कि आपिस मै लडवाये

दृष्टिकोण ने कहा…

उपहार अग्निकांड के पीड़ितों को भी 20.20, 25.25 लाख का मुआवजा दिया गया है मगर भोपाल के गैस पीड़ितों को जिनकी पुश्तें तक गैस के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाएंगी, भीख की तरह मुवावजा देकर चलता कर दिया गया है।


दृष्टिकोण
भोपाल से
www.drishtikon2009.blogspot.com

प्रवीण एलिया (नीरज) ने कहा…

प्रार्थना मे एक ही चीज है दौबारा ऐसा कोई कांड ना हो

प्रवीण एलिया (नीरज) ने कहा…

प्रार्थना मे एक ही चीज है दौबारा ऐसा कोई कांड ना हो

प्रवीण एलिया (नीरज) ने कहा…

प्रार्थना मे एक ही चीज है दौबारा ऐसा कोई कांड ना हो