पिताजी शिक्षक, ज्योतिषविद और भागवत कथाचार्य थे, वे कहते थे नारायण ने देह धरी तब वे श्रीकृष्ण रूप में 119 वर्ष ही धरती पर रहे तो मनुष्य की देह तो विदा होनी है, मेरी भी होगी, तुम शोक मत करना। सब यहीं बने रहे तो धरती पर चलना असंभव हो जाएगा, मनुज मनुज को खाएगा। ये दर्शन यथार्थ है लेकिन माता- पिता की देह का विदा होना कोई ऐसा बिछोह नहीं है जिसे सहज ही सहन किया जा सके। अम्मा के गोलोकगमन ( 3 नवंबर 2016) के 8 बरस 2 माह 10 दिन बाद बीती पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को जब पिता की देह पंचतत्व में विलीन हुई और 15 जनवरी 2025 को तीर्थराज प्रयाग में महाकुंभ में त्रिवेणी संगम में अस्थि विसर्जन किया तो मन के भीतर एक विराट शून्य आच्छादित हो गया। अम्मा की ही तरह वे भी मेरे हाथों में स्वर्ग सिधारे। मैं उनका 'भैया', श्याम सुंदर और राजकुमार था, सतीश तो शायद ही पुकारा हो। वे मेरे पिता, गुरु, शिक्षक, मित्र सब कुछ थे। पिता के अचानक विदा होने के संताप की घड़ी में इष्ट मित्रो, परिजनों, परिचितो और पिताजी के शिष्यों ने मुझे बहुत संबल दिया। एक समय था जब संचार और आवागमन के साधन इतने कम थे और परिजनो को अंतिम संस्कार की न जाने क्यों इतनी जल्दी होती थी कि पिताजी अपने पिता और पिता तुल्य दादा बड़े भाई की अंत्येष्टि में शामिल न हो सके थे। पिता के निधन की सूचना तो उन्हें तीसरे दिन मिली थी, अपने पैतृक गाँव बरवाई से महज 70 किमी दूर मिडिल स्कूल मोहम्मदगढ़ में पदस्थ थे वे। आज संचार के साधनों की पहुँच लगभग हर व्यक्ति तक होने से पिताजी के लगभग सभी शिष्यों, मित्रों, स्वजनों तक उनके गोलोकगमन की सूचना समय से पहुँच सकी और जो आत्मीय थे, वे सभी यथासमय भोपाल और फिर बासौदा पहुँचे भी। अंतिम दर्शन कर सके, अंतिम उत्तर क्रियाओ में शामिल हो सके, जो नहीं आना चाहते थे या असमर्थ थे केवल वही नहीं पहुँचे। रिश्तों के नकलीपन की पहचान और कृतघ्नो के असल मंतव्य जाहिर होने की भी यही घड़ी थी। मुझे सांत्वना देने वाले सभी स्वजनों का ह्रदय से आभार, दोऊ कर जोरि प्रणाम, स्नेह बनाए रखिएगा। व्हाटसएप के सर्जक जेन कूम और ब्रायन एक्टन तथा फ़ेसबुक और व्हाटसएप के मालिक मार्क जुकरबर्ग का भी दिल से शुक्रिया जिनकी वजह से यह संभव हुआ कि जिन तक यह सूचना पहुँचाना थी ' पिताजी, गुरुजी नहीं रहे' मैं संदेश तत्काल पहुँच सका।
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