शनिवार, 21 सितंबर 2019

व्यभिचार और ब्लैकमेल, कानून और समाज ...

                                                     : सतीश एलिया
व्यभिचार में लिप्त नेता,अफसर और ठेकेदारों को सुनियोजित तरीके से फंसाने और ब्लैकमेल करने के जिस मामले ने इन दिनों मप्र की सियासत और अफसरशाही को थोड़ा सा विचलित और खबर जगत को हलचल भरा बना दिया है, उसमें मीडिया का भी एक वर्ग मीडिया पर ही यह सवाल उठा रहा है कि महिलाओं के नाम और फोटो उजागर कर दिए पुरुषों के नाम क्यों उजागर नहीं किए गए? ये सवाल भावुकता भरे हैं और कानूनी पहलुओं को गंभीरता से समझे बिना सोशल मीडिया पर पूछे जा रहे हैं। ये सवाल पूछने वाले लोग वास्तविक और मुख्यधारा के मीडिया में होते या वहां किसी भूमिका में पहुँच जाएँ तो वही करेंगे जो मीडिया इस वक्त कर रहा है, इसकी वजह कानून है। मीडिया को भावुकता से नहीं कानून से चलना पड़ता है। इस मामले में हुआ ये है कि किसी महिला ने किसी पुरुष को अपने सौंदर्य और सहज उपलब्धता से यौन संबंधों में करीबी बनाया,उसके पद की हैसियत भ्रष्टाचारी मनचाहा लाभ लिया। पहले सहज और फिर भयादोहन करके। फिर एक व्यवस्थित गिरोह बनाकर अन्य ऐसे ही आसान टारगेट बनाए और कामयाबी हासिल की। कई टारगेट असफल भी रहे होंगे। कानूनी रूप से भयादोहन, उसमें अपनाए तरीके अपराध है, यौन संबंध नहीं। क्योंकि वयस्कों का सहमति से यौन संबंध अब किसी भी स्थिति में अपराध नहीं रहा। विवाहेतर संबंध भी अब अपराध नहीं है, पति या पत्नी की आपत्ति भी अब अपराध नहीं रही। एडल्टरी को गैर कानूनी दर्जे से हटाने का देश के प्रगतिशील कहे जाने वाले तबके ने वैसा ही स्वागत किया था, जैसा समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का किया था। हनीट्रैप मामले में तो दो पति भी लाभार्थी हैं। इस मामले के उजागर होने में पीड़ित एक इंजीनियर है, जिसकी शिकायत पर मामला यहाँ तक पहुँचा। बाकी आकलित पीड़ित तो पुलिस तक पहुँचे ही नहीं तो उनके नाम किस आधार पर मीडिया नाम उजागर करे? उनकी पत्नियों को भी आपराधिक मामले दर्ज कराने का अधिकार नहीं है, वे सिर्फ़ तलाक माँग सकती हैं। लेकिन जिस धन के लिए इन महिलाओं ने व्यभिचार और भयादोहन का रास्ता चुना वो उनके भ्रष्टाचारी पतियों ने पहले से ही पत्नी दर्जे के साथ दिया ही हुआ है, अब वे अपने पति के व्यभिचार को स्वीकार कर रही हैं जो केवल सामाजिक रूप से गलत है कानूनी नहीं, तो हाय तौबा मचाने वाले आप कौन होते हैं? रही बात समाज की तो जो पहले ही भ्रष्टाचार को लोकाचार की तरह आत्मसात कर चुका है तो व्यभिचार को भी कर ही लेगा, कर रहा है। कोई स्त्री बिना विवाह किए किसी पुरुष के साथ पहली ,दूसरी...स्त्री की तरह रहे तो अब उसे रखैल के बजाय लिव इन रिलेशनशिप कहा जाने लगा है कि नहीं, इसी तरह पुरुष भी कर रहे हैं हालांकि उन्हें रखैला कभी नहीं कहा जाता था। उन्हें रसिक या भोगी या विलासी ही कहा जाता था, बहुत हुआ तो व्यभिचारी। ताजा चर्चित मामले में लिप्त लोग अपनी इस खासियत या ऐब के बावजूद रसूखदार बने हुए हैं तो समाज में इसकी स्वीकार्यता ही है प्रकारांतर से। ऐसा ही पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद यानी क्रष्णपाल सिंह के मामले में भी है, वीडियो ब्लैकमेलिग। अतीत के कई मुख्यमंत्री,राज्यपाल, मंत्री, सांसद, विधायकों, अफसरों, शिक्षको, गुरुओं, संपादकों, कलाकारों के व्यभिचार के शान भरे किस्से जनमानस और लोकश्रुति में हैं न, वे तब के हैं जब एडल्टरी और समलैंगिकता अपराध थे, किसी ने या पत्नियों या पतियों ने केस दर्ज कराए थे या विवाह विच्छेद किए थे? मीडिया ने तब भी नहीं छापे थे, अब भी बिना कानूनी आधार के कैसै उजागर कर सकता है मीडिया? मीडिया पर सवाल उठाने से पहले खुद पर और समाज के दोगलेपन पर सवाल उठाइए, भ्रष्टाचार और व्यभिचार को सम्मान देने वाले समाज को ही गिरेबान में झांकने की जरूरत है । जो ईमानदार और चरित्रवान और कर्मठ लोगों को हाशिये पर रखने को सहजता से लेता है,उनका साथ नहीं देता और ऐन केन प्रकारेण हाषिल धन को हर हाल में सलाम करता है । अस्तु

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